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डोली में सवार शीतला मां की निकलेगी सवारी

locationकोलकाताPublished: Feb 12, 2019 10:32:04 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

शीतला माता उत्सव 18 को-पूरे सलकिया में होगा भ्रमण-राज्य के बाहर से भी आएंगे श्रद्धालु- ब्रिटिश शासनकाल से ही हर साल हो रहा आयोजन-लाखों श्रद्धालुओं की जुड़ी है आस्था

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डोली में सवार शीतला मां की निकलेगी सवारी

कोलकाता/हावड़ा. डोली में सवार शीतला माता की सवारी हावड़ा के सलकिया स्थित बड़ा शीतला मंदिर से १८ फरवरी को शीतला माता उत्सव के तहत निकलेगी, जिसकी तैयारियों में मंगलवार से ही श्रद्धालु जुट गए हैं। ब्रिटिश शासनकाल से अब तक हर साल लगातार होने वाले शीतला माता उत्सव में हजारों ही नहीं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। न केवल कोलकाता, हावड़ा, हुगली, रिसड़ा बल्कि बंगाल से बाहर अन्य राज्यों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु इस उत्सव में शरीक होने के लिए हर साल यहां आते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी अशोक चक्रवर्ती ने पत्रिका के साथ खास मुलाकात में मंगलवार शाम यह जानकारी दी। उनके साथ ही मंदिर में विविध धार्मिक आयोजनों में सहयोग करने वाले उनके पुत्र मृणमय चक्रवर्ती ने कहा कि शीतला माता उत्सव के लिए अभी से ही विविध तैयारियां तेज हो गई हैं। उन्होंने बताया कि शीतला माता उत्सव का आयोजन वैसे तो 18 फरवरी को तडक़े 4 बजे से ही शुरू हो जाएगा जब श्रद्धालु इस समय गंगा घाट पहुंचेंगे। इसके बाद सज-धज कर डोली में सवार शीतला माता की सवारी निकाली जाएगी, जिसके बाद शाम ३.३० बजे माता की सवारी का पूरे सलकिया में भ्रमण होगा। गंगा में सभी श्रद्धालु माता को स्नान कराएंगे। इसके बाद माता की सवारी वापस मंदिर पहुंचेगी और देर रात करीब २ से २.३० के आसपास पूजा के साथ उत्सव संपन्न होगा। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही दूसरे दिन फिर पूजा होगी। चक्रवर्ती ने बताया कि सैकड़ों साल से हर साल होने वाले इस उत्सव की महत्ता केवल बंग धरा पर ही नहीं, बल्कि हिन्दी भाषा-भाषियों में भी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि श्रद्धालु इस मौके पर दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं, जिसे वे पूजा के बाद ही समाप्त करते हैं।
——-तैयारियों में जुटे श्रद्धालु
बापी दा और बांधाघाट के समाजसेवी सहित व्यवसायी विकास कुमार गुप्ता आदि श्रद्धालु शीतला माता उत्सव को सफल बनाने में सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं। चक्रवर्ती ने शीतला माता उत्सव के मकसद के सवाल पर बताया कि इसे शीतकाल के बाद वसंत के मौसम में ही आयोजित किया जाता है, क्योंकि इस ऋतु में शीतला माता को शीतलता की अनुभूति कराई जाती है। इस दौरान सर्दी के तेवर में भी कमी पाई जाती है, जिससे दूसरे राज्यों से आनेवाले श्रद्धालुओं को अधिक परेशानी का सामना न करना पड़े।

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