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लखनऊ के नवाब वाजिद आल शाह की लिखी किताब परीखाना में उनके जीवन के कई रहस्यमय पक्षों का विस्तार से वर्णन है। इस किताब में उन्होंने 26 वर्ष की आयु तक अनेक महिलाओं से अपने प्रेम प्रसंगों, अनुभवों और संगीत नृत्य से अपने जुड़ाव की बातें लिखी हैं। उनमें से कईयों के साथ उन्होंने विवाह किया और कई को बेगमों के खि़ताब से भी नवाजा।
हसीन बेगमों के रहने और नृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए नवाब ने परीखाने का निर्माण कराया था। लखनऊ के बाद कलकत्ते में भी उनकी रसिकता के कई किस्से आम हुए।
वाजिद अली शाह पर कई किताबें लिखी गईं,कई किताबों में उनका लंबा जिक्र मिला। नवाब के बारे में कहा जाता था कि उनकी 300 बेगमें थीं और उन्होंने बड़ी संख्या में तलाक भी दिए। इनमें से कुछ निकाह थे कुछ मुताह थे। लॉस्ट जनरेशन की लेखिका निधि दुग्गर अपने एक लेख में बताती हैं कि नवाब के तलाक की सबसे बड़ी वजह बेगमों और उनके बच्चों के बढ़ते खर्चे और समय न देने के चलते होने वाले झगड़े होते थे। अवध के आखिरी नवाब के बारे में एक और बात कही जाती थी कि जब दुनिया गोरे रंग की दीवानी थी, तब वे गहरे रंग की चमड़ी के कद्रदान थे। उन्होंने अरब व्यापारियों की अफ्रीकी गुलाम औरतों से भी निकाह किए, इनमें से कुछ उनकी सुरक्षा में रहती थीं। जिनमें से एक बेगम का नाम अजायब खातून रखा गया था।
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वाजिद अली शाह के पर-परपोते और कोलकाता निवासी शहंशाह मिर्जा और कामरान मिर्जा बताते हैं कि नवाब साहब ने मटियाबुर्ज में छोटा लखनऊ तैयार किया। उनके पीछे पीछे शार्गिद आए, कलाप्रेमी, कलाकार, बावर्ची, दर्जी, पतंगबाज आए। कत्थक फला फूला, अर्ध शास्त्रीय ठुमरी प्रचारित हुई। उनके यहां लगने वाले दरबार में कलाकारों, शायरों को जगह मिली। हुगली के किनारे शामे अवध दिखी। कबाब, बिरयानी की लज्जतें लोगों तक पहुंची। पतंगबाजी का शौक कलकत्ते तक आया। उनके बनाए कई भवन बाद में ब्रिटेन सरकार ने नीलाम कर दिए। शाही इमामबाड़ा जहां उनकी कब्र है जैसी गिनी चुनी इमारतें ही उनके यहां गुजारे ३१ सालों की कहानी कहती हैं।
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बंगाल की बिरयानी में आलू और अंडे देश भर की बिरयानी रेसपी से अलग होते हैं। नवाब वाजिद अली शाह के बावर्चियों ने उस समय की डेलीके सी माने जाने वाले आलुओं को बिरयानी में जगह दी। जिनका आज भी बंगाल में प्रचलन है।