scriptबिल्डिंग की आग तो बुझ गई लेकिन दिल में लगी आग कौन बुझाएगा? | The fire of the building was extinguished but who would bury the fire | Patrika News
कोलकाता

बिल्डिंग की आग तो बुझ गई लेकिन दिल में लगी आग कौन बुझाएगा?

– व्यवसाइयों की आंखों में बस दिख रहा है यही सवाल
बागड़ी मार्केट में लगी आग पर भले ही दमकल कर्मी, डीएमजी, सिवील डीफेंस तथा अन्य ने एक-दूसरे की मदद से काबू कर लिया हो लेकिन पीडि़त व्यवसाइयों के दिल में लगी आग अब भी धधक रही है।

कोलकाताSep 21, 2018 / 04:07 pm

Jyoti Dubey

kolkata, west bengal

बिल्डिंग की आग तो बुझ गई लेकिन दिल में लगी आग कौन बुझाएगा?

कोलकाता. बागड़ी मार्केट अग्निकांड ने न केवल व्यवसाइयों को बल्कि शहर के दूसरे बाजारों के व्यवसाइयों को भी अंदर से झकझोर दिया है। रविवार की तडक़े शहर के सबसे बड़े होलसेल मार्केट बागड़ी में लगी आग को 3 दिनों के बाद भले ही दमकल कर्मी, डीएमजी, सिवील डीफेंस तथा अन्य ने एक-दूसरे की मदद से काबू कर लिया हो लेकिन पीडि़त व्यवसाइयों के दिल में लगी आग अब भी धधक रही है। अग्निकांड के 3 दिन बीत जाने के बाद भी पीडि़त व्यवसाई घटनास्थल पर आते हैं। तिरछी निगाहों से बागड़ी मार्केट को देखते हैं और फिर नजरें झुका कर चले जाते हैं। पिछले 3 दिनों से शुरू हुआ यह सिलसिला अब भी जारी है। अधिकांश व्यवसाइयों का कहना है कि आंखें तो बिल्डिंग की दुर्दशा को देखकर समझ जाती है लेकिन दिल मानने को तैयार नहीं है।

2. विनोद डागा, चश्मा व्यवसाई:- जिस दिन से यह घटना घटी है, उस दिन से पानी पीने से पहले भी आंखों में आंसू आ जा रहे हैं। पता नहीं हमसे ऐसी कौन सी गलती हो गई जो भगवान ने हमें यह सजा दी। अब आंखों के सामने सिर्फ अंधेरा दिख रहा है। पता नहीं हमारे बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा।
3. राजकुमार साह, बैग व्यवसाई:- शनिवार की उस काली रात ने सब बर्बाद कर दिया। कुछ नहीं बचा। कभी यहां आने के लिए सुबह होते ही तैयार होते थे। अब लगता है काश सुबह हो ही ना। सुबह कहां जाएंगे? क्या करेंगे? क्या बेंचेगे पता नहीं। पहले रोज एक टार्गेट और गोल होता था। लेकिन आग ने ऐसी तबाही मचाई कि अब ना टार्गेट है और न कोई गोल।

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