कलाकार का मिले दर्जा
विदेश जा रही महिला ढाकियों के मुताबिक पहले खाने को लाले पड़ते थे, विदेश जाने की बात भी नहीं सोच सकते थे। आज जगह-जगह से आमंत्रण आ रहा है। सम्मान मिलता है अच्छा लगता है। ढाकियों का कहना है कि जैसे सितारवादक, बांसुरीवादक या अन्य कलाकारों को जैसा सम्मान दिया जाता है वैसा ही सम्मान उन्हें भी मिलना चाहिए।
महिला ढाकी उमा दास ने कहा कि वे सरकार से यह उम्मीद करती हैं कि वह उन्हें ढाक प्रशिक्षण स्कूल खोलने में सहायता करे। जहां नई पीढ़ी को इस परंपरागत वाद्ययंत्र की बारीकियां सीखने का मौका मिले।
चुनौती थी सफलता मिली
महिला ढाकियों के प्रेरणास्त्रोत व ढाकीगोकुल चन्द दास ने बताया कि उन्होंने विदेश में एक महिला को वाद्ययंत्रों की दुकान में तरह तरह के यंत्र बजाते हुए देखा था। तभी उनके मन में आया कि गांव की महिलाओं को आगे लाना चाहिए। लौटकर उन्होंने घर की तथा आस-पास की महिलाओं को ढाक बजाने के लिए प्रेरित किया। इसका विरोध हुआ। शुरुआत में छह महिलाओं से शुरू हुई यात्रा अब 60 महिलाओं तक पहुंच गई है। गोकुल चन्द के मुताबिक चुनौती पार कर अब सफलता मिल चुकी है। महिला ढाकियों को सबल होते देख और उनके चेहरों पर खुशी देखकर प्रयास सार्थक लगता है।