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‘ग्रंथों-संतों के ज्ञान से अनुभव का ज्ञान सर्वोपरि ’

locationकोलकाताPublished: Oct 22, 2018 10:29:31 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

मुनि कमलेश की धर्मसभा

kolkata

‘ग्रंथों-संतों के ज्ञान से अनुभव का ज्ञान सर्वोपरि ’


कोलकाता. ग्रंथों और संतों के ज्ञान से अनुभव का ज्ञान सर्वोपरि होता है, जो जीवन में सैकड़ों चढ़ाव उतार और लंबे संघर्ष के बाद अनुभव की कसौटी पर खरा सोने की तरह कुंदन के रूप में हमें प्राप्त होता है। यह महापुरुषों के चरणों में बैठकर ही संभव हो सकता है। राष्ट्रसंत कमलमुनि कमलेश ने सोमवार को महावीर सदन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। मुनि ने कहा कि बड़ों के सान्निध्य में बिना मेहनत विरासत के रूप में हमें यह प्राप्त होता है। अनुभव का ज्ञान न डिग्री से मिल सकता है न स्कूली पाठ्यक्रम के माध्यम से। अनुभव का ज्ञान ठोकर खाते-खाते परिपक्वता के बाद ही प्राप्त होता है, जो परमात्मा के ज्ञान से बढक़र है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने 60 वर्ष की उम्र के बाद अनुभवी को स्थवीर पद से अलंकृत करते हुए पूजनीय माना है। अनुभव का ज्ञान प्रैक्टिकल के धरातल होता है और वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाता है। परिस्थितियों को देखते हुए उपयोग किया जाता है वही सबसे महान धर्म, तीर्थ है। मुनि ने कहा कि महापुरुषों के मार्गदर्शन में जो अपना जीवन व्यतीत करता है वह कई समस्याओं-संकटों से मुक्ति पा लेता है। पोथी के ज्ञान में अनुभव की ज्ञान में जमीन-आसमान का अंतर होता है। वह सभी ग्रंथों का सार होता है। जो उनके चरणों में निस्वार्थ भाव से समर्पित होकर उनका दिल जीतने के बाद ज्ञान का खजाना प्राप्त करता है वह वरदान स्वरुप होता है। उन्होंने कहा कि उनकी उपेक्षा परमात्मा का अपमान करने के समान है। हम प्रभु की मूर्ति के सामने 100 साल भी बैठ जाएं तो दर्शन हो सकता है, लेकिन मार्गदर्शन नहीं। कौशल मुनि ने मंगलाचरण और घनश्याम मुनि ने विचार व्यक्त किए। उधर मुनि ने इससे पहले कहा था कि गाय को राष्ट्रीय पशु नहीं, बल्कि राष्ट्रीय माता का दर्जा देना चाहिए। तभी गायों की स्थिति अच्छी होगी। पेड़ों को बचाने के लिए कानून है लेकिन गायों को बचाने के लिए कोई कानून नहीं है। वे कश्मीर से कन्याकुमारी सहित पूरे देश में 70 हजार किमी पदयात्रा कर चुके हैं।
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