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कोलकाता

मूर्तिकारों पर महामारी की मार, जिंदगी हुई बदरंग

पश्चिम बंगाल समेत देश भर के लाखों मूर्तिकारों पर भी कोरोना महामारी की मार पड़ी है। त्योहारी सीजन में मूर्तिकारों की जिंदगी बदरंग नजर आ रही है। देश के सबसे बड़े मूर्ति हब में शुमार कुम्हारटोली के मूर्तिकार मुश्किल घड़ी में हैं। उनपर आर्थिक संकट का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली बार दुर्गा पूजा में मूतियों के लिए करीब 50 करोड़ रुपए के ऑर्डर मिले थे

कोलकाताOct 26, 2020 / 08:17 pm

Rabindra Rai

मूर्तिकारों पर महामारी की मार, जिंदगी हुई बदरंग

मूर्तिकारों पर महामारी की मार, जिंदगी हुई बदरंग

सबसे बड़े मूर्ति हब में शुमार कुम्हारटोली के कलाकार मुश्किल में
रवीन्द्र राय
कोलकाता. पश्चिम बंगाल समेत देश भर के लाखों मूर्तिकारों पर भी कोरोना महामारी की मार पड़ी है। त्योहारी सीजन में मूर्तिकारों की जिंदगी बदरंग नजर आ रही है। देश के सबसे बड़े मूर्ति हब में शुमार कुम्हारटोली के मूर्तिकार मुश्किल घड़ी में हैं। उनपर आर्थिक संकट का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली बार दुर्गा पूजा में मूतियों के लिए करीब 50 करोड़ रुपए के ऑर्डर मिले थे इस बार करीब 15-20 करोड़ के ऑर्डर मिले। पिछले साल के मुकाबले इस बार कारोबार करीब 40 से 50 फीसदी घट गया है। कुम्हारटोली मूर्तिशिल्पी संस्कृति समिति के अनुसार पिछले साल कई आयोजकों ने 60 हजार से 70 हजार के बीच की मूर्तियां खरीदी थी, इस साल 25 हजार से ज्यादा देने के मूड में नहीं दिखे।
मूर्ति निर्माण उद्योग पर छाए संकट के बादल के चलते मूर्तिकारों को सड़क पर उतरना पड़ा है। राज्य के पूर्व बर्दवान के कालना, नदिया के फुलिया के करीब एक हजार मूर्तिकारों ने राज्य सरकार से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है। ऑल इंडिया अनुनंत कुम्भकार समिति के बैनर तले मूर्तिकारों ने बीडीओ कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया तथा राज्य सरकार से प्रत्येक परिवार को 7500 रुपए प्रति माह भत्ते देने की मांग की। इस समिति से जुड़े राज्य के करीब 16 लाख मूर्तिकारों का कहना है कि जिस तरह राज्य सरकार ने पुजारियों को भत्ते तथा प्रत्येक दुर्गा पूजा समिति को 50 हजार रुपए देने का ऐलान किया है उसी तरह उन्हें भी मदद मिले।

मदद की जरूरत
समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार पुजारियों तथा पूजा समितियों की मदद के लिए आगे आई है लेकिन हमारे बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। राज्य सरकार ने रेहड़ी खोमचे वालों (हॉकरों), लोकगीत कलाकारों, पुरोहितों की आर्थिक मदद की है, पर मूर्तिकारों की अनदेखी की। संकट के समय में सरकार ही हमें बचा सकती है। हम मदद के साथ पहचान पत्र चाहते हैं ताकि हमें केन्द्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।

अस्तित्व पर संकट
मूर्तिकार प्रदीप रूद्रपाल कहते हैं कि गत अप्रेल के बाद से ही मूर्तियों की मांग कम हो जाने से हम मुश्किल दौर में जी रहे हैं। आमतौर पर दुर्गा पूजा में इतनी कमाई हो जाती थी कि सालभर कुछ काम करके गुजारा हो जाता था। इस साल विश्वकर्मा पूजा के बाद गणेश पूजा में भी मूर्तियों की मांग काफी कम रही। दुर्गा पूजा में आयोजकों ने छोटी मूर्तियों की मांग की। हमारी कमाई काफी घट गई है, हमारे अस्तित्व पर संकट आ गया है।

जुड़ा कारोबार भी रहा कमजोर
मूर्तियों को सजाने के लिए गहने तथा ड्रेस मैटेरियल की भी मांग इस साल बेहद कम रही। महानगर के आसपास के करीब 400 परिवार इस काम से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि पिछली बार 3.75 करोड़ रुपए मूल्य के गहने तथा ड्रेस मैटेरियल से मूर्तियों को सजाया गया था। इस बार मांग नहीं होने के चलते यह कारोबार 1 करोड़ से कम में सिमट गया।

इनका कहना है
आमतौर पर कोलकाता की पूजा समितियां कुम्हारटोली से मूर्तियां खरीदती हैं। हमें जुलाई तथा अगस्त मध्य तक सारे ऑर्डर मिल जाते थे, इस बार आखिरी चरण में ऑर्डर मिले। कम से कम १२ फीट की दुर्गा प्रतिमा की मांग रहती है, लेकिन इस बार आयोजकों की नजर 6-7 फीट की मूर्तियों पर ही रहीं। पिछली बार मेरे यहां से 40 मूर्तियां विदेश गई थीं, इस बार 11 ही गईं।
कौशिक घोष, मूर्तिकार
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