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‘विषाद को योग बनाती है गीता’

locationकोलकाताPublished: Jan 03, 2019 10:40:13 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

प्रसिद्ध उद्योगपति कुमारमंगलम बिड़ला की मौजूदगी में कला मंदिर में गीता पर प्रवचन–स्वामी गिरीशानंद ने पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में शामिल युवा पीढ़ी पर किया कटाक्ष

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‘विषाद को योग बनाती है गीता’

कोलकाता. गीता, विषाद को योग बनाती है और अगर विषाद को भगवान से जोड़ दें, तो वह विषाद योग में बदल जाता है। कला मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में कला मंदिर सभागार में गुरुवार को गीता पर प्रवचन देते हुए स्वामी गिरीशानंद सरस्वती महाराज ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि जब तक हम अपना रिमोट दूसरों के हाथ में रखेंगे, तब तक उसी के अनुरूप चलना होगा। शास्त्र के अनुसार श्रद्धापूर्वक कर्म करने पर आनंद मिलता है। ईश्वर को पहले मानना (श्रद्धा) चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए। पहले संसार के विषय में जानें, फिर मानें। जिसका जैसा अंत:करण होगा, वैसी ही श्रद्धा होगी। गिरीशानंद ने कहा कि आज जब कोई विदेशी भारतीय परिधान धोती पहन कर हरे राम हरे कृष्ण…. गाता है तो सभी उसकी तारीफ करते हैं। जबकि यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज की युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में शामिल होकर खान-पान, पहनावा, बोलचाल, शिष्टाचार, संस्कार सहित अभिवादन आदि सभी भूल गई। आज की युवा पीढ़ी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि आज ....हाय बोल कर युवा एक-दूसरे से मिलते हैं और बाय बोल कर अलग। जबकि होना यह चाहिए कि हाय-बाय की जगह जय श्रीराम, जय श्रीकृष्ण, जय माता दी आदि का जयघोष करें। भोजन, संगति, स्वाध्याय, निवास, देशकाल के अनुसार श्रद्धा बनती है। भगवान का कोई सच्चा भक्त है, तो उसके ध्यान मात्र से ही प्रभु का दर्शन हो जाता है। अपने गुरु स्वामी अखंडानंद सरस्वती का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह ठीक है कि चुम्बक लोहे को खींचता है, पर जिस लोहे पर जंग लगी होती है, उसे वह खींच नहीं पाता। ये जंग हमारी कामवासनाएं और इच्छाएं हैं। उन्होंने कहा कि गीता हमारा प्राण है और अवसाद के क्षणों में गीतोपदेश हमारे विषाद को दूर कर देता है। इस दौरान प्रसिद्ध उद्योगपति कुमारमंगलम बिड़ला, मंजू-अरविंद नेवर, विनोद माहेश्वरी, सीताराम भुवालका, सज्जन सिंघानिया, विकास दीवान, दाऊलाल बिन्नानी, महावीर प्रसाद रावत आदि मौजूद थे।
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