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कोलकाता में अपनाने का गुण है। जैसा भी है अपना ही लगता है। भले ही हम राजस्थान के हों पर अब कोलकाता ही भाता है। कार्य संस्कृति सुधर जाए तो क्या कहने।
वेंकट रतेरिया, व्यवसायी
कोलकाता को खुद से अलग नहीं मानती। इसकी गलियां, बाजार व स्ट्रीट फूड सभी कुछ हर राज्य से अलग है। यहां पर लोगों आपस में प्रेम है। हमें नहीं लगता है कि हम यहां के नहीं है। बंगाल किसी भी मायने में खुद से अलग नहीं है।
नीलम वर्मा, गृहिणी
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कोलकाता बोलने से ही एक मिठास का एहसास होता है। यहां का अड्डा, यहां की संस्कृति, यहां के कला प्रेमियों का जमावड़ा सबकुछ अपने आप में अनोखा लगता है। कहीं भी घूम-फिरकर आएं जब कोलकाता पहुंचते है तो बिल्कुल मां की दुलार की तरह महसूस होता है।
काकुली दास, उद्यमी
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राजस्थान के सीकर के पास के मूल निवासी हैं। जन्म कोलकाता में ही हुआ है, पढ़ाई भी और व्यवसाय भी। अच्छा लगता है पर कभी-कभी लगता है कि यहां का विकास थमा हुआ है। स्कोप नहीं दिखता तो लगता है कि कोलकाता से चले जाएं।
रोहित आसट, बिजनेस
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उत्तर कोलकाता, दक्षिण कोलकाता की पारम्परिक इमारतें, यहां की संस्कृति, खुलापन, कला के प्रति लोगों की दीवानगी सबकुछ मिलाकर अपना शहर लगता है। यहां पर कई समस्याएं हैं फिर भी यह आशा है कि स्थितियों में बदलाव आएगा।
सौरभ खरवार, वकील
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यहां का माहौल अलग है। एेतिहासिक धरोहर की झलक आज भी यहां नजर आती है। कितने ही महान विभूतियां यहां पर जन्मी हैं। वहीं पर खुद की मौजूदगी होने से रोमांच महसूस होता है।
श्याम हरिजन, नौकरी पेशा
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