scriptहीरालाल सेन ने बोए फिल्म निर्माण की विधा के बीज | hiralal sen the first men of india behind camera was from bengal | Patrika News

हीरालाल सेन ने बोए फिल्म निर्माण की विधा के बीज

locationकोलकाताPublished: Sep 22, 2018 06:06:42 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

हीरालाल सेन ने 1890 में कोलकाता में फोटोग्राफी स्टूडियो तैयार किया जिसे नाम दिया एचएल सेन एंड ब्रदर्स।

हीरालाल सेन ने 1890 में कोलकाता में फोटोग्राफी स्टूडियो तैयार किया जिसे नाम दिया एचएल सेन एंड ब्रदर्स।

हीरालाल सेन ने बोए फिल्म निर्माण की विधा के बीज


कोलकाता. आज बॉलीवुड अपने विश्वस्तरीय तकनीशियनों की मदद से बेहतरीक तकनीक वाली फीचर फिल्मों का निर्माण कर रहा है। उसकी नींव तैयार करने में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्होंने अपना सब कुछ झोंक कर फिल्म निर्माण की विधा के बीज बोए। उनमें से ही एक नाम था हीरालाल सेन। बंगाल की धरती में जन्म लिए सेन ने कैमरे की ताकत और उसके दृश्यांकन की सम्मोहनी शक्तियां पहचानी थीं। हीरालाल सेन ने 1890 में कोलकाता में फोटोग्राफी स्टूडियो तैयार किया जिसे नाम दिया एचएल सेन एंड ब्रदर्स। कैमरे की तस्वीरों के अद् भु संसार में प्रवेश कर चुके हीरालाल सेन को जुलाई 1896 में कोलकाता में पहली बार प्रदर्शित विदेशी फीचर फिल्म देखने का मौका मिला। फिल्म देखकर अभिभूत हुए हीरालाल ने फिल्म निर्माण में उतरने की ठान ली। विदेशी फिल्मकारों से मदद नहीं मिली तो हीरालाल ने ५ हजार रुपए में जरूरी उपकरण खरीदे। 1898 में हीरालाल ने रॉयल बॉयोस्कोप कम्पनी बनाई जिसमें विदेशों की फिल्में दिखाई जाती थीं। 1900 आते आते हीरालाल सेन फिल्म निर्माता बन चुके थे। अपने भाइयों की मदद से उन्होंने समाजसुधार की राह पर चल उठे बंगाल के भद्र लोक की जीवन संस्कृति में प्रवेश कर चुके मनोरंजन के माध्यम थिएटर की प्रस्तुतियों को कैमरे में कैद करना शुरू किया था। इस काम में क्लासिक थिएटर के मालिक और नाट्यकर्मी अमरेन्द्रनाथ दत्ता का उन्हें सहयोग मिला। यह वही दौर पर था जब 18 सदी के अंतिम दशक में राष्ट्रवादी शक्तियां मजबूत हो रही थीं। देशी आंदोलन का बीज कहीं बोने का इंतजार कर रहा था। मजे की बात यह थी 1890 से लेकर 1917 तक के बीच के जिस दौर में हीरालाल सेन कलकत्ता में सक्रिय थे उस दौरान सिनेमा पर नियंत्रण का कोई कानून भी तैयार नहीं हुआ था। इसलिए उन्हें व उनके जैसे बहुत से लोग जो फिल्मों के संसार में कदम रख चुके थे के लिए काम करने में कहीं कोई सरकारी अंड़ंगा नहीं था। ज्यातार आयातित कैमरे, उनके रोल व अन्य उपकरणों के सहारे शूटिंग हो जाती। शूटिंग के लिए थिएटर प्रस्तुतियों के भारतीय और यूरोपियन कलाकारों के रूप में उम्दा कलाकार मौजूद थे और सजीव चित्रों को मनोरंजन का साधन मान रहा दर्शक वर्ग भी तैयार हो रहा था। १९०१ से १९०४ के बीच उन्होंने भरमार, हरिराज, बुद्धदेव जैसी फिल्में बनाईं। इसी दौरान उनकी सबसे लंबी फिल्म अलीबाबा और ४० चोर भी तैयार हुई।
हीरालाल सेन ने देश की पहली राजनीतिक फिल्म का भी निर्माण किया। कोलकाता के टाउन हॉल में भारत बंटवारे के विरोध में तैयार की गई फिल्म 22 सितम्बर 1905 को प्रदर्शित की गई।
हीरालाल सेन की कम्पनी ने देश की पहली विज्ञापन फिल्म का भी निर्माण किया। जवा कुसुम तेल और एडवर्ड टॉनिक की विज्ञापन फिल्में थिएटरों में फिल्मों के बीच में दिखाई जाती रहीं। 1913 में हीरालाल सेन की कम्पनी ने अपनी आखिरी फिल्म बनाई। उस दौर में उनके रॉयल बॉयोस्कोप को जेएफ मदन के एलफिंस स्टोन बॉयोस्कोप से कड़ी टक्कर मिल रही थी। रॉयल प्रतियोगिता में नहीं टिक पाया। हीरालाल सेन भी कैंसर के शिकार हो गए और 1917 में उनकी मौत से पहले हुए अग्रिकांड में उनका पूरा का पूरा रचनासंसार खत्म हो गया। बची रही तो केवल जीजिविषा जिसने आने वाले वर्षों में सिनेमा के विस्तृ़त होने वाले फलक के लिए नए नए चितेरे तैयार किए।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो