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300 बेगमों वाले अवध के नवाब ने कलकत्ता में बसाया था छोटा लखनऊ

locationकोलकाताPublished: Jul 30, 2020 03:03:16 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

अवध के नवाब वाजेद अली शाह (Wajid Ali Shah) का जन्म 30 जुलाई 1822 को लखनऊ में हुआ था। उन्होंने अपनी अंतिम सांस कलकत्ता (kolkata) में ली थी। कला, संस्कृ़ति, खान-पान के शौकीन इस नवाब के कलकत्ता में काटे गए जीवन से जुड़ीं बातें बताती यह रिपोर्ट।

300 बेगमों वाले अवध के आखिरी नवाब ने कलकत्ता में बसाया था छोटा लखनऊ

300 बेगमों वाले अवध के आखिरी नवाब ने कलकत्ता में बसाया था छोटा लखनऊ

कोलकाता. सत्यजीत राय की मशहूर हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी देखने वाले दर्शकों को याद होगा कि कैसे लखनऊ के दो बड़े लोग वहां जारी अशांति के दौर में सूनसान गांव में जाकर शतरंज खेलते हैं। दीन दुनिया की गतिविधियों से दूर रहकर शह और मात की चौसर में डूबे खिलाडिय़ों को देखकर उस समय के लखनऊ और वाजिद अली शाह के शासनकाल की कुछ तस्वीरें तो सबने अपने अपने दिमाग में तैयार की होंगी।
300 बेगमों वाले अवध के आखिरी नवाब ने कलकत्ता में बसाया था छोटा लखनऊ
खैर फिल्म तो लखनऊ में ही खत्म हो जाती है, लेकिन अवध के आखिरी नवाब और उनकी नवाबियत की कहानी वहां से सैकड़ों मील दूर कलकत्ता में जारी रहती है। जहां वे अपने जीवन के आखिरी 31 साल गुजारते हैं। लखनऊ के तख्तो ताज की ईस्ट इंडिया कंपनी की जब्ती के बाद जब उन्हें कलकत्ता के लिए निर्वासित किया जाता है तो वे 18 दिनों की नौका यात्रा से कलकत्ता के मटियाबुर्ज पहुंचते हैं। जहां कुछ समय के बाद ब्रितानिया हुकूमत उन्हें 26 महीनों के लिए फोर्टविलियम में नजरबंद कर देती है। इस दौरान वे शेरो-शायरी की अपनी रुचियों में और धार लाते हैं। नजरबंदी से बाहर निकलने के बाद अवध के जाने आलम कलकत्ता को अपना ठिकाना बनाने की ठान लेते हैं। हुगली के तट पर छोटा लखनऊ तैयार करने का काम शुरू होता है। इधर, अवध से उनके शागिर्दों, चाहने वालों, पतंगतबाज, दर्जियों, कलाकारों, बावर्चियों का आना चालू रहता है। कुछ ही सालों में मटियाबुर्ज का छोटा लखनऊ कलकत्ते का सांस्कृतिक केन्द्र बनता जाता है। कला पारखी नवाब मुशायरे, शेरो शायरी, कत्थक, गीत संगीत की जो रवायत शुरू करते हैं वह उनके जाने के दशकों बाद तक जारी रहती हैै।
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300 बेगमों वाले अवध के आखिरी नवाब ने कलकत्ता में बसाया था छोटा लखनऊ
किताब में खोली अपने जीवन की सच्चाई
लखनऊ के नवाब वाजिद आल शाह की लिखी किताब परीखाना में उनके जीवन के कई रहस्यमय पक्षों का विस्तार से वर्णन है। इस किताब में उन्होंने 26 वर्ष की आयु तक अनेक महिलाओं से अपने प्रेम प्रसंगों, अनुभवों और संगीत नृत्य से अपने जुड़ाव की बातें लिखी हैं। उनमें से कईयों के साथ उन्होंने विवाह किया और कई को बेगमों के खि़ताब से भी नवाजा।
हसीन बेगमों के रहने और नृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए नवाब ने परीखाने का निर्माण कराया था। लखनऊ के बाद कलकत्ते में भी उनकी रसिकता के कई किस्से आम हुए।
वाजिद अली शाह पर कई किताबें लिखी गईं,कई किताबों में उनका लंबा जिक्र मिला। नवाब के बारे में कहा जाता था कि उनकी 300 बेगमें थीं और उन्होंने बड़ी संख्या में तलाक भी दिए। इनमें से कुछ निकाह थे कुछ मुताह थे। लॉस्ट जनरेशन की लेखिका निधि दुग्गर अपने एक लेख में बताती हैं कि नवाब के तलाक की सबसे बड़ी वजह बेगमों और उनके बच्चों के बढ़ते खर्चे और समय न देने के चलते होने वाले झगड़े होते थे। अवध के आखिरी नवाब के बारे में एक और बात कही जाती थी कि जब दुनिया गोरे रंग की दीवानी थी, तब वे गहरे रंग की चमड़ी के कद्रदान थे। उन्होंने अरब व्यापारियों की अफ्रीकी गुलाम औरतों से भी निकाह किए, इनमें से कुछ उनकी सुरक्षा में रहती थीं। जिनमें से एक बेगम का नाम अजायब खातून रखा गया था।
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कत्थक, ठुमरी, पतंगबाजी लेकर आए
वाजिद अली शाह के पर-परपोते और कोलकाता निवासी शहंशाह मिर्जा और कामरान मिर्जा बताते हैं कि नवाब साहब ने मटियाबुर्ज में छोटा लखनऊ तैयार किया। उनके पीछे पीछे शार्गिद आए, कलाप्रेमी, कलाकार, बावर्ची, दर्जी, पतंगबाज आए। कत्थक फला फूला, अर्ध शास्त्रीय ठुमरी प्रचारित हुई। उनके यहां लगने वाले दरबार में कलाकारों, शायरों को जगह मिली। हुगली के किनारे शामे अवध दिखी। कबाब, बिरयानी की लज्जतें लोगों तक पहुंची। पतंगबाजी का शौक कलकत्ते तक आया। उनके बनाए कई भवन बाद में ब्रिटेन सरकार ने नीलाम कर दिए। शाही इमामबाड़ा जहां उनकी कब्र है जैसी गिनी चुनी इमारतें ही उनके यहां गुजारे ३१ सालों की कहानी कहती हैं।
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बिरयानी में आलू उनके बावर्चियों की देन
बंगाल की बिरयानी में आलू और अंडे देश भर की बिरयानी रेसपी से अलग होते हैं। नवाब वाजिद अली शाह के बावर्चियों ने उस समय की डेलीके सी माने जाने वाले आलुओं को बिरयानी में जगह दी। जिनका आज भी बंगाल में प्रचलन है।
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