मुग्ध कर देने वाली मुस्कान की धनी मदर टेरेसा की जीवनी लिखने वाले भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला के मुताबिक उनसे मुलाकात में उन्होंने गौर किया कि मदर टेरेसा की साड़ी में कई जगह रफ़ू थे। जब इसका कारण पूछा तो बताया गया कि संगठन की सिस्टर्स के पास तीन साडिय़ां ही होती हैं। एक पहनते हैं, दूसरी धोते हैं तीसरी खास मौकों पर इस्तेमाल की जाती हैं।
मदर टेरेसा हर रोज ज्यादा से ज्यादा चार या पांच घंटे ही सोती थीं। उनके करीबी उन्हें रात १२ बजे फ़ोन करें तो वे ही उठाती थीं। वो सुबह साढ़े पांच बजे से प्रार्थना में लग जाती थीं जो साढ़े सात बजे तक चलती थी।
हमेशा दीन दुखियों की सेवा करने वाली मदर टेरेसा का सेंस ऑफ़ ह्यूमर जबरदस्त था। वे गंभीर से गंभीर मौकों को हल्के से लेती थीं। मिशनरी में नई नियुक्तियों के समय वे सहयोगियों में सेंस ऑफ़ ह्यूमर की खोज जरूर करती थीं। हल्के फुल्के प्रसंगों पर चुटकुलेबाजी उन्हें अच्छी लगती थी। इसका कारण उनके शब्दों में यह था कि वे गऱीबों के पास उदास चेहरा ले कर नहीं जा सकतीं।
उनका खाने में खिचड़ी, दाल और दस बीस दिन में एक बार मछली शामिल होती थी। मछली कोलकातावासियों का पसंदीदी भोज्य है। उन्हें चाकलेट प्रिय थे। वो जब गुजऱीं, तो उनकी मेज के ड्राअर में चॉकलेट का स्लैब मिला।
यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में 26 अगस्त 1910 को जन्मीं एग्नेस गोंझा बोयाजिजू बाद में मदर टेरेसा बनीं। वे रोमन कैथोलिक नन थीं। जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। 18 वर्ष की उम्र में लोरेटो सिस्टर्स में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनीं थी। भारत आकर कोलकाता के सेंट मैरीज हाईस्कूल में पढ़ाने के दौरान कॉन्वेंट के बाहर दरिद्रता देख वे विचलित हुईं। उन्होंने झुग्गी बस्तियों में जाकर सेवा कार्य शुरू कर दिए। सन 1948 में उन्होंने बच्चों का स्कूल खोला। उसके बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी स्थापित की। जिसके बाद सेवा कार्य जारी रखे। वर्ष 1996 तक उनकी संस्था ने करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले। उन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। मदर टेरेसा का देहावसान 5 सितंबर 1997 को हुआ था।