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‘अपने इतिहास—संस्कृति के ज्ञान के लिए अपनी भाषा जानना जरूरी’

locationकोलकाताPublished: May 02, 2019 10:59:27 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

राजस्थानी भाषा पाठशाला का उद्घाटन—अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन, हरि ग्लोबल फाउंडेशन का आयोजन

kolkata

‘अपने इतिहास—संस्कृति के ज्ञान के लिए अपनी भाषा जानना जरूरी’

कोलकाता. अपनी मातृभाषा की महत्ता सर्वोपरि है। अपने समाज, परिवेश, इतिहास-संस्कृति के ज्ञान के लिए अपनी भाषा जानना बेहद अनिवार्य है। साथ ही, यह भी प्रयास होना चाहिए कि तकनीकी शिक्षा अपनी भाषा में दी जा सके, क्योंकि वही भाषा शिखर पर पहुंचेगी, जो तकनीकी शिक्षा का माध्यम हो। प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी की कुलपति और वैज्ञानिक अनुराधा लोहिया ने राजस्थानी भाषा पाठशाला के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि यह उद्गार व्यक्त किए। अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन, हरि ग्लोबल फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में 18, बालीगंज सर्कुलर रोड में राजस्थानी भाषा पाठशाला की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य है कि राजस्थानी भाषा सीखने के इच्छुक लोगों को उपयुक्त संस्थान के अभाव में अपनी भाषा के ज्ञान से वंचित न रहना पड़े। लोहिया ने राजस्थानी भाषा पाठशाला की स्थापना को साहसिक कदम बताते हुए कहा कि कुछ कारणों से राजस्थानी भाषा पीछे छूट रही थी और इसके प्रचार—प्रसार—संरक्षण को बढ़ावा देना आवश्यक तथा प्रशंसनीय है। लोहिया ने पाठशाला एवं सम्मेलन के पदाधिकारियों के साथ मिलकर दीप—प्रज्ज्वलन कर समारोह का शुभारम्भ किया। पाठशाला के चेयरमैन, सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हरिप्रसाद कानोडिय़ा ने भाषा को माता के समान बताते हुए इसमें सहयोग और राजस्थानी भाषा सीखने के लिए अधिकाधिक लोगों को उत्प्रेरित करने का आह्वान किया। पाठशाला के वाइस चेयरमैन रघुनंदन मोदी ने कहा कि अगर व्यावसायिक कारणों से हम अपने कार्यक्षेत्र में राजस्थानी भाषा का उपयोग न कर सकें तो कम से कम अपने घर, आपसी विचार—विमर्श में इसका प्रयोग करना चाहिए। सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम शर्मा ने कहा कि यह एक शुभ दिन है कि राजस्थानी भाषा पाठशाला का उद्घाटन हुआ। सम्मेलन के राष्टीय अध्यक्ष संतोष सर्राफ ने धन्यवाद ज्ञापित कर कहा कि अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन 8 दशकों से राजस्थानी भाषा के प्रचार—प्रसार के लिए कई कदम उठाता रहा है। सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदलाल रूंगटा के सौजन्य से राजस्थानी व्याकरण की पुस्तक पूरे देश में वितरित की जा रही है। हर साल उत्कृष्ट साहित्य—सृजन के तहत २ साहित्यकारों को सम्मानित किया जाता है। अपने घर में अपनी भाषा के प्रयोग को आवश्यक बताते हुए सर्राफ ने कहा कि अपनी भाषा न जानना चिन्ता का विषय नहीं, पर इसे सीखने के लिए निष्ठापूर्वक प्रयास करना चाहिए। हिन्दी-राजस्थानी भाषा की लेखिका सुन्दर पारख ने पारख ने गीत म्हारो जंगल—मंगल देश, म्हाने प्यारो लागे जी सुनाया। संचालन राजेश अग्रवाल ने किया। सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामअवतार पोद्दार, प्रह्लाद राय अगरवाला, हरिप्रसाद बुधिया, शिवकुमार लोहिया, नंदलाल सिंघानिया, दामोदर प्रसाद बिदावतका, चम्पादेवी कानोडिय़ा, मधुलिका कानोडिय़ा, कुसुम लोहिया और सुशीला सिंघानिया आदि मौजूद थी।

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