scriptकुछ नेताओं के बागी तेवर ने तृणमूल को डाला मुश्किल में | The rebellious attitude of some leaders put Trinamool in trouble | Patrika News
कोलकाता

कुछ नेताओं के बागी तेवर ने तृणमूल को डाला मुश्किल में

संदेशखाली गेमचेंजर पहले से ही बना है। सीएए की घोषणा और साथ ही कुछ तृणमूल नेताओं के बागी तेवर ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तृणमूल ने 42 सीटों पर पहले सूची जारी कर भाजपा को एक और मौका दे दिया है।

कोलकाताMar 15, 2024 / 09:43 pm

Krishna Das Parth

कुछ नेताओं के बागी तेवर ने तृणमूल को डाला मुश्किल में

कुछ नेताओं के बागी तेवर ने तृणमूल को डाला मुश्किल में

– अर्जुन, हुमायूं कबीर, कुणाल, सायंतनी ने भरी हैं हुंकार
– नाराज नेताओं को मनाने में जुटा पार्टी नेतृत्व

केडी पार्थ

कोलकाता . संदेशखाली गेमचेंजर पहले से ही बना है। सीएए (CAA) की घोषणा और साथ ही कुछ तृणमूल नेताओं के बागी तेवर ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तृणमूल ने 42 सीटों पर पहले सूची जारी कर भाजपा को एक और मौका दे दिया है। भाजपा ने 42 में से 19 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। अन्य सीटों पर अब भाजपा तृणमूल की सूची देखकर उम्मीदवार तय करने और रणनीति बनाने में जुटी है। इस कारण भाजपा की दूसरी सूची आने में देर हो रही है। ममता बनर्जी के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने भी तृणमूल के जनाधार कम होने के सात कारण गिनाए हैं। संदेशखाली आंदोलन, सीएए की घोषणा, तृणमूल का कांग्रेस व वाममोर्चा से गठबंधन नहीं होना, मतुआ (MATUWA) व राजवंशी समुदाय (RAJWANSH COMMUNITY) का सीएए की वजह से भाजपा पर विश्वास आदि इन सात कारणों से तृणमूल को नुकसान होगा और भाजपा को सीधे तौर पर लाभ होने वाला है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18, तृणमूल को 22 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी। हालांकि बाद में अर्जुन सिंह भाजपा छोडक़र तृणमूल में आ गए। अब फिर भाजपा में जाने का रास्ता बना रहे हैं।

सूची को लेकर पार्टी के अंदर खींचतान

तृणमूल (TMC) की सूची को लेकर पार्टी के अंदर खींचतान मची हुई है। अर्जुन सिंह (ARJUN SINGH), अभिनेत्री व पार्टी महासचिव सायंतिका बनर्जी, विधायक हुमायूं कबीर, तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने विरोध कर पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। ममता बनर्जी के भाई बाबुन बनर्जी ने भी तृणमूल सूची को लेकर खुलकर अपना गुस्सा जाहिर किया है। इन नेताओं के विरोधी तेवर के कारण कोलकाता, हावड़ा, हुगली, मुर्शिदाबाद समेत अन्य कई जिले की कई सीटों पर तृणमूल को नुकसान हो सकता है।
कुणाल ने उत्तर कोलकाता का बिगाड़ा खेल
पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने उत्तर कोलकाता का खेल बिगाड़ दिया है। उन्होंने उत्तर कोलकाता के हैवीवेट उम्मीदवार सुदीप बंद्योपाध्याय के खिलाफ पहले बगावत की। उनकी बगावत के कारण ही तृणमूल के वरिष्ठ विधायक तापस राय तृणमूल छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए। कुणाल ने तापस के पक्ष में हवा बनाते हुए आवाज उठाई थी। फिर भी पार्टी उनको महत्व दे रही है। एक समय लग रहा था कि कुणाल घोष के विद्रोह के कारण सुदीप को टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन ममता ने एक बार फिर सुदीप पर भरोसा जताया है। सवाल यह है कि सुदीप इस विकट हालात में किस तरह अपना और पार्टी की नैया पार करेंगे।

कल्याण के खिलाफ भी उठ रही आवाज

कुछ साल पहले अभिषेक बनर्जी पर व्यक्तिगत टिप्पणी के बाद कल्याण बनर्जी की आलोचना के कारण तृणमूल के भीतर हंगामा मचा था। सीएम के विश्वासपात्र माने जाने वाले कल्याण के साथ अभिषेक के संबंधों पर भी चर्चा की। उस समय श्रीरामपुर विधायक सुदीप्त राय का कल्याण से टकराव भी कई घटनाओं में सामने आया था। उस समय एक दिन के अंदर ही सुदीप्त को श्रीरामपुर वॉल्श हॉस्पिटल पेशेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और कल्याण को अध्यक्ष बना दिया गया। कभी स्कूल अध्यक्ष का पद बदलने को लेकर तो कभी पार्क के उद्घाटन में विधायक का नाम नहीं होने को लेकर तृणमूल में उठापटक चली। इससे क्षेत्र के ज्यादातर कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं। एक समय लग रहा था कि कल्याण का पत्ता कटेगा, लेकिन ममता ने उन्हें टिकट देकर सबको चौंका दिया। भाजपा के श्रीरामपुर संगठनात्मक जिला अध्यक्ष मोहन अदक का कहना है कि कल्याण बनर्जी ने श्रीरामपुर के लोगों के बारे में नहीं सोचा। नतीजा यह है कि लोग उन पर सवाल उठा रहे हैं कि पिछले 15 साल में लोगों के लिए उन्होंने क्या किया और लोगों को उनसे क्या मिला।
बैरकपुर: कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना तो नहीं
तृणमूल की अंगुली पकडक़र राजनीति में आए सांसद अर्जुन सिंह का दावा है कि बैरकपुर उनका है। उनको ही वहां से चुनाव लडऩा चाहिए। लेकिन तृणमूल ने उन्हें टिकट नहीं देकर उनकी उपेक्षा की है। वे अब बैरकपुर से तृणमूल के उम्मीदवार पार्थ भौमिक के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। यह माना जा रहा है कि भाजपा उनको वहां से उम्मीदवार बना सकती है। पिछले चुनाव 2019 में भी अर्जुन सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लडक़र जीत दर्ज की। लेकिन कुछ दिनों बाद ही वे पुन: तृणमूल में चले आए। अर्जुन को टिकट नहीं देने पर राजनीतिक पंडित भी चकित हैं कि यह क्या हुआ। कहीं ऐसा कर भाजपा के लिए रास्ता तो नहीं तैयार किया गया?

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