scriptबड़ाबाजार में भोर से ही सुनाई दे रहे राजस्थानी लोकगीतों के स्वर | Vocals of Rajasthani folk songs being heard in Burrabajar | Patrika News

बड़ाबाजार में भोर से ही सुनाई दे रहे राजस्थानी लोकगीतों के स्वर

locationकोलकाताPublished: Mar 11, 2018 10:05:48 pm

Submitted by:

Rabindra Rai

बाड़ी वाला बाड़ी खोल, आ टीकी म्हारी गवरजा बाई ने सोहे…

kolkata west bengal
कोलकाता.

गणगौर पूजा को लेकर इन दिन मारवाडिय़ों के गढ़ बड़ाबाजार में भोर से ही राजस्थानी लोकगीतों के स्वर कान में पड़ रहे हैं। जैसे बाड़ी वाला बाड़ी खोल, आ टीकी म्हारी गवरजा बाई ने सोहे आदि गीत गूंज रहे हैं। बड़ाबाजार में नौ मंडलियों का इसमें अभूतपूर्व योगदान हैं। ये मंडलियां अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। ये बंगधरा पर राजस्थान के त्यौहार को करीब डेढ़ शतकों से बड़े ही हर्षोल्लास से करती आ रही हैं।
निकलती है शोभायात्रा
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज व चौथ के दिन सायंकाल को सभी मंडलियों की शोभायात्रा निकलती है जिसमे गणेश गाड़ी, स्वांग गाड़ी ,गायन गाड़ी व माँ का रथ होता है। सर्वप्रथम ये गंगाघाट माँ को पानी पिलाने जगन्नाथ घाट ले जाती हैं और वहां से बड़ाबाजार अंचल में विभिन्न संस्थाओं द्वारा जो स्टेज बनाए जाते हैं वहां सभी मंडली भक्ति भाव से गीतों के माध्यम से माँ की आराधना करती हैं। पंचमी के दिन निम्बूतल्ला चौक में सभी मंडलियां अपनी मंडली के दो भक्ति गीत प्रस्तुत करती है।
बलदेवजी गवरजा माता सेवा ट्रस्ट
श्री श्री बलदेवजी गवरजा माता सेवा ट्रस्ट की स्थापना 1937 में तखतसिंह टावरी ने की थी उस वक्त छोटूलाल मोहता व किशनदास लाखोटिया ने अपना पूर्ण सहयोग दिया था। 1981 में मंडली ने अपनी शताब्दी मनाई थी। शोभायात्रा में माँ के रथ को बैलों द्वारा चलाया जाता है। पेचा(पगड़ी)तिरंगा धनुष-भांत रंग का इस मंडली का प्रतीक है।
गवरजा माता गोवर्धन नाथजी का मंदिर

मंडली का गठन तखतसिंह टावरी की देख-रेख में 1942 में हुआ। 1985 में मंडली ने शताब्दी मनाई थी। शोभायात्रा में माँ के रथ को मनुष्यों द्वारा खींचा जाता है कोई भी जानवर का प्रयोग नही किया जाता है। द्वरंगी धनुष-बाण रंग का पेचा मंडली का प्रतीक है।
गवरजा माता पारख कोठी
मंडली का गठन 1882-83 में सेठ पुरषोत्तम दास पारख के संरक्षण में इसका सार्वजनिक पूजन आयोजन आरम्भ हुआ जिसमें हुणतराम बागड़ी, भवानीराम पचीसिया, हीरालाल बिन्नानी,बालकिशन बागड़ी, बंशीलाल बागड़ी आदि के प्रयासों से संभव हुआ। 1996 में मंडली ने 113 वर्ष पश्चात शताब्दी मनाई जिसमे माँ के रजत रथ का निर्माण करवाया जिसकी छटा देखते ही बनती है। केसरिया रंग का पेचा मंडली का प्रतीक है।
गवरजा माता निम्बूतल्ला पंचायत
मंडली की स्थापना 1909 में हुई जिसमे प्रमुख भूमिका रामरतन मूंधड़ा और उनके विशेष सहयोगी प्रह्लाद जोशी गुरुजी एवम केशरदेव पोद्दार रहे थे। मंडली ने 1975 में हीरक जयंती, 1995 में अमृत महोत्सव और सन 2011 में शताब्दी मनाई । निम्बूभरणा रंग का पेचा मंडली का प्रतीक है।
गवरजा माता बाँसतल्ला

मंडली की स्थापना 1926 में भतमाल व्यास के द्वारा हुई और उस समय उनके विशेष सहयोगी थे – गोपीकिशन राठी,रतन लाल बाहेती व गिरधर दास लढ्ढा। मंडली ने 1987 में हीरक जयंती महोत्सव का आयोजन किया था। शर्बतिया रंग का पेचा इनका प्रतीक है।
गवरजा माता हंसपुकुर मंडली
मण्डली की स्थापना 1955 में श्रीगोपाल आचार्य धूडिय़ा मार्जा ने की थी। छगनलाल मोहता, राधाकिशन बाहेती, रुक्मिणी देवी मालू , शिवगोपाल जी हर्ष चोरियोजी, भिखमचंद जी बिन्नानी मीण्डो, तुलसीराम कोठारी, द्वारका दास कोठरी, बंशीलाल जी मालू, बुलाकी दास मोहता, मोहनलाल पुरोहित व छगन लाल बिन्नानी का विशेष सहयोग रहा। मंडली ने 2004 में स्वर्ण जयंती मनाई। चम्पईया रंग का पेचा मंडली का प्रतीक है।
गवरजा माता गांगुली लेन
मंडली की स्थापना 1975 में हुई। रामरतन झंवर के परिवार की काष्ठ की प्रतिमा जिसे चञ्चल गवर भी कह कर भी संबोधित किया जाता हैं क्योंकि राजस्थान से ये प्रतिमा कोलकाता आयी थी तो ये कभी भी एक जगह स्थिरता से विराज ही नहीं पाई तब जयकिशन झंवर व श्रीरतन सेवक के सहयोग से यह संभव हुआ। मंडली ने 2006 में नीलम जयंती मनाई। पँचरंगी पेचा मंडली का प्रतीक है।
मनसापुरण गवरजा माता मंडली

जितनी भी मंडलियां बनी उनके स्थापक माहेश्वरी समाज के लोग ही थे। पुष्करणा समाज के लोग भी कोलकाता महानगर में अच्छी तादाद में है।अपने जातीय स्वाभिमान को गरिमामण्डित करने के उद्देश्य से पुष्करणा समाज की गवर के रूप में सन 1978 में इसकी स्थापना हुई। मंडप में इसर-गवर साथ- साथ विराजते हैं। लाल कसूमल रंग का पेचा मंडली का प्रतीक हैं।
गवरजा माता कलाकार स्ट्रीट
मंडली की स्थापना 1980 में सत्यनारायण देरासरी ने की। मंडली ने 2005 में रजत जयंती मनाई। चुनड़ी का पेचा मंडली का प्रतीक है।

गवरजा माता सम्मिलित कमिटी बनी
श्री श्री गवरजा माता सम्मिलित कमिटी के गठन लगभग 47 पूर्व हुआ था जो महानगर की सभी नौ गवर मंडलियों की आचार- संहिता के एक सूत्र में पिरोकर रखने के उद्देश्य से की गई थी। तब से प्रतिवर्ष गणगौर महोत्सव के दौरान शोभायात्रा का आयोजन सम्मिलित कमिटी के आदेशानुसार संचालित होते हैं तथा पंचमी के सायंकाल को निम्बूतल्ला चौक में सभी नौ गवर मंडली द्वारा अपने दो श्रेष्ठतम दो भक्ति गीतों की प्रस्तुति सम्मिलित कमिटी के नेतृत्व में किया जाता है। संचालन और व्यवस्था श्री निम्बूतल्ला पंचायत करती है
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