आलसी प्रमादी अविनीत के लक्षण हैं : संत मुनि कमलेश
कोलकाता . स्वाति नक्षत्र की बूंद आग में गिरेगी नष्ट हो जाएगी, समुद्र में गिरेगी खारा पानी बनेगी, सांप के मुंह में गिरेगी जहर बनेगी और वही शीप के मुंह में गिरे तो मोती बनती है। वस्तु के साथ पात्र का भी अपने में महत्वपूर्ण स्थान है। महापुरुषों की पवित्र वाणी रूपी स्वाति नक्षत्र की बूंद के लिए पात्र बनना हमें जरूरी है। यदि हमारे में अहंकार ईष्र्या, क्रोध, लोभ की ज्वालाएं जल रही हैं। वह पवित्र ज्ञान भी हमारे लिए विकास के बजाय विनाश का काम करता है। मुनि कमलेश ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि विनय और सरलता आत्मसात कर धर्म का पात्र बना जा सकता है। इसके बिना खड़ा-खड़ा सूख जाए तो भी तीन काल में धर्म में प्रवेश नहीं हो सकता है। विनय से सद्बुद्धि का विकास होता है और अहंकार से दुर्बुद्धि का पनपना आग के साथ खेलने के समान हैं। राष्ट्रसंत ने कहा कि विश्व के सभी धर्म ग्रंथ और पंथ ने विनय को ही की धर्म का प्रवेश द्वार बताया। इसी को अपनाकर वह महापुरुष बने। अविनीत को ज्ञान देना जहरीले काले नाग को दूध पिलाने के समान है। आलसी प्रमादी अविनीत के लक्षण हैं मन मंदिर को करुणा वात्सल्य और सद्भाव का पवित्र स्थान बना लेंगे तो परमात्मा को ढूंढना नहीं पड़ेगा वह स्वयं ढूंढता हुआ आपके पास आएगा। कौशल मुनि ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। तपस्वी घनश्याम मुनि के 31 वां उपवास है। अखंड महामंत्र का जाप निरंतर चालू है। जितेंद्र मेहता, केवल चंद भू रट, राकेश मेहता, सुभाष वैद्य आदि ने सेवा का लाभ लिया। सी जगदीश जैन की ओर से प्रभावना वितरित की गई।