होनी चाहिए कड़ी सजा ऐसे अपराधी को कड़ी सजा होनी चाहिए ताकि दूसरे लोग भी सजा सुनकर कांप जाए। दिन-प्रतिदिन ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं इसके लिए सरकार को भी एकजुट होकर कड़े कदम उठाने चाहिए। ऐसा कुकृत्य करने वाले को ऐसा कर देना चाहिए कि वह न जी सके और न मर सके। - कृष्णा मुदंड़ा, संरक्षक, वृहत्तर कलकत्ता माहेश्वरी महिला संगठन
नहीं हो रही बच्चों की सही परवरिश सारी समस्याएं हैं कि हम अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। बच्चों को नौकरों व चाइल्ड केयर के भरोसे छोड़ रहे हैं जिसके कारण उनमें संस्कार नहीं पनप रहे। महिलाएं ही नहीं, बल्कि बच्चियां और लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं। घिनौनी मानसिकता ने समाज को बीमार कर दिया है। ऐसे माहौल में बदलाव के लिए चाहिए कि लड़कियों के साथ ही लड़कों में भी संस्कार डाले जाए ताकि उनकी मानसिकता स्वस्थ हो। - रेनू गुप्ता, मंत्री, श्रीमहिला मंडल वाष्णेय समाज, कोलकाता
डर लग रहा है दो बेटियों की मां होने के कारण अब उनके बाहर निकलने पर भी डर लगता है। बच्चियों को सुरक्षा के लिए कराटे सिखाने की जरूरत है तो बेटों को सही शिक्षा देने का भी दायित्व बढ़ गया है। यदि सब बेटे सही हो जाए तो बेटियों को डरने की जरूरत नहीं। तब तक तो हम सभी डर के साये में जीने को मजबूर है। - नीलम शर्मा, गृहिणी
कब तक होता रहेगा ऐसा घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। हर मेट्रो सिटी से लेकर गांव तक कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। हवस की आग में जल रहे लोगों को कुछ भी नहीं सूझ रहा। सरकार को कड़े कदम उठाने के साथ ही नई नीति भी लानी चाहिए। ऐसी घटनाओं के साक्ष्य मिलते ही अपराधी को पीट-पीटकर मार डालना चाहिए। आधुनिकता के नाम पर खो रहे हमारे संस्कार के पौधे को फिर से हरा-भरा करने का समय आ गया है। - बिनीता अग्रवाल, मारवाड़ी महिला समिति लॉयनेस क्लब ऑफ हावड़ा
विकराल रूप ले रही घिनौनी मानसिकता स्थितियां भयावह होती जा रही हैं। सरकार को इस ओर कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि ऐसा करने वाले घिनौनी हरकत करते हुए दस बार सोचे। मुझे लगता है कि सभी महिला संस्थाओं को एक मंच पर आकर इस स्थिति का विरोध करना चाहिए। इसका निदान चाहिए, स्वस्थ परिवेश चाहिए। ऐसा होना हमारे देश के लिए कलंक है। - उमा धनानी, मंत्री, संघश्री
क्या करूं समझ नहीं आता? नौकरी करके दो बेटियों का पालन कर रही हूं। घर में कोई देखने वाला नहीं है। ऐसे में स्कूल से आने के बाद अक्सर बच्चियों को कार्यस्थल पर बुला लेती हूं। बस यही डर रहता है कि कहीं कुछ हो न जाए। परिवेश ऐसा है कि हर व्यक्ति को संदेह से देखने को मजबूर हूं। विश्वास किसी पर नहीं कर पाती। क्या करूंसमझ नहीं आ रहा। - संगीता तिवारी, नौकरीपेशा