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गोलियों की बौछार के बीच पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन

locationकोलकाताPublished: Dec 14, 2019 10:46:19 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

VIJAY–DIWAS ON OCASSION OF 1971 WAR WILL BE HELD ON 16 DECEMBER—विजय दिवस पर पत्रिका खास रपट, 1971 जंग के योद्धा ने तबाह किए थे दुश्मन के टैंक, शिप, 1971 जंग में पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में कल मनेगा विजय दिवस

गोलियों की बौछार के बीच पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन

गोलियों की बौछार के बीच पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन

कोलकाता. 1971 के जंग में पाकिस्तान पर मिली ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में हर साल 16 दिसंबर को मनाए जाने वाले विजय दिवस समारोह का आगाज जहां भारतीय सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय की ओर से हो गया। वहीं इस जंग में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना के सामने सरेंडर कराने वाली टीम के साक्षी और पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन में वायुसेना मेडल से सम्मानित विंग कमांडर डीजे क्लेर (रिटायर्ड) ने दुश्मन के टैंक, शिप और ट्रूप के कॉन्वाय को बुरी तरह तबाह कर दिए थे। 1971 में पाक पर मिली जीत भारतीय सेना व पूर्वी कमान के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है। भारतीय सेना ने बांग्लादेश के मुक्ति योद्धाओं के साथ मिलकर पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जिसके बाद ही बांग्लादेश का जन्म हुआ। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम १९७१ के हीरो अपने पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर (दिवंगत) के साथ युद्ध अभियान में हिस्सा लेने वाले विंग कमांडर डीजे क्लेर ने पत्रिका से खास भेंट में १९७१ जंग की झलक तरोताजा कर दी। विंग कमांडर डीजे क्लेर ने ‘12 डेज टू ढाका’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी जिसमें 1971 जंग सहित बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। जंग में क्लोज एयर सपोर्ट टू इंडियन आर्मी ट्रूप्स में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ ही हिन्दुस्तान में नेट जहाज में सबसे ज्यादा उड़ान भरने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है। उन्होंने बताया कि जिस समय पाकिस्तान से युद्ध आरंभ हुआ उस समय उनकी पोस्टिंग २२ स्क्वाड्रन एयरफोर्स कलाईकुंडा में बतौर फ्लाइंग ऑफिसर थी। क्लेर ने बताया कि जैसोर, खुलना, दौलतपुर, चिट्गांव ऑयल रिफाइनरी, ढाका, कुर्मीटोला एयरफील्ड में हवाई हमले सहित हार्डिंग ब्रिज में उन्होंने काफी एक्शन किए। खुलना में पाकिस्तान के बहुत शिप बर्बाद करने के साथ एंटी शिपिंग ऑपरेशन, जैसोर में एंटी टैंक ऑपरेशन और दौलतपुर में ट्रूप ट्रेन और पाक मिलिट्री कॉन्वाय पर ऑपरेशन में भाग लिया। जंग में पाक वायु सेना के ३एफ-८६ लड़ाकू विमान को मार गिराने वाले बोयरा फोर्स के सदस्यों में भी वे शामिल थे। २५ अक्टूबर, १९७१ को उनकी शादी सूची क्लेर से उस समय हुई जब पाकिस्तान के साथ संबंध तनावपूर्ण थे और युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। ३०० साल से सैन्य सेवाएं देने वाले खानदान से ताल्लुक रखने वाले विंग कमांडर क्लेर के दादाजी ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था, जबकि ढाका के मुक्तिदाता के नाम से मशहूर इनके पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर को महावीर चक्र, अतिविशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था।
नियाजी के टेबल से उठा लाए थे झंडा

क्लेर के पिता ने जनरल नियाजी के टेबल से उसका झंडा उठा लाया था, जिसे उन्होंने १५ दिसंबर, २०१४ को सेना के पूर्वी कमांड मुख्यालय फोर्ट विलियम को सौंपा और आज यह फोर्ट विलियम में जनरल ऑफिसर-कमांडिग-इन-चीफ के कार्यालय में है।
मुक्तिदाता के नाम से मशहूर थे इनके पिता

मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर को रेडक्रॉस की ओर से ढाका के मुक्तिदाता के नाम से संबोधित किया जाता था। १९७१ जंग के हीरो मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर (1924-2016) भारतीय सेना के उन महान योद्धाओं में थे जिन्होंने १९६५ और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया था। १९७१ युद्ध में जनरल नियाजी को युद्ध के 12 दिनों में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था। इस अनूठी उपलब्धि के लिए मेजर जनरल क्लेर को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जबकि उनके पुत्र विंग कमांडर डीजे क्लेर को वायु सेना पदक (गैलेन्ट्री) मिला।
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