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16 दिसंबर, जिसने पाकिस्तान के गुरूर को किया था चकनाचूर

locationकोलकाताPublished: Dec 17, 2018 02:31:31 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

भारतीय जांबाजों ने बदल डाला इतिहास और भूगोल भी—पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश का लिख दिया नाम–विजय दिवस पर विशेष–बांग्लादेशी मुक्ति योद्धाओं ने किया भारतीय जांबाजों को सैल्यूट

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16 दिसंबर, जिसने पाकिस्तान के गुरूर को किया था चकनाचूर

कोलकाता. भारतीय सेना के इतिहास में 16 दिसंबर एक ऐसी ऐतिहासिक तारीख है, जिसने पाकिस्तान के गुरूर को चकनाचूर कर दिया था। 16 दिसम्बर, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में हर साल भारतीय सेना इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाती है। इसी दिन 2 बड़ी ऐतिहासिक घटनाएं घटी, जिसकी साक्षी रही भारतीय सेना ने अपने शौर्य-पराक्रम और बलिदान का एक अद्भुत मिसाल पूरी दुनिया के सामने पेश किया। पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर बांग्लादेश के रूप में एक नए देश के जन्म में भारत की भूमिका अहम रही। पूर्वी पाकिस्तान की आजादी का मसला हो या आजादी के लिए संग्राम करने वाले मुक्ति वाहिनी योद्धा के प्रशिक्षण का, भारत की तीनों सेनाओं ने अहम भूमिका निभाई थी। 1971 का युद्ध भारतीय सेना के जवानों की जांबाजी, शौर्य और पराक्रम की ऐसी मिसाल है, जिसे शायद ही कोई भारतीय भूल पाए। भारतीय वायु सेना ठिकानों पर जब पाकिस्तान ने हमले शुरू किए तो महज 5-6 दिनों के अंदर ही भारतीय वायु सेना ने उन्हें करारा जवाब दे हमेशा के लिए शांत कर दिया। विजय दिवस समारोह में भाग लेने आए बांग्लादेशी मुक्ति योद्धाओं ने इन शब्दों में भारतीय सैनिकों की वीरगाथा का उल्लेख किया। समारोह में हिस्सा लेने के लिए आए बांग्लादेशी मुक्ति योद्धा और उनके परिजनों सहित ७२ सदस्यीय बांग्लादेशी प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय जांबाजों के शौर्य को सलाम किया। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बांग्लादेश के मुक्ति योद्धा कल्याण मंत्री एकेएमएम हक ने किया। उनके साथ सांसद काजी रोजी सहित 30 मुक्ति योद्धा सपरिवार और बांग्लादेशी सेना के 6 सेवारत अधिकारी थे। विजय स्मारक पर रविवार को शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही विजय दिवस समारोह का समापन हुआ। बांग्लादेशी मुक्ति योद्धा-सह-सांसद काजी रोजी ने कहा कि हम अपनी आजादी के लिए लड़े और भारतीय सैनिकों ने हमारी तन-मन-धन से मदद की। उन्होंने कहा कि अगर भारतीय सैनिकों का साथ नहीं होता, तो हम आजादी हासिल नहीं कर सकते। उनका कहना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए वियतनाम को 9 साल लग गए और हमने कुछ महीनों में ही यह कर दिखाया। भारत ने हमें आश्रय दिया, खिलाया-पिलाया। मोहम्मद अनवर हुसैन पहाड़ी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि भारत विरोधी भावनाओं को फैलाने के लिए बांग्लादेश के एक वर्ग की हरकतों को वे बर्दाश्त नहीं करते। मोहम्मद हारुन-उल-रशीद ने कहा कि 76 मुक्ति जोधाओं की उनकी टीम को सामरिक महत्व वाले अगरतला हवाई अड्डे की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था।
—--18 मिशन के तहत तबाह कर दिए थे दुश्मन के टैंक, शिप और कॉन्वाय
उधर वायुसेना मेडल से सम्मानित विंग कमांडर डीजे क्लेर ने गोलियों की बौछार के बावजूद 1971 के जंग में पाकिस्तानी सीमा में अपने 18 मिशन के तहत तबाह कर दिए थे दुश्मन के टैंक, शिप और ट्रूप के कॉन्वाय। जंग के हीरो अपने पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर के साथ युद्ध अभियान में डीजे क्लेर ने हिस्सा लिया था। 71 वर्षीय विंग कमांडर डीजे क्लेर ने बताया कि जैसोर, खुलना, दौलतपुर, चिट्गांव ऑयल रिफाइनरी, ढाका, कुर्मीटोला एयरफील्ड में हवाई हमले सहित हार्डिंग ब्रिज में उन्होंने काफी एक्शन किए। खुलना में पाकिस्तान के बहुत सारे शिप बर्बाद करने के साथ एंटी शिपिंग ऑपरेशन, जैसोर में एंटी टैंक ऑपरेशन और दौलतपुर में ट्रूप ट्रेन और पाक मिलिट्री कॉन्वाय पर ऑपरेशन में भाग लिया था।
—-नियाजी के टेबल से उठा लाए थे झंडा
उन्होंने बताया कि उनके पिता ने जनरल नियाजी के टेबल से उसका झंडा उठा लाया था, जिसे उन्होंने 15 दिसंबर, 2014 को सेना के पूर्वी कमांड मुख्यालय फोर्ट विलियम को सौंपा था और आज यह फोर्ट विलियम में जनरल ऑफिसर-कमांडिग-इन-चीफ के कार्यालय में है।
—क्या है विजय दिवस?
16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दी थी। विजय दिवस 16 दिसम्बर, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में हर साल मनाया जाता है। इस जंग के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान को आजादी मिली, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। इसी युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कुशल विदेश नीति-कूटनीति के कारण पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौज के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष सरेंडर किया था, जिसके बाद 17 दिसम्बर को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया।
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