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महाराणा प्रताप जयंती 6 को

locationकोलकाताPublished: Jun 04, 2019 10:36:19 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

राजस्थान परिषद, अखिल भारतीय क्षत्रिय समाज के संयुक्त तत्वावधान में श्रद्धांजलि कार्यक्रम

kolkata

महाराणा प्रताप जयंती 6 को

कोलकाता. वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के पर्याय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती 6 जून को मनाई जाएगी। राजस्थान परिषद के महामंत्री अरुण प्रकाश मल्लावत ने बताया कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी राजस्थान परिषद की ओर से महानगर में स्थापित की गई महाराणा की दोनों मूर्तियों पर परिषद और अखिल भारतीय क्षत्रिय समाज के संयुक्त तत्वावधान में स्वाधीनता के इस अमर सेनानी को माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम रखा गया है। महाराणा प्रताप उद्यान, शेक्सपीयर सरणी में सुबह ७.१५, त्रिकोणिया पार्क, बड़ी मूर्ति (सेंट्रल मेट्रो स्टेशन के सामने) चितरंजन एवेन्यू, महाराणा प्रताप सरणी (इण्डिया एक्सचेंज प्लेस) क्रॉसिंग में सुबह ८.१५ बजे श्रद्धांजलि कार्यक्रम होगा।

–महाराणा प्रताप के 7 किस्से-जब वफादार मुसलमान ने बचाई उनकी जान
महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े और सैन्य लिहाज से कमजोर होने के बाद भी सिर नहीं झुकाया. जितने किस्से उनके मशहूर हैं, उतने ही उनके घोड़े ‘चेतक’ के हैं. कई किवदंतियां भी सुनाई जाती हैं राणा दोनों हाथों में भाले लेकर विपक्षी सैनिकों पर टूट पड़ते थे. हाथों में ऐसा बल कि २ सैनिकों को एक साथ भालों की नोंक पर तान देते थे.1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच यह युद्ध हुआ. अकबर की सेना को मानसिंह लीड कर रहे थे. मानसिंह के साथ 10 हजार घु?सवार और हजारों पैदल सैनिक थे. लेकिन महाराणा प्रताप 3 हजार घुसवारों और मु_ी भर पैदल सैनिकों के साथ लड़ रहे थे. इस दौरान मानसिंह की सेना की तरफ से महाराणा पर वार किया जिसे, महाराणा के वफादार हकीम खान सूर ने अपने ऊपर ले लिया और उनकी जान बचा ली. उनके कई बहादुर साथी जैसे भामाशाह और झालामान भी इसी युद्ध में महाराणा के प्राण बचाते हुए शहीद हुए थे. हल्दीघाटी के बाद महाराणा जब बचकर कुछ दूर पहुंच गए उसी समय महाराणा को किसी ने पीछे से आवाज लगाई- हो, नीला घोड़ा रा असवार” महाराणा पीछे तो उनका भाई शक्तिसिंह आ रहा था. महाराणा के साथ शक्ति की बनती नहीं थी तो उसने बदला लेने को अकबर की सेना ज्वाइन कर ली थी और जंग के मैदान में वह मुगल पक्ष की तरफ से लड़ रहा था. युद्ध के दौरान शक्ति सिंह ने देखा कि महाराणा का पीछा दो मुगल घुड़सवार कर रहे हैं. तो शक्ति का पुराना भाई-प्रेम जाग गया और उन्होंने राणा का पीछा कर रहे दोनों मुगलों को मारकर ऊपर पहुंचा दिया.राणा प्रताप का जन्म कुम्भलग के किले में हुआ था. राणा का पालन-पोषण भीलों की कूका जाति ने किया था. भील राणा से बहुत प्यार करते थे. वे ही राणा के आंख-कान थे. भीलों ने ३ महीने तक अकबर की सेना को रोके रखा. एक दुर्घटना के चलते किले के पानी का सोर्स गन्दा हो गया.महाराणा ने २ राज्य अकबर से छीन लिए.
—अकबर भी तारीफ किए बिना नहीं रह सका
जब महाराणा प्रताप अकबर से हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे. अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज खबर लेने को भेजा गुप्तचर ने आकर बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर जो खाना खा रहे थे उसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं. जासूस ने बताया न कोई दुखी था, न उदास. ये सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और महाराणा के लिए उसके ह्रदय में सम्मान पैदा हो गया. अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी. उसने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं. महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है.” उनके लोग भूख से बिलखते उनके पास आकर रोने लगते. मुगल सैनिक इस प्रकार उनके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर भी नहीं मिल पाता था और सुरक्षा के कारण भोजन छोडक़र भागना पड़ता था.
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