निगम के विभागीय अधिकारियों के अनुसार उक्त इलाकों में ट्यूबवेल लगाने का फैसला उनका अपना नहीं है। निगम यह फैसला राजनैतिक दवाब में कर रहा है। उनके अनुसार दक्षिण कोलकाता व ईएम बाइपास के कई इलाकों में सालों से वॉटर पम्पिंग स्टेशनों की कमी की वजह से पेयजल की किल्लत है। इस वजह से स्थानीय पार्षदों और नेताओं को स्थानीय लोगों के रोष का सामना करना पड़ता है। लोगों की बढ़ती मांग और किल्लत के कारण बढ़ते गुस्से को देखते हुए प्रभावित इलाके के पार्षद निगम पर ट्यूबवेल लगाने का दबाव बना रहे हैं।
निगम के एक अधिकारी के मुताबिक जलस्तर घट रहा है, आर्सेनिक की मात्रा बढ़ रही है, वैसे में नगर निगम को सारे पुराने ट्यूबवेल बंद कर देने चाहिए।हालांकि डीप ट्यूबवेल की संख्या बढ़ाए जाने की खबर पाकर पर्यावरणविदें में निराशा है। उनके अनुसार महानगर में बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती खपत और जलस्त्रोतों कम होने के कारण पहले ही जलस्तर घट चुका है। मनाही के बावजूद ट्यूबवेल लगाने से जलस्तर और नीचे चला जाएगा।
– आइआइटी खडग़पुर जता चुका है किल्लत की आशंका
आइआइटी खडग़पुर और नीति आयोग कम्पोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स के शोध की मानें तो वर्ष २०२० तक महानगर में भूगर्भ जल की किल्लत हो जाएगी। वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भूगर्भ जल के सेवन को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताते हैं।
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– भूगर्भ जलापूर्ति बंद करेगा निगम: मेयर
एक ओर जहां प्रभावित इलाकों के पार्षद लगातार जलसंकट को दूर करने के लिए ट्यूबवेल व डीप-ट्यूबवेल के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं। वहीं मंत्री व मेयर फिरहाद हकीम का दावा है कि कोलकाता नगर निगम अंतर्गत सभी इलाकों में जल्द से जल्द भूगर्भ जलापूर्ति बंद कर दी जाएगी। इसके अलावा जलसंकट की समस्या का निदान करने पूरे शहर में अधिक से अधिक बूस्टर पम्पिंग स्टेशन का निर्माण कराया जाएगा।