इसके साथ ही आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार पर गिरफ्तारी की तलवार लटकता दिखाई दे रहा है। आगामी 23 मई के बाद पूछताछ करने के लिए उन्हें कभी भी गिरफ्तार करने में सीबीआई के रास्ते साफ हो गया है।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दायर की गई याचिका की पिछली सुनवाई करते हुए 15 मई को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश गोगोई, न्यायमूर्ति गुप्ता और न्यायमूर्ति खन्ना के खण्ड पीठ ने राजीव कुमार को गिरफ्तारी से बचने के लिए सुरक्षा कवच के रुप में दिए गए अपना आदेश वापस ले लिया था।
साथ ही गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार को सक्षम नीचली अदालत से संपर्क करने के लिए सात दिन का समय दिया था, जो 17 मई से शुरु हो कर सात दिन बाद यानी 23 मई को समाप्त हो जाएगा। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश गोगोई, न्यायमूर्ति गुप्ता और न्यायमूर्ति खन्ना की पीठ ने अपने फैसले में सीबीआई को सारधा घोटाले का साक्ष्य मिटाने के मामले में कानून के अनुसार काम करने का निर्देश दिया है।
क्या है राजीव कुमार का मामला
सीबीआई ने विधाननगर कमीशनरेट के आयुक्त रहने के दौरान आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार पर पश्चिम बंगाल में हुए हजारों करोड़ के सारधा चिटफंड घोटाला के साक्ष्य मिटाने का आरोप लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ करना चाहती है।
सीबीआई की टीम राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए उनके घर भी गई थी। लेकिन उस दौरान कोलकाता पुलिस सीबीआई टीम की भिड़ंत हो गई थी और पुलिस ने सीबीआई के अधिकारियों को ही हिरासत में ले लिया था। तब राजीव कुमार कोलकाता के पुलिस आयुक्त थे।
राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए सीबीआई के अधिकारियों के उनके घर जाने के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में धरना पर भी बैठी थी और इसे केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की अपनी सरकार के बीच लड़ाई का रुप दे दी। लेकिन बाद में ममता बनर्जी ने राजीव कुमार को कोलकाता के पुलिस आयुक्त पद से हटा कर उन्हें एडीजी सीआईडी बनाया गया।
लेकिन 14 मई को कोलकाता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो में हिंसा होने पर चुनाव आयोग ने चुनावी हिंसा रोकने में विफल होने के लिए राजीव कुमार को सीआईडी के एडीजी पद से भी हटा कर केन्द्रीय गृह मंत्रालय में भेज दिया।