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..तो भारत फिर से कहलाएगा सोने की चिडिय़ा

locationकोलकाताPublished: Aug 16, 2019 02:26:22 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियों की जुबानी –पत्रिका खास रपट

kolkata

..तो भारत फिर से कहलाएगा सोने की चिडिय़ा

कोलकाता. आजादी के करीब 7२ साल के बाद भी आज भी देश के अनेक गाँव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सही मायने में हिन्दुस्तान आज भी पहले की तरह ही एक बार फिर से सोने की चिडिय़ा बन सकता है अगर सही मायने मे आम आदमी तक सरकारी योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जाए। बंगाल के कुछ स्वतंत्रता सेनानियो ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर पत्रिका से खास बातचीत मे यह बात कही । स्वाधीनता संग्राम का हिस्सा रहे उपेंद्र नाथ तिवारी ने कहा कि आज हम नए भारत में कदम रखे हुए हैं गुलामी की बेडिय़ों को हमने अपने लहू से सींचकर देश को आजादी दिलाई हैं आज हम 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं। एक समृद्धिशील , प्रगतिशील भारत के रूप में आज देश विदेशों में भारत के डंके बजते हैं। देश को आजादी दिलाने का मतलब था भारत से जातिवाद वंशवाद क्षेत्रवाद पूरी तरह से खत्म हो लेकिन आजादी के बाद से जिस तरह से हम आतंकवाद से जूझ रहे हैं वह चिंता का विषय है। आज जिस तरह से जातिवाद उन्माद ,हिंसा अराजकता का माहौल कायम किया जा रहा है यह देश के लिए चिंता का विषय है हमें शिक्षा , रोजगार , अस्पताल , तकनीकी और इंडस्ट्री ट्रेड विकसित करने के विषय में ध्यान केंद्रित करना होगा। सबका साथ सबका विकास होगा तो फिर से भारत सोने की चिडिय़ा कहलायेगा आजादी के मायने तब सार्थक होने। सबसे बड़ी बात यह है कि स्कूल कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित करने आजादी के मायने समझाया जाना चाहिए और जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए बलिदान दिया है उनकी स्मरण किया जाना चाहिए। श्रीरामपुर निवासी श्री वीरेंद्र सिंह ने बताया कि जिस सोच के साथ हमने आजादी पायी थी उस सोच में आज बदलाव आया है।
जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई के लिए अपना बलिदान दिया था आज सिर्फ स्वतंत्रता दिवस के दिन ही शहीदों को याद किया जाता है। जिस नए भारत का भविष्य गढऩे की दृढ़ संकल्प शक्ति उन्होंने लिया था दुर्भाग्यवश आज भारत की वह तस्वीर नहीं है उन क्रांतिकारियों ने कभी नहीं सोचा होगा कि भारत में क्षेत्रवाद भाषावाद जातिवाद धार्मिक उन्माद उग्रवाद जैसी समस्याओं से भारतीयों को रूबरू होना पड़ेगा जब तक हमारे देश से इन समस्याओं का समाधान नहीं होता है तब तक उन क्रांतिकारियों का बलिदान व्यर्थ समझा जाएगा। आजादी के मायने तब आएगा जब उन्हें सभी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिलेगा। तब हमारा बलिदान सार्थक होगा।
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