हिमालय की गोद में बसा दार्जिलिंग लोकसभा चुनाव को लेकर काफी चर्चा में है। 80 के दशक में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) नेता सुभाष घीङ्क्षसग और उसके बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) सुप्रीमो बिमल गुरुंग के समर्थन से ही दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र का भाग्य निर्धारण होता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव का यह पहला मौका है जब चुनाव के वक्त गुरुंग पहाड़ से दूर हैं। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में यहां से भाजपा के जसवंत सिंह और एस.एस. अहलूवालिया ने चुनाव जीत कर पहाड़ का प्रतिनिधितत्व किया है। भाजपा ने इस बार अहलूवालिया को यहां से टिकट नहीं दिया। इनके स्थान पर पार्टी ने राजू बिस्ट को मैदान में उतारा है। वहीं राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने 2016 में दार्जिलिंग से गोजमुमो के टिकट पर विधायक बने अमर सिंह राई को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने विधायक शंकर मालाकार तथा वाममोर्चा की ओर से पूर्व सांसद समन पाठक चुनाव समर में हैं। भाजपा को अपनी जीत का हैट्रिक बनाने तथा तृणमूल कांग्रेस को पहाड़ पर अपना परचम लहराने की चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव में अहलूवालिया 4,88,257 (42.75), तृणमूल कांग्रेस के बाइचुंग भुटिया 2,91,018 (25.48 फीसदी) पाकर दूसरे स्थान पर रहे। जबकि माकपा के समन पाठक 1,67,186 (14.64 फीसदी) वोट पाए थे। चौथे स्थान पर रही कांग्रेस को 90,076 वोट मिले थे। दार्जिलिंग के वर्तमान सांसद 67 वर्षीय अहलूवालिया फिलहाल मोदी सरकार में मंत्री भी हैं। लोकसभा में उनकी उपस्थिति 87 फीसदी रही हालांकि दिसम्बर 2018 तक उन्होंने पहाड़ की जनता के लिए एक भी सवाल नहीं पूछा और ना ही कोई प्राइवेट मेम्बर बिल लोकसभा के पटल पर रखा।
रायगंज लोकसभा सीट से दूसरी बार माकपा सांसद मोहम्मद सलीम चुनाव मैदान में हैं। लोकसभा में बेबाकी से राय रखने के लिए चर्चित सलीम को इस बार तृणमूल कांग्रेस के कन्हैयालाल अग्रवाल, भाजपा की देवश्री चौधरी और कांग्रेस की दीपा दासमुंशी से जबरदस्त टक्कर का सामना है। उत्तर दिनाजपुर की रायगंज संसदीय सीट पर इस बार रोचक और चतुष्कोणीय मुकाबला हो रहा है। बहुजन समाज पार्टी, इंडियन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक फ्रंट, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट), कामातापुर पीपुल्स पार्टी (युनाइटेड), गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रीय जनसचेतन पार्टी, ऑल इंडिया जन आंदोलन पार्टी, आमरा बंगाली के साथ चार अन्य निर्दलीय भी मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोहम्मद सलीम 3,17,515 यानी 29.00 फीसदी मतों के साथ जीत हासिल की जबकि दीपा दासमुंशी को 3,15,881, 28.50 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा। वहीं भारतीय जनता पार्टी 14 फीसदी बढ़त बनाते हुए नीमू भौमिक 2,03,131 यानी 18.32 फीसदी मत मिले।
जलपाईगुड़ी संसदीय सीट पर राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चतुष्कोणीय मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी ने मौजूदा सांसद विजय चंद्र बर्मन को एक बार फिर मैदान में उतारा है। इनका मुकाबला माकपा के भगीरथ चंद्र राय, भाजपा के डॉ. जयंत कुमार राय और कांग्रेस के मणि कुमार दरनाल से है। यहां कुल 16 उम्मीदवार अपना राजनीतिक भाग्य आजमा रहे हैं। इनमें बहुजन समाज पार्टी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट), आमरा बंगाली, समाजवादी जन परिषद, कामातापुर पीपुल्स पार्टी (यूनाइटेड) के अलावा तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं। 1962 के आमचुनाव में जलपाईगुड़ी संसदीय सीट अस्तित्व में आई। क्षेत्र की जनता ने 1967, 1971 और 1998 के आमचुनाव में कांग्रेस का परचम लहराया था। जबकि अधिकांश चुनावों में माकपा की जीत होती रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन ने माकपा के महेन्द्र कुमार राय को करारा शिकस्त देकर निर्वाचित हुए थे। बर्मन ने 4,94,773 (38.00 फीसदी) मतों के साथ जीत हासिल की थी जबकि माकपा के राय को 4,25,167 (32.65 फीसदी) मत मिले थे।