—-70 साल से विरासत का पेशा 70 साल से मूर्ति बनाने के काम में लगे उनके परिवार में पिता के बाद कोई भी मूर्तिकार नहीं बचा। चायना ने बताया कि 2 भाईयों में से कोई इस काम को नहीं अपनाना चाहता था और न ही 3 बहनें। इस हालत में अपने परिवार के इस पारंपरिक मूर्ति कला को बचाए रखने का बीड़ा उन्होंने उठाया, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पुरुष प्रधान इस पेशे में अपने पैर जमाने की थी। उनके पिता के गुजर जाने के बाद ग्राहकों को ये शंका थी कि क्या एक महिला इतनी मेहनत और बारीकी का काम कर पाएगी? अपनी लगन और एकाग्रता से उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। अब कला के जानकार उन्हें 10 भुजा के नाम से संबोधित करते हैं। आज भी वे उसी पारंपरिक तरीके से मूर्तियां बनाती है, जैसे उनके पिता और दादाजी बनाया करते थे। पहले उनके पास 12 कर्मचारियों की टीम थी, जो अभी 9 है। वे अपने सभी कारीगरों का बहुत ध्यान रखती हंै। केवल प्रसिद्धी और प्रशंसा ही नहीं, उन्हें कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। पिछले साल जब पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देते हुए चायना ने एक किन्नरों के समूह के लिए अर्धनारीश्वर के रूप में दुर्गा की मूर्ति बनाई तो मीडिया में जहां उनके इस कदम की सराहना हुई, वहीं इसके विपरीत कुछ स्थानीय लोगों ने परम्पराओं को तोडऩे के लिए उनकी आलोचना की। सवालों के जवाब में चाइना ने कहा कि पहले यहां निषिद्धो पाली के रज के रूप में सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग होता था, पर अब नहीं होता। दैवीय प्रतिमा में निषिद्धो पाली की मिट्टी के इस्तेमाल की प्रथा खुद में समाज सुधार के सूत्र भी सहेजे हैं। ये प्रथा पुरुषों की भूल की सजा भुगतती औरत के उत्थान और आदर की प्रक्रिया का हिस्सा है।
——भारत सरकार ने भेजा था इस साल चीन उनके यहां बनी दुर्गा प्रतिमाओं की मांग न केवल कोलकाता, बल्कि बंगाल के विभिन्न शहरों सहित झारखंड से सटे पुरुलिया और केरल आदि दूसरे प्रदेशों तक है। इसी साल चाइना पॉल 13 जून को चीन गई थीं। चीन के क्विनिंग टाउन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में उन्होंने चीन में साज-सज्जा, श्रृंगारित कर आकर्षक रूप दिया। रने के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से भेजा गया था। वे अपने साथ २ फीट ऊंची मां दुर्गा और काली की प्रतिमा भी साथ ले गई थी, जिसे उन्होंने चीन में साज-सज्जा, श्रृंगारित कर आकर्षक रूप दिया।