200 साल पुराने इस मंदिर की खास परम्परा रही है। हर रोज रात 12 बजे के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है और सुबह ठीक 4 बजे मंगल आरती के वक्त कपाट दोबारा खुल जाता है। मंदिर का कपाट बंद रहने के दौरान ही कलाकार गर्भगृह को सजाने संवारने का काम करते थे।
गर्भ गृह में 250 किलो चांदी- कालीघाट मंदिर कमेटी के अनुसार गर्भ गृह को सजाने संवारने में एक तरफ राजस्थानी कलाकारों की नक्कासी और दूसरी ओर मां काली का सिंघासन और छतरी भक्तों को आकर्षित कर रही है। इसमें करीब 250 किलो चांदी का इस्तेमाल किया गया है। देशी शक्ति पीठों में से एक कालीघाट का काली मंदिर ङ्क्षहदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
यह है मान्यता-
यह है मान्यता-
माना जाता है कि कालीघाट इलाके की इस जगह पर माता सती के दाएं पैर की चार अंगुलियां गिरी थी। इस कारण यह शक्ति के 52 शक्तिपीठों में शामिल है। यहा मां काली के विकराल रूप के दर्शन होते हैं। देवी की लम्बी जीभ सोने की बनी हुई है, जो बाहर निकली हुई है। हाथ और दांत भी सोने से ही बने हुए हैं। यहां मां की मूर्ति का चेहरा श्याम रंग का है। आंखें और सिर सिंदूरी रंग के हैं। धार्मिक मान्यताओं के कारण देवी को स्नान कराते समय प्रधान पुरोहित की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। यह मंदिर अघोर क्रियाओं और तंत्र-मंत्र के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्र की महाअष्टमी के दिन मंदिर में पशु बलि की परम्परा रही है।