– कारीगरों का पलायन भी है समस्या
कलकत्ती ज्वेलरी के बारे में विदेशी बाजारों में भ्रांति फैली हुई है। इसका मुख्य कारण है बंगाल के स्वर्ण कारीगरों का अन्य राज्यों में पलायन व दूसरे राज्यों में इस कारीगरी की नकल। जीआई टैग पाने का प्रयास कर रहे स्वर्ण व्यवसाई व कारीगर जीजेईपीसी व आईआईटी खडग़पुर की मदद ले रहे हैं। आईआईटी के छात्र ज्वेलरी शो में हिस्सा लेकर कलकत्ती ज्वेलरी पर शोध कर रहे हैं।
– नकल से हो रहा घाटा
कलकत्ती ज्वेलरी की नकल दूसरे राज्यों के बाजारों में धड़ल्ले से की जा रही है। मुंबई, दिल्ली, केरल और राजस्थान नकल में आगे हैं। विदेशों में उसे कोलकत्ती के नाम से कम दर में बेच रहे हैं। इसकी वजह से यहां का हस्तनिर्मित स्वर्ण व्यवसाय व कारीगरों को घाटा हो रहा है। कारीगरों को मेहनत का सही दाम न मिल रहा है। जिससे लोग इस कारीगरी को छोडऩे या दूसरे राज्यों में चले जाने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसा ही चलता रहा तो इस शहर से यह कला विलुप्त हो जाएगी। इसके अस्तित्व को बचाकर रखने के लिए जीआई टैग अनिवार्य है। टैग मिलने से दूसरे राज्य के लोग इस पर दावा नहीं ठोक पाएंगे।
: पंकज पारेख (क्षेत्रीय चेयरमेन, इंडियन बुलियन एंड ज्वेलरी एशोसिएशन)
– राज्य ने भी समझी आवश्यक्ता
राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा कह चुके हैं कि हस्तनिर्मित हल्के आभूषणों की दुनिया में बंगाल की कलाकारी अद्वितीय है। जीआई टैग मिलने से डिजाईन की नकल कर पाना संभव न हो पाएगा।