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जानिए बंगाल का बॉलीवुड कनेक्शन, नगीनों की खान रहा न्यू थिएटर

locationकोलकाताPublished: Sep 23, 2018 06:06:08 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

न्यू स्टूडियो ने ही सबसे पहले पाश्र्व गायन की तकनीक फिल्मों में अपनाई। 1935 में फिल्म धूप छांव के गीत स्टूडियो में रिकार्ड किए गए । पहले पूरा आर्केस्ट्रा सेट पर मौजूद करना पड़ता था ।

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जानिए बंगाल का बॉलीवुड कनेक्शन, नगीनों की खान रहा न्यू थिएटर

कोलकाता. बॉलीवुड के शुरूआती फिल्म कारखानों में शुमार कोलकाता के न्यू थिएटर के कंधों में तमगों की पूरी ऋंखला है। बिरेन्द्रनाथ सिरकार ने जब 10 फरवरी 1931 को न्यू थिएटर बनाया तो वे मनोरजंन के दृश्य माध्यम की उपयोगिता, पहुंच और बाजार को पहचान चुके थे। लंदन विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर लौटे सिरकार को फिल्म निर्माण का चस्का लग चुका था। कलकत्ता हिंदी सिनेमा के संघर्षशील सितारों का शहर बन चुका था। गायक, संगीतकार, अभिनेता, फिल्म निर्माण विधा के अन्य क्षेत्रों से जुड़े महारथी तैयार हो रहे थे। उन लोगों के लिए न्यू थिएटर दूसरे घर जैसा था।
फिल्म निर्माण के लिए जरूरी संसाधन मौजूद थे। जरूरी था तो उन्हें संगठित कर एक छत के नीचे लाना। यह काम न्यू थिएटर के संस्थापक ने भली भांति किया। सिरकार ने मनोजरंजन के साथ सामाजिक उद्देश्यों को हमेशा प्राथमिकता दी। ऐतिहासिक चरित्र जो उनदिनों की फिल्मों के प्रिय पात्र होते थे के अलावा सिरकार के न्यू थिएटर ने साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों का निर्माण किया। शरतचंद्र की अमर कृतियों पर आधारित कई फिल्मों के निर्माण ने न्यू थिएटर की लोकप्रियता में चार चांद लगाए।
न्यू थिएटर के संचालक फिल्मों का निर्माण पेशेवर तरीके से करते थे। अभिनेताओं के साथ मासिक अनुबंध शुरू करने वाले स्टूडियो ने फिल्म निर्माण के तकनीकी पक्षों पर खासा ध्यान दिया। यही वजह रही कि न्यू स्टूडियो के साथ काम करने वाले तकनीशियनों, सहायक निर्देशकों की पूरी फौज बॉलीवुड मेंअगले कुछ दशकों तक छायी रही। यहां यह बताना जरूरी है कि न्यू स्टूडियो ने ही सबसे पहले पाश्र्व गायन की तकनीक अपनी फिल्मों में अपनाई। 1935 में फिल्म धूप छांव के गीत स्टूडियो में रिकार्ड किए गए और फिल्म की शूटिंग के समय उन्हें सेट पर बजाया गया। नहीं तो पहले पूरे का पूरा आर्केस्ट्रा सेट पर मौजूद करना पड़ता था, कैमरे की नजरों से दूर आर्केस्ट्रा बजता और कलाकार होठों पर नगमों के बोल बोलते। फिल्म निर्माण के पाश्र्व गायन के क्षेत्र में की गई यह शुरूआत क्रांतिकारी साबित हुई। रिकार्डिंग के स्टूडियो में गायन की प्रतिभाएं सहजता से गाने रिकार्ड करने लगीं।
सिरकार न्यू स्टूडियो की शुरुआत के दिनों से ही फिल्म निर्माण में ज्यादा दखलंदाजी नहीं करते। निर्देशकों को कभी भी दबाव में नहीं रखते थे। यही वजह थी अपने समय के श्रेष्ठ स्टूडियो के मालिक होने के बावजूद सिरकार ने कभी भी न तो किसी फिल्म का निर्देशन किया और न ही किसी फिल्म में अभिनय किया। इसके बावजूद उनके स्टूडियो की फिल्मों के लिए न तो पैसों की कमी सामने आई और न ही रचनाधर्मिता पर किसी तरह की बंदिश। इसी छूट की वजह से उन दिनों के ज्यादातर प्रतिभाशाली निर्देशकों के लिए न्यू थिएटर अपनी कला को प्रदर्शित करने का माध्यम भी था और पूजने का मंदिर भी।
न्यू थिएटर से जुडक़र अपना मुकाम हासिल करने वालों में पीसी बरुआ, बिमल राय, कुंदनलाल सहगल, कानन देवी, देवकी बोस, पृथ्वीराज कपूर, छवि विस्वास, बसंत चौधरी केसी दे, प्रेमकुमार अतर्थी, निथिल बोस, संगीतकार आर सी बोराल, पंकज मल्लिक, तिमिर बरन भी शामिल हैं।
1931 में हुई स्थापना से लेकर 1955 तक न्यू थिएटर ने कोलकाता में 150 से ज्यादा फिल्में बनाई। तीस के दशक में जहां हर सफल बांग्ला फिल्म का हिंदी में रीमेककिया गया वहीं 1940 के दशक में यह गति धीमी हुई। वजह मुम्बई हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में गति पकडऩे लगा। बावजूद इसके न्यू स्टूडियो के साथ काम कर चुकी फिल्मकारों की एक पूरी पीढ़ी अगले दशकों तक सिनेमाई जगत को अपने अनुभव और तकनीक से रोमांचित करने को तैयार हो गई थी। न्यू थिएटर ने फिल्म निर्माण की जो मशाल कोलकाता में रहकर जलाई थी उसकी रोशनी ने बॉलीवुड को जगमग कर दिया।
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