script21वीं सदी में भी अंधविश्वास की जकड़ में बंगाल, 24 घंटे में 3 मासूमों की चढी बलि | Even in the 21st century, Bengal in the grip of superstition. | Patrika News

21वीं सदी में भी अंधविश्वास की जकड़ में बंगाल, 24 घंटे में 3 मासूमों की चढी बलि

locationकोलकाताPublished: Feb 15, 2020 07:20:08 pm

Submitted by:

Jyoti Dubey

जादू-टोना, भूत-प्रेत जैसी चीजों पर आज से वर्षों पहले लोगों का विश्वास था। वे तंत्र-साधना की शरण लेते थे। लेकिन २१वीं सदी में जब विज्ञान और तकनीक ने इन्हें अंधविश्वास साबित कर दिया, तब भी इसकी चपेट में आकर किसी की जान चली जाए यह आश्चर्य की बात है। लेकिन पश्चिम बंगाल के मालदह व दक्षिण 24 परगना जिले में यह सचमुच हुआ है। 24 घंटे के अंदर बंगाल के इन दोंनो जिलों में 3 मासूम अंधविश्वास की बलि चढे़ हैं। वहीं दो अब भी जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं।

21वीं सदी में भी अंधविश्वास की जकड़ में बंगाल, 24 घंटे में 3 मासूमों की चढी बलि

21वीं सदी में भी अंधविश्वास की जकड़ में बंगाल, 24 घंटे में 3 मासूमों की चढी बलि

– जादू-टोना के भय से बच्चों का कराते रहे झाड़-फूंक, जंगल से लौटने पर बिगड़ी थी तबीय

कोलकाता. पहली घटना पश्चिम बंगाल के मालदह जिले में घटी, जहां झाड़-फूंक के चक्कर में दो बच्चों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। इलाज के अभाव में गाजोल थाना क्षेत्र के कदमतल्ला गांव के फिरोज रहमान (08) और शफीकुल इस्लाम (06) नामक दोनों सगे भाइयों की शुक्रवार की रात मौत हो गई, जबकि दो बहनों का इलाज चल रहा है। बड़ा सवाल यह है कि 4 बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ की भनक पुलिस प्रशासन को क्यों नहीं लगी? जिला पुलिस अधीक्षक आलोक राजोरिया ने बताया कि अभियान चलाकर शनिवार दोपहर आरोपी ओझा अब्दुल रफीक को गिरफ्तार कर लिया गया।
जानकारी के मुताबिक शुक्रवार शाम फिरोज, शफीकुल और उनकी दो बहनें कोहिनूर खातून और शवानुर खातून पास के जंगल में खेल रहे थे। जंगल से घर लौटते ही चारों बीमार हो गए। चारों खून की उल्टियां करने लगे। पेट में दर्द की वजह से चारों जोर-जोर से रोने लगे। परिजनों को लगा कि जंगल में किसी भूत का साया इन पर पड़ गया है अथवा किसी ने जादू-टोना कर दिया। इस संदेह में उन्होंने पास के गांव से एक ओझा को बुलाया। ओझा बंद कमरे में घंटों झाड़-फूंक करता रहा लेकिन उनकी हालत में सुधार न आया। तबीयत बिगडऩे पर चारों को अस्पताल ले जाने का फैसला किया गया। अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में फिरोज ने दम तोड़ दिया जबकि शफीकुल की अस्पताल में सांस थम गई। कोहिनूर और शवानुर की हालत नाजुक बनी हुई है। मालदह मेडिकल कॉलेज के आपात विभाग में इलाज चल रहा है।

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– विषाक्त फल खाने से हुए बीमार :

प्राथमिक जांच के बाद मालदह मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को जंगल में किसी विषाक्त फल खाने से बच्चों की तबीयत बिगडऩे का अनुमान है। जहर उनके पूरे शरीर में फैल जाने की वजह से दोनों बच्चों की मौत हुई। डॉक्टर बच्चियों को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
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– इलाज के अभाव में हुई मौत : विधायक
गाजोल की विधायक दिपाली विश्वास ने मालदह मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन से बात कर बताया कि बच्चों की मौत इलाज के अभाव में हुई है। समय पर अस्पताल लाने पर बच्चों की जान बच सकती थी। उन्होंने माना कि कदमतल्ला गांव के लोगों में शिक्षा का अभाव है। जागरूकता के अभाव में यह घटना घटी।

21वीं सदी में भी अंधविश्वास की जकड़ में बंगाल, 24 घंटे में 3 मासूमों की चढी बलि

– तालाब में डूबा बच्चा, कराया झाड़-फूंक, मौत :

वहीं दूसरी घटना दक्षिण 24 परगना जिले में घटी जहां एक बच्चा अंधविश्वास की भेंट चढ़ गया। जीवनतल्ला थाना क्षेत्र के पीतखाली गांव के तालाब में डूबे बच्चे का इलाज की बजाय ओझा से झाड़ फूंक कराया गया। बाद में अस्पताल ले जाने पर उसकी मौत हो गई। जीवनतल्ला थाने की पुलिस फरार आरोपी ओझा की तलाश में जुट गई है। सूत्रों के मुताबिक शनिवार सुबह चार साल का बच्चा घर के बाहर खेलते-खेलते तालाब में गिर गया। काफी देर बाद जब उसके परिजनों को पता चला तो स्थानीय लोगों की मदद से उसे बाहर निकाला।
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परिजनों ने बच्चे को स्वस्थ्य करने तालाब को बांस से पीटा :

पेट में पानी भर जाने की वजह से वह बुरी तरह अस्वस्थ हो गया। परिजनों ने उसे अस्पताल ले जाने की बजाय इलाज के लिए एक ओझा को बुलाया। ओझा ने तालाब किनारे आग जलाई और तंत्र साधना शुरू कर दी। बच्चे को पानी में डूबोकर रखते हुए तालाब को बांस से पीटने को कहा। परिजन ओझा के कहने पर लगभग डेढ़ घंटे ऐसा करते रहे। तंत्र साधना के जरिए बच्चे का इलाज देखने लोगों की भीड़ तालाब के पास जुट गई। भीड़ में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र के एक डॉक्टर भी थे। इस तरह से इलाज देखकर उन्होंने ओझा के चंगुल से बच्चे छुड़ाया और कैनिंग अस्पताल ले गए तब तक काफी देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों के अनुसार समय रहते अस्पताल लाने से बच्चे की जान बच सकती थी।
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– पहले भी चलाया अभियान :

इससे पहले 2017 में जिले के बासंती इलाके में ठीक इसी तरह की घटना में 2 साल की एक बच्ची की मौत हो गई थी। उसके बाद जिला प्रशासन की ओर से जागरूकता अभियान चलाया गया था। इसके बावजूद लोगों की आंखों पर अंधविश्वास की बंधी काली पट्टी खुल नहीं रही है।

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