scriptदार्जिलिंग के पहाडिय़ों में आलू की नई प्रजाति की खेती | Farming of new variety potatoes in Hills in West Bengal | Patrika News

दार्जिलिंग के पहाडिय़ों में आलू की नई प्रजाति की खेती

locationकोलकाताPublished: Nov 18, 2018 04:55:11 pm

Submitted by:

Prabhat Kumar Gupta

आलू की जरूरतों को पूरी करने के प्रति स्वनिर्भर होने का दावा करने वाली पश्चिम बंगाल सरकार दार्जिलिंग के पहाडिय़ों में आलू की नई प्रजाति की खेती का अनूठा प्रयास कर रही है। राज्य के कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कर्सियांग के विभिन्न इलाकों में किसान सम्पूर्ण जैविक पद्धति से आलू की खेती कर रहे हैं।

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दार्जिलिंग के पहाडिय़ों में आलू की नई प्रजाति की खेती

– प्रयोग में जुटा कृषि विभाग

कोलकाता.

आलू की जरूरतों को पूरी करने के प्रति स्वनिर्भर होने का दावा करने वाली पश्चिम बंगाल सरकार दार्जिलिंग के पहाडिय़ों में आलू की नई प्रजाति की खेती का अनूठा प्रयास कर रही है। राज्य के कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कर्सियांग के विभिन्न इलाकों में किसान सम्पूर्ण जैविक पद्धति से आलू की खेती कर रहे हैं। कई चरणों में हो रही खेती से उत्पादित आलू फिलहाल बाजारों में नहीं भेजा जाएगा। पहाड़ पर प्रयोग के तौर पर शुरू की गई खेती की सफलता पर इसका भविष्य निर्भर करेगा। अंतराष्ट्रीय आलू शोध केंद्र के सहयोग से किसान आलू की नई प्रजाति को विकसित करने में लगे हुए हैं। कृषि विभाग का दावा है कि यह प्रयास सफल होता है तो पहाड़ के विभिन्न हिस्सों में इसका व्यापक स्तर पर खेती की जाएगी। फलस्वरूप आलू तथा आलू के बीज को लेकर पश्चिम बंगाल स्वनिर्भर हो जाएगा। लंबे समय के बाद पहाड़ पर आलू की खेती-पहाड़ पर वर्षों पहले आलू बीज का उत्पादन किया जाता था। 90 के दशक में पहाड़ पर आलू की खेती में वाट रोग के बढ़ते संक्रमण के चलते इसे बंद कर दिया गया था। खेती की आधुनिक तकनीक के तहत राज्य सरकार नए सिरे सेआलू की खेती को विकसित कर रही है। कृषि विभाग के अनुसार पहाड़ पर पहले आलू के बीज का ही उत्पादन किया जाता था। अब नए प्रयासों के तहत नई प्रजाति के आलू की खेती कर रहे हैं। इनमें से कुछ खाने योग्य तथा कुछ प्रसंस्करण (बीज) के रूप में इस्तेमाल होने वाला है। फिलहाल दो तरह के लाल और सफेद आलू की खेती की गई है। विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक के अनुसार पहाड़ पर आलू की खेती में कई तरह की सावधानियां बरती जाती हैं। एक तरफ कोहरा व बारिश के चलते आलू का फसल धंसा रोग की चपेट में आ जाता है वहीं दूसरी ओर, वाइरस की सक्रियता से आलू के पौधों में सिकुडऩ आने लगती है। आलू की फसल को बचाने के लिए कृषि विभाग कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पहाड़ के किसानों को आलू का प्रमाणित बीज भी समय पर नहीं मिल पाता। उक्त वैज्ञानिक के अनुसार पहाड़ पर आलू की खेती से जुड़ी शोध में यह पाया गया कि करीब 15 से 20 तरह के वाइरस आलू के फसलों को नुकसान पहुंचाता है। सुखियापोखड़ी में आलू का फसल वाट रोग के संक्रमण से क्षतिग्रस्त हो रहा है। इस कारण कृषि विभाग सुखियापोखड़ी को छोड़ पहाड़ के दूसरे हिस्सों में आलू की बुवाई कर रहा है। कलिम्पोंग के लाभा बस्ती, नेपाल सीमा से सटे टूंगलूंग समेत पहाड़ के कई हिस्सों में किसानों को उत्साहित किया जा रहा है।
इनका कहना है-

‘‘प्रयोग के तौर पर 12 अलग-अलग प्रजाति के आलू की खेती करने की योजना है। जो साल में तीन बार दिसम्बर से जनवरी, फरवरी से मार्च और ग्रीष्मकालीन अर्थात् मई में आलू की बुवाई की जाएगी। समतल में जहां प्रति हेक्टेयर 25 टन आलू का फलन होता है वहां पहाड़ पर अधिकतम 15 टन आलू उत्पादन होने की उम्मीद है।’’-महफूज अहमद, सहायक कृषि निदेशक, पश्चिम बंगाल सरकार।
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