महानगर में अधिकतर निजी अस्पताल अपने नर्सिंग कॉलेज में ही नर्सों को प्रशिक्षण देते हैं, उसके आधार पर नियुक्ति की जाती है। नर्स की नियुक्ति के लिए देश भर से लड़कियां आती हैं। दक्षिण भारत से सबसे अधिक लड़कियां नर्स के प्रशिक्षण के लिए आती हैं। किल्लत के कारण बंगाल में नर्सों को अतिरिक्त ड्यूटी करनी पड़ती है। इमरजेंसी ड्यूटी बताकर नर्सों को छुट्टी भी बहुत कम दी जाती है।
करने पड़ते 16-17 घंटे काम
नर्सेस यूनिटी की प्रमुख रिमा नाथन ने बताया कि 16-17 घंटे काम करने पड़ते हैं, लेकिन छुट्टी बहुत कम मिलती है। अधिकतर नर्स बंगाल के बाहर से आती हैं, इसलिए उनको ऑफ डे में भी काम के लिए बुला लिया जाता है और बाद में छुट्टी का वादा किया जाता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है।
नहीं मिलती छुट्टी
छुट्टी मांगने जाने पर परेशानी होती है। उल्लेखनीय है कि गुरुवार को आमरी अस्पताल में काम के दबाव में एक नर्स की अस्पताल में ही मौत हो गई। आरोप है कि अपने ही अस्पताल ने उसका इलाज नहीं किया। इलाज कराने ईएसआई जाने को कहा।
दबाव में काम छोड़ती नर्सें
काम के दबाव में महानगर से बहुत सारी नर्सों ने काम छोड़ दिया है। महानगर के निजी अस्पतालों से प्रति वर्ष 100 से 120 नर्स काम छोडक़र जा रही है। सबसे अधिक काम छोडऩे वाली नर्स बेलव्यू की है जबकि आमरी में 40-45 नर्स प्रति वर्ष काम छोडक़र जाती है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि काम का अधिक दबाव होता है क्योंकि अस्पताल में हर रोज रोगी आते है, उनको नहीं देखने पर या लौटा देने पर भी समस्या आती है। नर्स की कमी भी है, जरूरत के अनुसार नर्स नहीं होने से काम का बोझ बढ़ जाता है।