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‘परमाणु बम से ज्यादा खतरनाक पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण’

locationकोलकाताPublished: Sep 10, 2018 10:27:06 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

मुनि कमलेश की खरी-खरी, पर्युषण पर्व पर मना भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव

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‘परमाणु बम से ज्यादा खतरनाक पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण’

कोलकाता. पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण आने वाली पीढ़ी में जहर घोल रहा है और इसका घातक परिणाम अणु-परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक है। राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने सोमवार को पर्युषण पर्व पर आयोजित भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संतान हमारा सबसे बड़ा धन है। माता-पिता के संस्कार ही बच्चों के जीवन में पुष्पित पल्लवित होते हैं। जैसा कुएं में पानी होगा वैसा ही बाल्टी में आएगा। यदि हमें राम जैसी संतान चाहिए, तो पहले स्वयं को दशरथ बनना होगा फिर चरित्रवान संतान प्राप्त होगा। मुनि ने कहा कि वे माता-पिता संतान के शत्रु हैं जो बुराइयां, नशा और चरित्रहीन जीवन का पालन करते हैं। मात्र जन्म देने से माता-पिता का फर्ज पूरा नहीं हो जाता। हमारा सर्वप्रिय धन पुत्र है, क्योंकि यदि वह सपूत हो गया तो खुद लाखों-करोड़ों कमा लेगा और कपूत निकला तो इज्जत-पैसा सब मिट्टी में मिला कर कुल को कलंकित कर देगा। मुनि ने कहा कि हम धन में पागल बनकर आधुनिकता के पाखंड में व्यसन और फैशन की अंधी दौड़ में खुद तो बर्बाद हो ही रहे हैं इसके साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी अंधे कूप में धकेलने का पाप कमा रहे हैं। राष्ट्रसंत ने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षा से ही संस्कृति की रक्षा होगी। ऐसे संस्कार का निर्माण होगा और उसी से चरित्र निर्माण संभव है। यदि पुत्र सपूत हो गया तो परिवार स्वर्ग बन जाएगा और कपूत हो गया तो नरक में जीवन जीने को मजबूर होना पड़ेगा। चरित्रहीन संतान कुल पर कलंक है। उसके दोषी कौन हैं? इसका चिंतन मनन करना होगा। जैन संत ने बताया कि आज के समय में परिवारों में संस्कार और संस्कृति का पतन गंभीर खतरा है।
शिक्षा प्रणाली संस्कार विहीन

शिक्षा प्रणाली संस्कार विहीन है। दूरदर्शन और फिल्में हिंसा, अराजकता, उद्दंडता, उच्छृंखलता जिस प्रकार परोस रही हैं वह बाल जीवन में जहर घोल रही है और उसी से अपराध, हिंसा, बलात्कार जैसी घटनाओं की बाढ़ आ रही है। दैनिक जीवन शैली में आध्यात्मिकता के साथ हमारा सौतेला व्यवहार बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि शिवाजी, महाराणा प्रताप आदि महापुरुषों के निर्माण में जीजामाता के संस्कार ऑक्सीजन से बढक़र काम आए। महापुरुषों के आदर्श में जीवन को आत्मसात किए बिना मनुष्य धन, वैभव, सत्ता और संपत्ति 3 काल में भी सुख-शांति प्रदान नहीं कर सकता। एक ओर जहां पूरी दुनिया हिंदुस्तान के आध्यात्मिकता का लोहा मानकर उसे अपनाने में आनंद महसूस कर रही है, वहीं हमारा दुर्भाग्य है उनके वमन को हम चाटते हुए गौरान्वित महसूस हो रहे हैंं। कौशल मुनि ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। जन्म कल्याणक पर लड्डू का प्रसाद वितरित किया गया। महिला मंडल की ओर से 14 सपनों का नाटिका श्वेता, राजेश घोड़ावत ने प्रस्तुत की। संचालन डॉक्टर जीएस पीपाड़ा ने किया।
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