कोलकाता के संयुक्त पुलिस आयुक्त ने विभिन्न सिनेमाघरों के प्रबंधकों को पत्र लिखकर फिल्म दिखाने पर रोक लगा दी थी। इसके विरुद्ध फिल्म निर्माता की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। सोमवार को याचिका पर सुनवाई के वक्त निर्माता के अधिवक्ता ने न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में गठित अदालत से कहा कि कोलकाता के सिनेमाघरों में फिल्म दिखाने पर प्रशासन ने रोक लगा रखी है। राज्य सरकार के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि फिल्म पर कोई रोक नहीं लगी है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि कोलकाता के संयुक्त पुलिस आयुक्त ने फिल्म रोकने के लिए सिनेमाघरों को जो पत्र लिखा था, वह अवैध था। संयुक्त पुलिस आयुक्त इस तरह का कोई पत्र नहीं लिख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) तथा गृहसचिव को निर्देश दिया है कि फिल्म दिखाने में प्रशासन कोई बाधा न हो, इसकी व्यवस्था की जाए। साथ ही अदालत ने कहा कि सेंसर बोर्ड जिस फिल्म को अनुमति दे देता है, उसे रोकने का अधिकार प्रशासन को नहीं है। फिल्म देखना या न देखना दर्शकों पर निर्भर करता है। अदालत ने कहा कि संयुक्त पुलिस आयुक्त ने चूूंकि इससे पहले फिल्म रोकने का निर्देश जारी किया था, इसलिए उन्हें फिर से पत्र लिखकर सिनेमाघरों को बताना होगा कि फिल्म दिखाने पर उनकी ओर से कोई आपत्ति नहीं है। 1 अप्रेल को फिर इस मुद्दे पर सुनवाई होगी। अदालत ने राज्य सरकार से कहा है कि अदालत का आदेश किस प्रकार क्रियान्वित किया गया, इस पर एक रिपोर्ट पेश की जाए। मालूम हो कि फिल्म के कुछ दृश्य पर आपत्ति उठाई गई थी। उनका कहना था कि फिल्म के कुछ दृश्य से राज्य सरकार की छवि खराब होगी। फिल्म निर्माता के अधिवक्ता ने कहा कि यदि ऐसा होता तो सेंसर बोर्ड फिल्म दिखाने की अनुमति नहीं देता।