कोलकाता

जब बंगाल की राजनीति में था राजस्थानियों का दम

आज बंगाल की राजनीति में प्रतिनिधित्व नगण्य—-बंगाल की मौजूदा राजनीति में राजस्थानियों की कोई भूमिका आज नहीं—–बंगाल की राजनीति में राजस्थानी समाज की नगण्यता पतन-गोयनका

कोलकाताMay 22, 2019 / 10:38 pm

Shishir Sharan Rahi

जब बंगाल की राजनीति में था राजस्थानियों का दम

 
कोलकाता. सदियों से कोलकाता में रह रहे राजस्थानी प्रवासियों का बंगाल की राजनीति में प्रतिनिधित्व घटता जा रहा है। हालांकि 4 दशक पहले स्थिति इसके विपरीत थी, जब विजय सिंह नाहर, आनंदीलाल पोद्दार वगैरह राजस्थानी हस्तियों की बंगाल की राजनीति में पूछ थी। गंगा मिशन के सचिव और प्रमुख समाजसेवी-उद्योगपति प्रहलाद राय गोयनका ने कहा कि आज बंगाल की राजनीति में राजस्थानी समाज की भागीदारी न होना पतन है राजस्थानियों का बंगाल में। बंगाल की राजनीति में राजस्थानी समाज के एक तरह से लोप हो जाने पर अफसोस व्यक्त करते हुए गोयनका ने इसे दुर्भाग्य बताया और यहां तक कह डाला कि मारवाड़ी समाज संवेदनहीन हो गया है। उन्होंने कहा कि कभी इसी बंगाल में १९७७ में प्रवासी राजस्थानी विजय सिंह नाहर भारतीय लोकदल के सांसद हुआ करते थे। नाहर उत्तर-पश्चिम कोलकाता निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे। इतना ही नहीं बंगाल विधानसभा के सदस्य बनकर आनंदीलाल पोद्दार ने जनसेवा की, जबकि बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. विधान चंद्र रॉय के शासनकाल में मंत्री रह चुके कांग्रेस विधायक रामकृष्ण सरावगी सहित अन्य प्रवासी राजस्थानी भी सक्रिय रूप से बंगाल की राजनीति में सक्रिय थे। उन्होंने कहा कि राजस्थानी समाज को 3 खास विशेषताओं —प्रबुद्ध, समाजसेवी और सामथ्र्यवान के लिए जाना जाता है। कभी बंगाल में सभी राजनीतिक पार्टियों में राजस्थानियों की मुख्य भागीदारी हुआ करती थी। बंगाल के प्रवासी राजस्थानी आज भोग-विलास में डूबकर समाज से विमुख हो गए हैं। उन्होंने कहा कि आज मारवाड़ी समाज पतन की ओर जा रहा है। बंगाल की राजनीति में राजस्थानियों के विमुख होने पर पूछे गए सवाल के जवाब में गोयनका ने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण उदासीनता, भोग-विलास की प्रधानता और आज की युवा पीढ़ी का समाज से दूर होना है। आज कोई किसी की बात नहीं मानता। उन्होंने कहा कि हमारा जो बेस था, उसे ही हम नष्ट करने पर तुले हुए हैं। गोयनका ने कहा कि मारवाड़ी-राजस्थानी समाज मकड़ी की जाल की तरह आज जकडक़र मदान्ध हो गया है। समाजचिंतक, लेखक-पत्रकार सीताराम शर्मा कहते हैं कि बंगाल की मौजूदा राजनीति में राजस्थानियों की कोई भूमिका आज नहीं रह गई है। समाज में उनकी वो छवि नहीं रही, जिससे जनता उन्हें अपना प्रतिनिधि चुने। उन्होंने कहा कि केवल पैसे के बल पर राजनीति नहीं होती है। शर्मा अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बंगाल की राजनीति में राजस्थानियों की भागीदारी के संबंध में शर्मा ने कई सवालों के जवाब दिए। उन्होंने कहा कि आज से ४० साल पहले पश्चिम बंगाल की राजनीति में राजस्थानियों का दबदबा था, लेकिन आज यह एक महज इतिहास बनकर रह गया है। उन्होंने कहा कि १९७७ तक न केवल मारवाड़ी, बल्कि हिन्दी भाषा-भाषी बंगाल में मंत्री थे। पिछले 4 दशक से पश्चिम बंगाल की राजनीति में राजस्थानियों का दबदबा खत्म हो गया। वर्तमान में ममता सरकार में कहने के लिए खेल मंत्री लक्ष्मीरतन शुक्ला हिन्दी भाषी हैं। पर हिन्दी भाषियों सहित प्रवासी राजस्थानियों का दबदबा अभी भी बंगाल की राजनीति में नगण्य है। उन्होंने इसका सबसे बड़ा कारण मतदान को बताया। शर्मा ने कहा कि पूरे बंगाल में ७० से 85 फीसदी तक मतदान होता है, जबकि उत्तर-दक्षिण कोलकाता में यह संख्या ६० से ७० प्रतिशत है। यह दर्शाता है कि हिन्दी भाषा-भाषी और प्रवासी राजस्थानी मतदान में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते। उन्होंने कहा कि राजनीति का सीधा नियम है–मतदान नहीं, तो प्रतिनिधित्व नहीं। दूसरा कारण समरसता है। बंगाल को छोडक़र महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और अन्य प्रदेशों में मारवाड़ी समाज के कई लोग मंत्री बने हैं। इन राज्यों में राजस्थानी समाज समरस होकर वहां की माटी-संस्कृति-सभ्यता में घुलमिल गए हैं। जबकि बंगाल में ऐसा नहीं हुआ। शर्मा ने कहा कि पैसे के दम पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर राजनीति करने से ही बंगाल की राजनीति में खोया मुकाम पाया जा सकता है। अपनी सोच, आदर्श के आधार पर राजनीति ही एकमात्र समाधान है।
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