नजर दक्ष आइपीएस अधिकारी पर
अब सभी लोगों की नजर इस दक्ष आईपीएस अधिकारी पर टिकी है कि वे किस तरह कोलकाता के इस बिगड़े माहौल को संभालेंगे और सामान्य करने का प्रयास करेंगे। हालांकि मनोज वर्मा की नियुक्ति रूटिन तबादले के तहत नहीं हुई है। प्रदर्शनकारी डॉक्टरों की मांग थी कि आरजी कर रेप-मर्डर में ठीक से अपनी जिम्मेवारी नहीं निभाने वाले तत्कालीन पुलिस आयुक्त विनीत गोयल को हटाया जाए। उनकी मांग पर ही मुख्यमंत्री ममता ने विनीत को हटाया और मनोज वर्मा को कोलकाता पुलिस की बागडोर सौंपी।
वाममोर्चा सरकार के भी थे पसंदीदा अधिकारी
लोग बताते हैं कि मनोज वर्मा प्रशासनिक दक्षता और साहसिक प्रवृत्ति के कारण वाममोर्चा सरकार के भी चहते अधिकारियों में से एक थे। जब जंगलमहल अशांत था तब वाममोर्चा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने मनोज वर्मा पर अति भरोसा करते हुए उन्हें पश्चिम मेदिनीपुर जिले का पुलिस अधीक्षक बनाया था। उस समय पूरे जंगल महल में माओवादियों की गतिविधियां चरम पर थीं। मनोज ने उस गतिविधि को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। ममता सरकार के दौरान माओवादी नेता किशनजी से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स की जिम्मेदारी भी संभाली थी। इसके बाद डीआइजी पद पर पदोन्नत होने के बाद वे सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट में चले गए। वे 2017 में दार्जिलिंग के आईजी बने। मनोज ने पहाड़ में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलन को भी काफी कुशलता से संभाला। 2019 में उनको ममता सरकार ने अशांत बैरकपुर का पुलिस कमिश्नर बनाया। तब भाटपाड़ा और कांकीनाड़ा में अक्सर बम विस्फोट होते थे। फायरिंग होती थी। जिसको मनोज वर्मा ने शांत किया।
मुख्यमंत्री सुरक्षा की भी संभाली जिम्मेवारी
जंगल, पहाड़, शिल्पांचल से होते हुए मनोज वर्मा फिर नवान्न पहुंचे। राज्य सचिवालय नवान्न पहुंचने पर उनको अति महत्वपूर्ण काम में लगाया गया। उनको मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी गई। यहीं से वे ममता की गुड लिस्ट में शामिल हो गए। इसके बाद उनको बंगाल पुलिस की कानून-व्यवस्था की जिम्मेवारी देते हुए उनको आईजी लॉ एंड ऑर्डर बनाया गया। अब वे कोलकाता के पुलिस आयुक्त हैं।