script160 साल जीने वाले, पैदल मक्का और उत्तरी धु्रव तक गए बंगाल के इसी बाबा के आश्रम में मची भयानक भगदड़ | loknath ashram accident, baba lived 160 yrs. shown miracles in Bengal | Patrika News

160 साल जीने वाले, पैदल मक्का और उत्तरी धु्रव तक गए बंगाल के इसी बाबा के आश्रम में मची भयानक भगदड़

locationकोलकाताPublished: Aug 23, 2019 07:23:08 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

भारत भूमि में समय- समय पर महान साधु संत अवतरित होते रहे हैं। बंगाल (Bengal ) की पुण्य भूमि में ऐसे ही संत पैदा हुए जिनका नाम बाबा लोकनाथ ( Baba Loknath )है। सन 1730 में जन्मे लोकनाथ ने वर्ष 1890 में समाधि ली। बाबा के भक्त कहते हैं कि वे हर मुसीबत में साक्षात उनका साथ देते हैं। उनकी सीख समुद्र में, युद्धक्षेत्र में या फिर जंगल में जहां कहीं भी खतरा हो मुझे याद करो मैं प्रकट हो जाउंगा। इस पर भरोसा करने वालों की संख्या करोड़ों में है। शुक्रवार की सुबह उनके कचुआ आश्रम में जलाभिषेक करने 6 लाख लोग जुटे हुए थे।

160 साल जीने वाले, पैदल मक्का और उत्तरी धु्रव तक गए बंगाल के इसी बाबा के आश्रम में मची भयानक भगदड़

160 साल जीने वाले, पैदल मक्का और उत्तरी धु्रव तक गए बंगाल के इसी बाबा के आश्रम में मची भयानक भगदड़

कोलकाता.
बंगाल (Bengal )में बाबा (Loknath )की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का पता लगाना हो तो दुकानों के नाम देखिए, गाडिय़ों के पीछे लिखे नारे देखिए। अमूमन 20 में से एक दुकान का नाम बाबा लोकनाथ स्टोर होगा। हर पांचवी या छठीं गाड़ी में जय बाबा लोकनाथ लिखा होगा। उनकी समाधि की तस्वीर होगी। आखिर बाबा लोकनाथ इतने लोकप्रिय क्यों हैं। वे कौन से कारण हैं जो लंबे वामपंथी आंदोलन व शासनकाल के दौर में बाबा लोकनाथ जैसे हठयोगी के विचार और भक्तों की संख्या बढ़ाते रहे। इसका पता लगाने के लिए जब खोज शुरू हुई तो सामने आई ऐसी बातें जो उनके भक्तों को उनपर अटूट श्रद्धा के लिए प्रेरित करती हैं। बाबा लोकनाथ से जुड़े संस्मरण जो उन्हें ऊंचा योगी बताते हैं।
बाबा लोकनाथ के भक्त सुभाष बोस बताते हैं कि उनकी सीख जब भी खतरे में रहें तो मुझे याद करें मैं समुद्र में, युद्ध क्षेत्र में या जंगल मे तुम्हारी मदद के लिए साक्षात प्रकट हो जाउंगा, उनके भक्तों की प्रेरक है। भक्त मानते हैं बाबा उनकी समस्या का समाधान करते हैं। कलयुग में ऐसे महान संत मिलना मुश्किल है।
मक्का और इजरायल तक की पैदल यात्रा
बाबा लोकनाथ से जुड़े विचारकों के मुताबिक सनातन धर्म, वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण बाबा लोकनाथ हठयोगी थे। उन्होंने तीन बार इस्लाम के पवित्र तीर्थस्थान मक्का की यात्रा की। वे पर्सिया मौजूदा ईरान, इजरायल के पवित्र स्थल येरूशेलम भी गए। भक्तों का दावा है कि उन्होंने पैदल उत्तरी धु्रव तक यात्रा की। उनके अनुयायियों में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं।
हिमालय से आए गुरु को मुक्त करने
बाबा ने हिमालय में घोर तपस्या की। उन्होंने वहां साधकों को तैयार किया। जब उन्हें मालूम चला कि उनके बाल्यकाल के गुरु को परमज्ञान नहीं मिला है तो वे हिमालय से वापस लौटे और अपने गुरु को अगले जन्म में उन्हें दीक्षित किया।
समाधि लेकर मुक्त हुए
136 साल की उम्र में वे ढाका पहुंचे जहां धनाड्य परिवार ने उनका आश्रम तैयार किया। वहां वे भगवा कपड़े और जनेउ धारण कर आसन की मुद्रा में बैठते थे। अगले 24 साल उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा की। तरह तरह के चमत्कारों से उनकी समस्याएं दूरी की। उनके भक्तों के मुताबिक बाबा को किसी ने कभी पलक झपकते नहीं देखा था। 160 साल की उम्र में भी समाधि लेते समय गोमुख आसन पर बैठे बाबा की पलकें खुली हुई थीं। उन्होंने शरीर छोड़ दिया था।
जन्म व परिवार
लोकनाथ ब्रह्मचारी का जन्म सन 1730 में जन्माष्टमी के दिन कोलकाता शहर के उत्तर में कुछ मील की दूरी पर, बारासात के चाकला नामक गांव में हुआ था। उनके पिता रामनारायण घोषाल ने उन्हें संत बनाने के लिए 11 वर्ष की उम्र में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान, भगवान गांगुली को सौंप दिया जो पड़ोस के कचुआ नामक गांव में रहते थे। भगवान गांगुली उन्हें लेकर कोलकाता के कालीघाट ले आए और उन्हें वहां के मंदिरों के आसपास जंगलों में रहने वाले तपस्वियों के बीच अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया। लोकनाथ ने जंगलों और मैदानों में रहते हुए ब्रह्मचर्य और व्रत का पालन किया। अष्टांग योग से लेकर हठ योग के अविश्वसनीय कारनामे किए। शरीर के परमाणुओं और मन की प्रवृत्तियों को शुद्ध करने के संपूर्ण योगाभ्यास में 30 साल से अधिक समय लगा। लोकनाथ गहरी समाधि में परमात्मा में गहनतम अणु तक पहुंच सकते थे। अंत में वे हिमालय के लिए रवाना हुए और वहां बाबा ने आध्यात्मिक रोशनी की सबसे ऊंची चोटियों को छुआ और निर्विकल्प समाधि की स्थिति को प्राप्त किया, जो पूरे ब्रह्मांड या परमात्मा के साथ पूर्णता है। ज्ञानोदय के समय वे 90 वर्ष के थे।
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