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मोदी और शाह के तूफानी प्रचार ने तृणमूल को किया और मजबूत

locationकोलकाताPublished: May 09, 2021 07:17:02 pm

Submitted by:

Krishna Das Parth

विधानसभा चुनाव: भाजपा विरोधी मतदाताओं का हुआ ध्रुवीकरण- कांग्रेस व वामदलों के मतदाता चले गए तृणमूल के खेमे में

मोदी और शाह के तूफानी प्रचार ने तृणमूल को किया और मजबूत

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कृष्णदास पार्थ
कोलकाता.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के तूफानी चुनावी दौरे ने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को और मजबूत कर दिया। नतीजतन बंगाल में ३४ वर्षों तक शासन करने वाले वाममोर्चा और करीब २० साल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस इस बार अपना खाता भी नहीं खोल पाई। दो-तिहाई बहुमत से ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जितने आक्रामक तरीके से मोदी और शाह ने बंगाल में चुनाव प्रचार किया उसका फायदा भाजपा को कम तृणमूल को ज्यादा मिला। भाजपा विरोधी मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो गया। वाम और कांग्रेस के वोट भी तृणमूल कांग्रेस के पाले में चले गए। यह बंगाल में नो भाजपा अभियान का परिणाम है। तृणमूल और बुद्धिजीवियों, वामपंथी उदारवादियों ने भाजपा के खिलाफ इस अभियान को अंजाम दिया। इसका लाभ तृणमूल को ही मिला है।

करारी हार की समीक्षा में जुटे वामपंथी
आजादी के बाद एक भी सीट नहीं जीतने पर वाममोर्चा की कहीं अधिक आलोचना की जा रही है। पिछले लोकसभा चुनावों में वामपंथियों का वोट छह प्रतिशत था। इस बार विधानसभा में घटकर ५.७५ प्रतिशत हो गया है। नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट से गठबंधन करने के फैसले की फिर से आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि अब्बास सिद्दीकी ने अतीत में जिस तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी की है, उसे धर्मनिरपेक्ष नहीं कहा जा सकता। वाममोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस ने भी स्वीकार किया कि मोर्चा को जो वोट नहीं मिले वो शायद तृणमूल के पक्ष में चले गए। पूर्व विधायक, माकपा नेता तन्मय भट्टाचार्य कहते हैं कि यह हो सकता है लेकिन अगर बूथ-आधारित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, तो बहुत कुछ कहना संभव नहीं है। उनका कहना है कि समीक्षा के बाद ही पता चलेगा कि जो वोट वामपंथियों के थे वे कहां गए।

नए चेहरे पर दांव हुआ नाकाम
वामपंथियों ने अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने की भरपूर कोशिश की थी। कई नए चेहरे को इस उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने पूरे राज्य में प्रचार किया। सोशल मीडिया पर समर्थन भी किया गया। इसके बाद भी वामपंथी खाता खोलने में विफल रहे। इससे तिलमिलाए कुछ वामपंथी नेताओं ने मौजूदा नेतृत्व पर सवाल भी उठाया है। इससे वाममोर्चा में खलबली मची हुई है। तन्मय भट्टाचार्य की सीधी-सीधी टिप्पणी ने तो माकपा के वरिष्ठ नेताओं को हिलाकर रख दिया है।

खाता नहीं खुलने की ये वजहें
एनआरसी और सीएए को लेकर राज्य अल्पसंख्यक मतदाता सबसे ज्यादा चिंतित हैं। उन्होंने भाजपा को हराने के लिए एकजुट होकर तृणमूल का साथ दिया। इससे पहले उनके वोट कांग्रेस और वामपंथियों के हिस्से में जाते थे।
ममता के भाजपा विरोधी तेवर ने अल्पसंख्यकों में भरोसा जताया। अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृति, इमामों को भत्ते समेत तृणमूल सरकार की कई योजनाओं ने अल्पसंख्यकों को आकर्षित किया।

भाजपा को रोकना था मकसद
दूसरी तरफ कांग्रेस और वामदलों ने एनआरसी और सीएए के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा। इस कारण संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवार अल्पसंख्यकों का विश्वास नहीं जीत सके।
मोदी और शाह की कई चुनावी रैलियों ने अल्पसंख्यकों को और चिंतित कर दिया। उन्हें लगने लगा कि वे एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट नहीं दिए तो भाजपा यहां सत्ता में आ जाएगी। यही कारण है कि नहीं चाहते हुए भी कई अल्पसंख्यक मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया, क्योंकि उनका एकमात्र मकसद भाजपा को रोकना था।
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