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बिहार से छठ की महिमा पहुंची बंगाल

locationकोलकाताPublished: Nov 05, 2018 10:36:45 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

सूर्योपासना के महापर्व छठ की तैयारियों में जुटा सिटी ऑफ ज्वॉय-‘कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए..’ लोकगीत से गूंजेगा महानगर-पर्व के मद्देनजर घाटों की सफाई युद्धस्तर पर-छठ पर विशेष रिपोर्ट

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बिहार से छठ की महिमा पहुंची बंगाल


कोलकाता (शिशिर शरण राही). वैसे तो उदित होते सूर्य की पूजा सदियों से हर देश व राज्य में होती आ रही है, लेकिन सूर्योपासना का महापर्व ‘छठ’ हिन्दू धर्म का एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें अस्तचलगामी सूर्य को भी अघ्र्य दिया जाता है। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला पर्व है। बिहार-झारखंड से इसकी शुरूआत हुई और आज ‘छठ’ की महिमा बंगाल, उप्र, दिल्ली, राजस्थान, मप्र के साथ-साथ पूर्वोत्तर के क्षेत्रों तक फैल गई है। अब छठ पूजा में हिन्दीभाषियों के साथ बांग्लाभाषी भी काफी संख्या में शामिल होने लगे हैं। हालांकि छठ पर्व में अभी लगभग एक सप्ताह शेष है, लेकिन कोलकाता, हावड़ा, बेलूड़, हुगली सहित पूरे बंगाल में इसकी तैयारी में श्रद्धालु अभी से जुट गए हैं। व्रती महिलाओं के घर के युवा गंगा और तालाबों के किनारे पूजा की बेदी बनाने में युद्धस्तर पर जुट गए हैं। इस त्योहार में फलों की महत्ता को देखते हुए कारोबारियों ने हर प्रकार के फल मंगाकर अभी से अपनी दुकानों में स्टॉक करना शुरू कर दिया है। वहीं व्रती महिलाएं पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री और कपड़े को तैयार करने मे जुटी हैं। पर्व के मद्देनजर घाटों की साफ-सफाई युद्धस्तर पर कराई जा रही है।
निर्मल गंगा चेतना मंच करेगा अल्पाहार, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था

पिछले साल की तरह ही इस बार भी निर्मल गंगा चेतना मंच की ओर से 13 नवंबर को सुबह 11 बजे से ही बाली के पाल घाट पर गंगा घाट की साफ-सफाई सहित धुलाई की जाएगी। निर्मल गंगा चेतना मंच की महासचिव नीलिमा सिन्हा ने पत्रिका संवाददाता को सोमवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि 2014 से ही कोलकाता, बेलूड़, हावड़ा, हुगली, बाली सहित बंगाल के अनेक स्थानों में मंच की सदस्यों की ओर से छठ पूजा के मद्देनजर घाटों की सफाई सहित सेवा कार्य किए जा रहे हैं। छठ पूजा में व्रतियों को किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए घाटों की साफ-सफाई, मरम्मत, सौंदर्यीकरण, प्रकाश की सजावट की जा रही है। 13 नवंबर को संध्या वेला के छठ अघ्र्य पर चाय-बिस्कुट और नाश्ते के साथ ही श्रद्धालुओं की सुविधार्थ शुद्ध पेयजल की व्यवस्था मंच की ओर से की गई है। छठ के दौरान घाट पर आने वाले श्रद्धालुओं को इसे वितरित किया जाएगा। छठ पर 14 नवंबर को सुबह के अघ्र्य के दौरान भी यही व्यवस्था रहेगी। नीलिमा ने बताया कि मंच के कार्यकर्ता छठ व्रतियों और श्रद्धालुओं की सेवा के लिए घाटों पर तत्पर रहने के साथ व्यवस्थाओं पर नजर बनाए रखेंगे। उन्होंने कहा कि मंच की अध्यक्ष कुसुम मोदी, संस्थापक सदस्य किशन किला, प्रकाश किला, शशि अग्रवाल, अंशू जोशी, अनिता गोयनका, आशीष चतुर्वेदी, संजय गोयनका, संजय मंडल, शंभू मोदी, मीना चौरसिया, मंजू जायसवाल, मंजू शर्मा, रंजना अग्रवाल और आभा सिंह आदि छठ के दौरान सेवा कार्यों में सक्रिय रहेंगे। उधर छठ पर्व की तैयारियों को लेकर कोलकाता नगर निगम ने भी उच्चस्तरीय बैठक केएमसी आयुक्त खलील अहमद के नेतृत्व में की। महानगर में सभी गंगा घाटों में होने वाले छठ पूजा को देखते हुए 2 दिन विशेष रूप से साफ-सफाई, सुरक्षा के इंतजाम रहेंगे।
पर्व नहीं यह है महापर्व

इसे पर्व की बजाए महापर्व कहने के पीछे मुख्य तर्क यह है कि इसमें शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। छठव्रती सुहागिनें 36 घंटे का व्रत रखती हैं। किसी भी धातु के बर्तन के स्थान पर मिट्टी के पात्र में खीर-पुड़ी, सुपाड़ी, लौंग व पान का पत्ता रखकर सूर्यदेव की पूजा की जाती है। व्रतियों के सभी भोजन भी कच्ची मिट्टी के नए चूल्हे पर ही बनते हैं। इस अनुष्ठान में या तो गंगाजल या कुएं के जल और नमक में सेंधा व शक्कर के स्थान पर गुड़ का ही प्रयोग होता है। भविष्य पुराण में भी इस पर्व का उल्लेख है, जिसके अनुसार धौम्य ऋषि ने द्रौपदी को बताया था कि सुकन्या ने इस महापर्व को किया। बाद में द्रौपदी ने भी इस पर्व का पालन किया, जिसके कारण वह 88 सह ऋषियों का स्वागत कर युधिष्ठिर की मर्यादा रख शत्रुओं के समूल नाश का आसीर्वाद पा सकी। इस महापर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह न तो किसी पंडित या न वैदिक मंत्रों के साथ होता है, बल्कि इसे लोकगीतों और लोकरीति से मनाया जाता है। इसे महिलाएं और पुरुष दोनों मनाते हैं। मध्य बिहार स्थित औरंगाबाद में देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जो पूर्वभिमुख न होकर पश्चिमोभिमुख है। राजधानी पटना में गंगा और अन्य शहरों में नदियों-तालाबों के किनारे छठ करने वालों का सैलाब उमड़ता है। लाउडस्पीकरों से छठ के लोकगीतों को छोडक़र अन्य कोई फिल्मी गीत नहीं बजते। भोजपुरी, मैथिली और मगही जैसी लोकभाषाओं के पारंपरिक छठ गीत चारों ओर गूंजते हैं। पटना हो या आरा, छपरा हो या टाटा हर शहर-हर गली-गली मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा के गाए छठ के इन गीतों से गूंज उठता है.……‘कांचहि के बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए, उग..न सुरूज देव…अरग के बेर…मारबउ रे सुगवा धनुक से, सुग्गा गिरे मुरझाए..’
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