न तकनीक थी, न जानकारी पटाखा निर्माताओं के अनुसार वर्ष 2021 में दिवाली के ऐन पहले केवल ग्रीन पटाखों को ही अनुमति दी गई थी। ग्रीन पटाखे क्या होते हैं? कैसे बनाए जाते हैं? उन्हें मान्यता कौन देता है? इन सबकी निर्माताओं के पास जानकारी नहीं थी। इसलिए पैकेट में ग्रीन पटाखे लिख दिए गए थे। बाद में जब पुलिस ने कार्रवाई शुरू की तो करोड़ों का नुकसान हुआ। इस बार निर्माताओं ने सबक लिया। पुलिस से संपर्क साधा गया। पुलिस ने उनका संपर्क नीरी के वैज्ञानिकों से कराया।
वैज्ञानिक आए प्रशिक्षित किया
नीरी की प्रमुख वैज्ञानिक साधना रेलू अपनी पांच सदस्यीय टीम के साथ कोलकाता आईं। उन्हें दक्षिण 24 परगना के नुंगी इलाके में ले जाया गया। जहां टीम ने लगभग 40 पटाखा निर्माताओं को खतरनाक बेरियम और अन्य जहरीले रसायनों के बिना ही ग्रीन पटाखे बनाने के गुर सिखाए।
व्यवसाय बचाने का प्रयास पश्चिम बंगाल बाजीशिल्प उन्नयन समिति के अध्यक्ष शुभंकर मन्ना ने कहा कि पटाखों का व्यवसाय जिंदा रखने के लिए नियम कानून मानने जरूरी हैं। गत कुछ वर्षों से उद्योग पर गहरा संकट था। पिछले बार तो दिवाली के कुछ दिन पहले तक तय नहीं था कि कौन से पटाखे चलाए जा सकते हैं। इस बार नीरी के प्रशिक्षण और मान्यता के बाद बंगाल के पटाखा उद्योग के बचे रहने की उम्मीद जागी है।
हजारों परिवारों को इस उद्योग में मिल रहा रोजगार दक्षिण 24 परगना के नुंगी, चंपाहाटी, हुगली के बेगमपुर समेत उत्तर 24 परगना व हावड़ा के कई इलाकों में हजारों परिवार पटाखे के निर्माण से जुड़े हुए हैं। इनमें से ज्यादातर पटाखे के निर्माता असंगठित क्षेत्र के हैं। राज्य में पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव ऑर्गनाइजेशन (पीईएसओ) से अनुमति लेने वाले पटाखा कारखानों की महज तीन है। वहीं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सूची में पटाखे निर्माण से जुड़ी 37 फैक्ट्रियां हैं। अन्य सभी फैक्ट्रियां अवैध हैं।
अभी परंपरागत पटाखों का फार्मूला समझा पटाखा निर्माताओं के मुताबिक नीरी की टीम ने फुलझड़ी, रंगमशाल, चरखी और अनार जैसे परंपरागत और ज्यादा चलने वाले पटाखों का ग्रीन वर्जन बनाना सिखाया है। जिन्हें तैयार कर लिया गया है। नीरी के परीक्षण के बाद मंजूरी मिलते ही अन्य वैरायटी पर काम किया जाएगा।