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बंगाल की हस्तनिर्मित कलकत्ती ज्वेलरी पर नकल से मंडराया संकट

locationकोलकाताPublished: Jan 27, 2019 03:26:18 pm

Submitted by:

Jyoti Dubey

बंगाल के स्वर्ण कारीगरों की हस्तनिर्मित कलकत्ती डिजाईन ज्वलेरी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण हो रही नकल से इस विधा के जानकार संकट में आ रहे हैं।

– जटिल और महीन कारीगरी के लिए विश्व विख्यात है यह कला

कोलकाता. बंगाल के स्वर्ण कारीगरों की हस्तनिर्मित कलकत्ती डिजाईन ज्वलेरी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण हो रही नकल से इस विधा के जानकार संकट में आ रहे हैं। रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के साथ मिलकर बंगाल के स्वर्ण व्यवसाइयों के संगठन ने इसके लिए जीआई टैग की मांग की है। इस डिजाईन के गहनों की मांग भारत के अलावा मध्य पूर्व, अमेरिका और ब्रिटेन के बाजारों में भी है। पतले स्वर्ण धातु के तारों से गहनों पर की गई कारीगरी को कलकत्ती आभूषण कहा जाता है।

– कारीगरों का पलायन भी है समस्या
कलकत्ती ज्वेलरी के बारे में विदेशी बाजारों में भ्रांति फैली हुई है। इसका मुख्य कारण है बंगाल के स्वर्ण कारीगरों का अन्य राज्यों में पलायन व दूसरे राज्यों में इस कारीगरी की नकल। जीआई टैग पाने का प्रयास कर रहे स्वर्ण व्यवसाई व कारीगर जीजेईपीसी व आईआईटी खडग़पुर की मदद ले रहे हैं। आईआईटी के छात्र ज्वेलरी शो में हिस्सा लेकर कलकत्ती ज्वेलरी पर शोध कर रहे हैं।

– नकल से हो रहा घाटा
कलकत्ती ज्वेलरी की नकल दूसरे राज्यों के बाजारों में धड़ल्ले से की जा रही है। मुंबई, दिल्ली, केरल और राजस्थान नकल में आगे हैं। विदेशों में उसे कोलकत्ती के नाम से कम दर में बेच रहे हैं। इसकी वजह से यहां का हस्तनिर्मित स्वर्ण व्यवसाय व कारीगरों को घाटा हो रहा है। कारीगरों को मेहनत का सही दाम न मिल रहा है। जिससे लोग इस कारीगरी को छोडऩे या दूसरे राज्यों में चले जाने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसा ही चलता रहा तो इस शहर से यह कला विलुप्त हो जाएगी। इसके अस्तित्व को बचाकर रखने के लिए जीआई टैग अनिवार्य है। टैग मिलने से दूसरे राज्य के लोग इस पर दावा नहीं ठोक पाएंगे।

: पंकज पारेख (क्षेत्रीय चेयरमेन, इंडियन बुलियन एंड ज्वेलरी एशोसिएशन)


– राज्य ने भी समझी आवश्यक्ता

राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा कह चुके हैं कि हस्तनिर्मित हल्के आभूषणों की दुनिया में बंगाल की कलाकारी अद्वितीय है। जीआई टैग मिलने से डिजाईन की नकल कर पाना संभव न हो पाएगा।

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