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जोश, जुनून के साथ मनाया मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जनमोत्सव

locationकोलकाताPublished: Apr 13, 2019 10:41:41 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

रामनवमी पर हिन्दू जागरण मंच ने निकाली शोभायात्रा, —–अनेक स्थानों में आज भी मनेगी रामनवमी—-मंदिरों में उमड़े रामभक्त

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जोश, जुनून के साथ मनाया मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जनमोत्सव

कोलकाता/हावड़ा. चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी को मनाया जाने वाला श्रद्धा और आस्था का त्योहार रामनवमी इस बार 13 और 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। कोलकाता, हावड़ा सहित पूरे प्रदेश में शनिवार को श्रद्धा और आस्था के साथ रामनवमी मनाई गई, जबकि अनेक स्थानों में रविवार को भी मनाई जाएगी। कोलकाता, हावड़ा सहित आसपास के राम मंदिरों को आकर्षक तरीके से सजाया गया है। प्रवासी राजस्थानी समाज के विभिन्न संस्थाओं की ओर से इस मौके पर विविध आयोजन होंगे। कहीं-कहीं शोभायात्रा भी निकाली गई। रामनवमी के अवसर पर शनिवार को हिन्दू जागरण मंच (महानगर) की ओर से तारासुन्दरी पार्क से शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा मालापाड़ा, कलाकार स्ट्रीट, महात्मा गांधी रोड़, रवीन्द्र सरणी होते हुए आदि भूतनाथ मन्दिर के पास जाकर संपन्न हुई। हिन्दू जागरण मंच महानगर अध्यक्ष कमलेश पाण्डेय ने सभी को रामनवमी की शुभकामना दी। शोभायात्रा में भाजपा नेता राहुल सिन्हा, पार्षद सुनीता झंवर, मीना पुरोहित, विजय ओझा आदि भी शामिल थे। सतीश सिंह, दिलीप गुप्ता, अमित तिवारी, प्रदीप शर्मा, विजय अग्रवाल, विनीत सिंह, सुनी मल्लिक, अशोक, हरीश आदि सक्रिय रहे।
—–बंगाल के ढोल-ताशों की झंकार पर थिरकते हैं झारखंड में रामनवमी जुलूस में कदम
उधर कोलकाता से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के पड़ोसी राज्य झारखंड में अनोखे अंदाज में मनाए जाने वाले रामनवमी में बंगाल के कलाकार रामनवमी की शोभा बढ़ाने में १९९० से ही हर साल मुख्य भूमिका निभाते आ रहे हैं, जो आज तक बरकरार है। आसनसोल, दुर्गापुर, रानीगंज और राजधानी कोलकाता सहित अनेक स्थानों की ढाकी, ढोल-ताशों की टीम झारखंड की रामनवमी के जुलूस की शान होती है। ढोल-ताशों की झंकार रामनवमी जुलूस में शामिल युवाओं में ऊर्जा का काम करती है।
—-रामनवमी एक जुनून, एक जोश, एक खुमार….
वैसे तो रामनवमी मनाने की परंपरा देश के विभिन्न राज्यों में सदियों से चली आ रही है, पर झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों में ‘रामनवमी’ अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां रामनवमी का मतलब महज मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं, बल्कि ‘एक जुनून, एक जोश, एक खुमारी है। सडक़ों पर उमड़ता जनसैलाब, युवकों, बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं का समूह। रामनवमी का मतलब ढोल-तासों की पुरनूर झंकार, नगाड़ों की गडग़ड़ाहट और पैरों की थिरकन। लाठियों, तलवारों की तड़तड़ाहट, नुक्कड़ों पर शोर, करतबबाजों का जोर।’
———–वे राम-जानकी को मानते हैं दादा-दादी
झारखंड की उरांव जनजाति श्रीराम-जानकी को न केवल आराध्य, बल्कि खुद के पूर्वज दादा-दादी मानती है। यहां के जनजातियों की ऐसी धारणा है कि राम-रावण युद्ध में उनके पूर्वजों ने ही श्रीराम को सहयोग प्रदान किया था। युद्ध में विजय के बाद अयोध्या प्रवास पर श्रीराम ने लक्ष्मण को संथालपूर्वजों की विदाई के वक्त साथ भी भेजा था। चैत्र माह के प्रथम मंगलवार से रामनवमी तक हर मंगलवार को महावीर मंदिरों में पूजन कर ‘मंगला जुलूस’ निकाला जाता है। अलग-अलग अखाड़ों की ओर से श प्रदर्शन के साथ महावीरी/केसरिया ध्वज लिए आकर्षक झांकियों के साथ जुलूस निकाला जाता है। यहां रामनवमी पर न केवल युवा, बल्कि महिला महावीर मंडल के नेतृत्व में दर्जनों महिलाएं भी हाथों में तलवार लेकर अस्त्र प्रदर्शन करती हैं।
—गुमला के आंजन गांव में हुआ था पवनपुत्र का जन्म
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार झारखंड के गुमला जिले के आंजन गांव में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। इसके प्रमाण में यहां हनुमानजी की माता ‘अंजनी’ का पुराना मदिर है, जिसमें अंजनी की अनेक दुर्लभ और प्राचीन मूर्तियां आज भी बरकरार हैं। इन्हीं कारणों से जनजाति समाज के लोग रामनवमी को अनोखे अंदाज में मनाते हैं।
—–क्या है महत्व?
हिन्दू धर्म में रामनवमी का विशेष महत्व है। रामनवमी जैसा कि नाम से ही ज्ञात है इसका संबंध विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम से है। विष्णु ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतार लिया और इसी क्रम में 7वें अवतार के रूप में उन्होंने भगवान श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिए चैत्र शुक्ल नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म हुआ था।
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