टैगोर ने कहा कि जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे तब तक कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रमों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग की।
उन्होंने कहा कि केवल सरकार की पहल पर निर्भर करने से कुछ नहीं होगा, हमें घरेलू स्तर पर व्यवहार बदलने का प्रयास करना चाहिए। यह पूछने पर कि उन्हें कभी लैंगिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा था या नहीं तो शर्मिला ने कहा कि मेरा पालन-पोषण बंगाली परिवार में हुआ।
हम तीन लड़कियां थीं और हमने कभी खुद को लडक़ों से कम नहीं माना। 73 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा कि जब उन्होंने 1959 में सत्यजीत राय की फिल्म ‘अपुर संसार’ से अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत की तो स्कूल ने इसका विरोध किया था और उन्हें अपना स्कूल छोडऩा पड़ा था, लेकिन मेरे अभिभावकों ने फिल्मों में काम करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं की थी। 1969 में जब मेरी शादी हुई मंसूर अली खान पटौदी से तब भी मेरे लिए कोई दरवाजा बंद नहीं हुआ। तब मुझे कोई बाधा नहीं आई। उन्होंने बताया कि उनकी दादी की शादी पांच वर्ष की उम्र में हुई थी और उनके नौ बच्चे थे।
उनकी मां को भी सह-शिक्षा वाले संस्थान में नहीं जाने दिया गया और उन्हें परास्नातक की डिग्री प्राइवेट से लेनी पड़ी थी। शर्मिला ने उम्मीद जताई कि वर्तमान पीढ़ी ज्ञान और शिक्षा के साथ लैंगिक भेदभाव को मिटाने में सफल होगी, लड़कियां नई ऊंचाइयां छुएंगी और हर क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल करेंगी।