लेन-देन पर है नजर रिपोर्टों के मुताबिक पूर्वोत्तर में आतंक की अर्थव्यवस्था 350 से 400 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की है। असम के कोकराझार और चिरांग जिलों के अधिकारियों ने बताया कि यहां बोडोलैंड में एनडीएफबी गुट काफी सक्रिय हैं, इसलिए वे बैंकों में हो रहे लेन-देन पर पैनी नजर रखे हुए हैं। हालांकि अब तक ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है।
नोट बदलवाने की कोशिश सूत्रों के अनुसार, एनडीएफबी जैसे आतंकी गुटाें की कोशिश उन लोगों से नोट बदलवाने में लगा है जिनके पास बैंक अकाउंट है। बैंकों में लगी कतार में ऐसे कई लोग देखे जा सकते हैं। खुफिया विभाग के सूत्रों ने कहा, ‘हम बैंकों में होने वाले संदिग्ध लेन-देन पर कड़ी नजर रख हुए हैं। यह गुट ऑपरेशन ऑल आउट के निशाने पर रह चुका है।’
दिसम्बर 2014 में एनडीएफबी द्वारा आदिवासियों के किए गए नरसंहार के बाद भारतीय सेना, अर्द्धसैनिक बलों और असम पुलिस ने ऑपरेशन को अंजाम दिया था। इस दौरान करीब 90 आतंकियों और दलालों को गिरफ्तार किया गया था, जिसने बोडोलैंड की आजादी के लिए लड़ने वाले इस गुट की कमर तोड़ कर रख दी थी। यह गुट कमजोर तबकों को निशाना बनाता रहा है।
आतंकी गुटों के पास करोड़ाें रुपए उच्चस्तरीय सूत्र ने बताया एनडीएफबी से निपटने में सुरक्षा बलों और एजेंसियों को बड़े पैमाने पर सफलता हासिल हुई है। इसे उल्फा (वार्ता विरोधी) और एनएससीएन (के-खपलांग) की तरह फंडिंग भी नहीं मिल रही, जो सुरक्षा एजेंसियों से बचने के लिए म्यांमार में डेरा डाल कर बैठे हैं। सूत्रों के अनुसार नगा रोधी आतंकी संगठन एनएससीएन (के) और उल्फा के पास नोटों के ढेर लगे हैं। म्यांमार के काजां में सीमा के साथ लगे एनएससीएन (के) के पास कितना पैसा होगा, यह अनुमान नहीं लगाया जा सका है जबकि उल्फा के पास 8 करोड़ रूपए की नकदी जमा है।
सीमा पार भी भेजा जा सकता है पैसा सूत्रों के अनुसार, सरकार के इस कदम से सबमें एक तरह का खौफ बैठा हुआ है और सुरक्षा एजेंसियों को आशंका है कि इन आतंकी गुटों ने हो सकता है कुछ पैसा सीमा पार भेज दिया हो और अब उसकी तस्करी कर उसे नए नोटों से बदलने की कोशिशें की जाएंगी, जो खासतौर पर इतनी निगरानी के बीच बहुत मुश्किल है।
आदिवासियों से मदद की उम्मीद एनएससीएन (के) प्रतिबंधित गुट है और वार्ता के पक्षधर नागा संगठन एनएससीएन (आईएम) के बीच फिलहाल सीजफायर के हालात हैं। सूत्रों के अनुसार इन गुटों के लिए पुराने नोटों को नए नोटों से बदलना अपेक्षाकृत आसान होगा, क्योंकि आदिवासी उनके समर्थक हैं, जिन्हें आयकर से छूट प्रप्त है। बावजूद इसके संदिग्ध लेन-देन की तो जांच होगी ही ताकि मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य आपराधिक गतिविधि को उजागर किया जा सके।
नोटबंदी से लूट खसोट बंद नकदी की कमी से जूझ रहे उल्फा के वार्ता विरोधी संगठन ने 15 नवम्बर को तिनसुकिया के चाय बागानों के मजदूरों के लिए नकदी ले कर जा रही एक वैन पर गोलियों की बौछार कर डाली। मजेदार बात यह है कि सुरक्षा अधिकारियों ने कहा, ‘नोटबंदी से दूसरे अवैध धंधों के रास्ते खुल गए हैं, लेकिन लूट खसोट पर पाबंदी लग गई है क्योंकि लोग उन्हें पुराने ही नोट दे रहे हैं, जिसकी उनके लिए कोई कीमत ही नहीं है।’