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‘कृष्ण युग-प्रवर्तक माया में रहकर भी मायाहीन’

locationकोलकाताPublished: Sep 02, 2018 10:56:12 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

जन्माष्टमी महोत्सव, शिवकल्प महायोगी दादाजी ने की कृष्ण तत्व की व्याख्या

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‘कृष्ण युग-प्रवर्तक माया में रहकर भी मायाहीन’

कोलकाता . हम जन्माष्टमी तो हर साल मनाते हैं, लेकिन जिस चीज को समझने की नितांत आवश्यकता है वह हम आज तक नहीं समझ पाए और वह है-कृष्ण तत्व। सही अर्थों में कृष्ण युग-प्रवर्तक माया में रहकर भी मायाहीन हैं। शिवकल्प महायोगी दादाजी महाराज ने भवानीपुर स्थित अपने निवास पर आयोजित जन्माष्टमी महोत्सव में कृष्ण तत्व की व्याख्या करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि कालिया नाग, बकासुर, पूतना वध, इन्द्र के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन धारण करने जैसी अद्भुत लीलाएं उनके ईश्वरीय तत्व का दर्शन कराती हैं। उन्होंने कहा कि गीता में कृष्ण ने कहा कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती हैं, तब-तब मैं इस धरा पर अवतरित होकर साकार रूप में लोगों के सम्मुख प्रकट होकर साधु-पुरुषों, संतो का उद्धार करने, पाप कर्म करने वालों का विनाश और धर्म की स्थापना करने के लिए हर युग में प्रकट होता हूं।
—जीवन के लिए संजीवनी है प्राणायाम
शिवकल्प महायोगी ने उधर जयपुर में श्रद्धालुओं को धर्म के गूढ़- रहस्यों के साथ स्वस्थ जीवन के भी सूत्र बताए थे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये धर्मसभा को संबोधित करते हुए महायोगी ने कहा कि मनुष्य जीवन के लिए प्राणायाम संजीवनी है। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने इस ब्रह्मांड के निर्माण के समय ही मनुष्य को उसके जीवन के आध्यात्मिक व दैहिक उत्थान के लिए अनेक मार्ग प्रशस्त किए हैं। हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों ने इसके सूक्ष्म अध्ययन कर सर्वश्रेष्ठ मार्गों में से एक प्राणायाम का मार्ग सभी के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि प्राणायाम का मतलब प्राण+आयाम अर्थात वायु शक्ति की क्रिया से शरीर की प्राण शक्ति में वृद्धि करना है। उन्होंने प्राणायाम के प्रकार, उसकी इस देह में उपयोगिता, शरीर में पंचवायु कौन-कौन सी हैं और उनकी क्या-क्या क्रियाएं हैं, आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला।
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