scriptभुखमरी से बाहर निकलीं अब विदेश में बजाएंगी ढाक का डंका | Out of hunger, now Dhaka will play abroad | Patrika News

भुखमरी से बाहर निकलीं अब विदेश में बजाएंगी ढाक का डंका

locationकोलकाताPublished: Sep 24, 2019 02:43:48 pm

Submitted by:

Vanita Jharkhandi

सफल पहल
– विदेशों में पूजा का उत्साह बढ़ाने जा रही हैं राज्य की महिला ढाकी
 

भुखमरी से बाहर निकलीं अब विदेश में बजाएंगी ढाक का डंका

भुखमरी से बाहर निकलीं अब विदेश में बजाएंगी ढाक का डंका

 

 

कोलकाता.

कभी भुखमरी और अभावों से जूझती हुई ६० महिलाओं का भविष्य उत्सवों के समय बंगाल में बजाए जाने वाले पारंपरिक वाद्य यंत्र ढाकी ने बदल दिया है। उत्तर २४ परगना के मच्छलंदपुर की ये महिला ढाकी इस बार देश विदेश में अपने हुनर का जलवा दिखाने को तैयार हैं। इनमें से कुछ लंदन और कुछ अफ्रीका के देश तंजानिया मे उत्साह बढ़ाने के लिए रवाना होंगी।
तंजानिया यात्रा को लेकर उत्साहित उमा दास ने बताया विदेश यात्रा को लेकर वे रोमांच महसूस कर रही हैं। डर भी है और खुशी भी है। आस-पास वाले भी खुश हैं, पूरे गांव की मानसिकता बदल गई है। उन्होंने बताया कि उनकी ससुराल में पारंपरिक रूप से ढाक बजाने का काम होता था। उत्सवों में ढाक बजाने का काम मिलता था। महिलाएं ढाक से दूर थीं। पड़ोसी गोकुल चन्द दास ने प्रेरणा दी तो वे इलाके की सबसे पहली महिला ढाकी बनीं। शुरुआत में समाज ने महिला होने पर सवाल उठाए। तरह तरह की बातें हुईं लेकिन गुरु ने हताश होने नहीं दिया। वे ही कपड़े लाकर देते और प्रोत्साहित करते। उमा ने बताया कि पारंपरिक ढाक 20 किलो का होता है, उसे कंधे पर रखकर बजाते समय लगता था कि कंधा टूट जाएगा। समस्या को देखते हुए अब सिंथेटिंग ढाक बजाते हैं जो 5-7 किलो का होता है।

कलाकार का मिले दर्जा
विदेश जा रही महिला ढाकियों के मुताबिक पहले खाने को लाले पड़ते थे, विदेश जाने की बात भी नहीं सोच सकते थे। आज जगह-जगह से आमंत्रण आ रहा है। सम्मान मिलता है अच्छा लगता है। ढाकियों का कहना है कि जैसे सितारवादक, बांसुरीवादक या अन्य कलाकारों को जैसा सम्मान दिया जाता है वैसा ही सम्मान उन्हें भी मिलना चाहिए।

महिला ढाकी उमा दास ने कहा कि वे सरकार से यह उम्मीद करती हैं कि वह उन्हें ढाक प्रशिक्षण स्कूल खोलने में सहायता करे। जहां नई पीढ़ी को इस परंपरागत वाद्ययंत्र की बारीकियां सीखने का मौका मिले।

चुनौती थी सफलता मिली

महिला ढाकियों के प्रेरणास्त्रोत व ढाकीगोकुल चन्द दास ने बताया कि उन्होंने विदेश में एक महिला को वाद्ययंत्रों की दुकान में तरह तरह के यंत्र बजाते हुए देखा था। तभी उनके मन में आया कि गांव की महिलाओं को आगे लाना चाहिए। लौटकर उन्होंने घर की तथा आस-पास की महिलाओं को ढाक बजाने के लिए प्रेरित किया। इसका विरोध हुआ। शुरुआत में छह महिलाओं से शुरू हुई यात्रा अब 60 महिलाओं तक पहुंच गई है। गोकुल चन्द के मुताबिक चुनौती पार कर अब सफलता मिल चुकी है। महिला ढाकियों को सबल होते देख और उनके चेहरों पर खुशी देखकर प्रयास सार्थक लगता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो