तृणमूल कांग्रेस ने उनमें से 58 में, बीजेपी ने 2 में और 1 में संयुक्त मोर्चा ने जीत हासिल की। अल्पसंख्यक बहुल सीटों के अधिकांश हिस्से चार जिलों- मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर 24-परगना और दक्षिण 24-परगना में हैं।
मुर्शिदाबाद में कुल 22 विधानसभा सीटों में 16 अल्पसंख्यक बहुल सीटें हैं, बाकी तीन जिलों में 9 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि, इन कुल 63 सीटों में से 61 में चुनाव हुए थे, क्योंकि शमशेरगंज और जंगीपुर में उम्मीदवारों की मृत्यु के कारण चुनाव स्थगित कर दिए गए थे।
बाकी 61 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 58 सीटें हासिल करने में सफल रही। दिलचस्प बात यह है कि इन 58 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 40 हजार या उससे अधिक मतों के अंतर से 30 सीटें जीतने में सफल रही।
मालदा जिले के सुजापुर में एसके जियाउद्दीन, फरक्का में मोनिरुल इस्लाम, भगवानगोला में इदरीस अली मुर्शिदाबाद में दोनों उम्मीदवार कुल मतों के 50 प्रतिशत से ऊपर वोट पाकर 50 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे।
बीजेपी को उत्तर दिनाजपुर में केवल एक सीट और मुर्शिदाबाद जिले में दूसरी सीट मिली, जबकि भारतीय सेक्युलर मोर्चा (संयुक्त मोर्चा का सहयोगी) दक्षिण 24 परगना जिले की भांगड़ सीट पर कामयाब रहा। अल्पसंख्यक वोट बैंक निर्णायक कारक – चुनाव नतीजों से लग रहा है कि ममता अल्पसंख्यक वोटों को अपने पक्ष में करने में सफल रहीं।
तृणमूल कांग्रेस को आईएसएफ का डर था, मुस्लिम धर्मगुरु के नेतृत्व में नवोदित राजनीतिक दल तृणमूल कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकता था, लेकिन वे अल्पसंख्यकों वोटों को बांटने में कामयाब नहीं हो पाए, इसलिए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया।
अल्पसंख्यक वोट बैंक बंगाल चुनाव में एक बड़ा और निर्णायक कारक है। लगभग साढ़े तीन दशकों तक अल्पसंख्यकों को वाममोर्चा का वोट बैंक माना गया, जिसने राज्य में 34 वर्षों तक शासन किया। अल्पसंख्यकों ने टीएमसी पर जताया भरोसा
सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के दौरान तृणमूल ने किसानों, मजदूरों अल्पसंख्यकों और खासकर गरीबों को एकजुट किया। अल्पसंख्यकों ने वामपंथियों से मुंह मोड़ कर तृणमूल कांग्रेस पर भरोसा जताया।
साल 2011 में वाम मोर्चा अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखने में सफल रहा और 45 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोटों का प्रबंधन किया, लेकिन तत्कालीन सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश ने ममता बनर्जी को सत्ता दिला दी।
बीजेपी के ध्रुवीकरण से हुईं सतर्क
बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना देखकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आशंका जताई थी कि अगर अल्पसंख्यक मतदाताओं के वोट तृणमूल के खाते में नहीं आते हैं तो यह उनकी हार का कारण बन सकता है।
यह उनके भाषणों में स्पष्ट था, जहां उन्होंने चुनावी सभा में कहा था कि जो व्यक्ति हैदराबाद से बंगाल का दौरा कर रहा है, उसे विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए भाजपा से पैसा मिला है।
उन्होंने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा था। ममता फुरफुरा शरीफ के मौलवी अब्बास सिद्दीकी पर भी बरसी थीं, जिन्होंने इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) का गठन किया और चुनाव लडऩे के लिए कांग्रेस और वाम मोर्चे से हाथ मिलाया।