इस सीट पर सीपीएम का लंबे समय तक वर्चस्व रहने के कारण इसे लेफ्ट का गढ़ कहा जाता था। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की आंधी ने यहां से लेफ्ट का मोर्चा उखाड़ फेंका और टीएमसी के उम्मीदवार चौधरी मोहन जटुआ यहां से सांसद बने। उसके बाद से लेकर अब तक इस सीट पर टीएमसी का कब्जा रहा है।
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– 1962 में अस्तित्व में आई थी सीट :-
वर्ष 1962 में मथुरापुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। उस चुनाव में कांग्रेस के पुर्नेंदु शेखर नस्कर यहां से पहले सांसद बने थे। वर्ष 1967 के चुनाव में सीपीआई के कंसारी हल्दर ने यहां से जीत हासिल की। वर्ष 1971 से लेकर 1984 तक इस सीट पर सीपीएम का राज रहा। हालांकि 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर बाजी मारी और कांग्रेस के मनोरंजन हल्दर यहां से जीतकर सांसद बने। इसके बाद वर्ष 1989 से लेकर 1999 तक लगातार पांच बार सीपीएम की राधिका रंजन ने जीत हासिल की। 2004 के चुनाव में सीपीएम के वासुदेव बर्मन जीते लेकिन 2009 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के चौधरी मोहन जटुआ ने पहली बार टीएमसी को यहां से जीत हासिल कराई। उसके बाद 2014 में भी जटुआ ने यहां से 6,27,761 वोट प्राप्त कर सीपीआईएम की रिंकू नस्कर को शिकस्त दी थी।
इस बार एक ओर जहां जटुआ यहां से हैट्रिक मारने के लिए प्रयास रत हैं। वहीं गत चुनाव में दूसरे व तीसरे स्थान पर रही सीपीआईएम और भाजपा के उम्मीदवार भी कांटे की टक्कर देने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
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– किसान आंदोलन की भूमि रही है मथुरापुर लोकसभा सीट :-
1943 के बंगाल में पड़े अकाल के बाद 1946 में किसानों की बिगड़ी स्थिति को देखते हुए बंगीय प्रादेशिक किसान सभा ने तेभागा आंदोलन की शुरूआत की थी। यह भूमि उस आंदोलन की साक्षी रही। 2011 की जनगणना के मुताबिक मथुरापुर क्षेत्र की कुल आबादी 22,16,787 है। 94 फीसदी लोग गांवों में रहते हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमश: 29.06 और 0.53 फीसदी है। इस बार मथुरापुर संसदीय क्षेत्र में 16,49,953 वोटर्स हैं। जिनमें से 8,51,376 पुरुष, 7,98,549 महिला और 28 ट्रांसजेंडर हैं। इस संसदीय क्षेत्र के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें पाथरप्रतिमा, काकद्वीप, सागर, कुल्पी, रायदीह, मगराहाट और मंदिर बाजार शामिल हैं।