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‘दुनिया चले न श्रीराम के बिना, राम तो चले न हनुमान के बिना……’

locationकोलकाताPublished: Apr 15, 2019 10:38:47 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

हर्षोल्लास से मनाया रामजन्मोत्सव—-पूर्वांचल कल्याण आश्रम उत्तर हावड़ा समिति का आयोजन

kolkata

‘दुनिया चले न श्रीराम के बिना, राम तो चले न हनुमान के बिना……’

कोलकाता. पूर्वांचल कल्याण आश्रम के उत्तर हावड़ा समिति की ओर से रामनवमी पर रविवार को रामजन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया। बेलूर बाजार के गांगुली स्ट्रीट स्थित एक कॉम्प्लेक्स में रंगारंग नृत्य, संगीत के साथ हुए इस कार्यक्रम में रामजन्मोत्सव पर आधारित भजन संध्या और कैकेयी-मंथरा संवाद सहित नृत्य नाटिका ने मन मोह लिया। कल्याण आश्रम उत्तर हावड़ा समिति की अध्यक्ष कुसुम मोदी, निर्मल गंगा चेतना मंच की सचिव और वस्तु प्रमुख नीलिमा सिन्हा, उपाध्यक्ष शर्मिला अग्रवाल, संयोजिका मधु गर्ग, नीना गुप्ता, सुमन बरेलिया, सुमन अग्रवाल, उर्मिला अग्रवाल और अरूण आदि आयोजन को सफल बनाने में सक्रिय रहे। कार्यक्रम की शुरुआत आरती के साथ हुई। इसके बाद कलाकारों ने रामजन्मोत्सव की झांकी और कैकेयी-मंथरा संवाद प्रस्तुत किया। भजन गायकों ने जब दुनिया चले न श्रीराम के बिना, राम तो चले न हनुमान के बिना……आदि भजनों की संगीतमय प्रस्तुति दी, तो कॉम्प्लेक्स में मौजूद श्रद्धालु थिरक उठे।

रामनवमी जैसा कि नाम से ही ज्ञात है कि राम नवमी का संबंध भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से है। भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने के लिये हर युग में अवतार धारण किये। इन्हीं में एक अवतार उन्होंने भगवान श्री राम के रुप में लिया था। जिस दिन भगवान श्री हरि ने राम के रूप में राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया वह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन था। यही कारण है कि इस तिथि को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का भी यह अंतिम दिन होता है।
—-क्यों और कैसे श्री राम का जन्म
पौराणिक ग्रंथों में जो कथाएं हैं उनके अनुसार भगवान राम त्रेता युग में अवतरित हुए। उनके जन्म का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना, मानव समाज के लिये एक आदर्श पुरुष की मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। यहां धर्म का अर्थ किसी विशेष धर्म के लिये नहीं बल्कि एक आदर्श कल्याणकारी समाज की स्थापना से है।राजा दशरथ जिनका प्रताप दशों दिशाओं में व्याप्त रहा। तीन-तीन विवाह उन्होंने किये थे लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। ऋषि मुनियों से जब इस बारे में विमर्श किया तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के पश्चात यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे राजा दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया। कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा केकैयी को दिया इसके पश्चात कौशल्या और केकैयी ने अपने हिस्से से आधा-आधा हिस्सा सुमित्रा को दे दिया। इसीलिये चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम जन्मे। केकैयी से भरत ने जन्म लिया तो सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।
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