बंगाल में CPM को खल रही Jyoti Basu की कमी
देश में कम्युनिस्ट राजनीति को स्थापित करने वालों में एक ज्योति बसु की कमी पश्चिम बंगाल में माकपा को काफी खल रही है।

- सिकुड़ते जनाधार से चिंतित पार्टी नेता
कोलकाता.
देश में कम्युनिस्ट राजनीति को स्थापित करने वालों में एक ज्योति बसु (Jyoti Basu) की कमी West Bengal CPM को काफी खल रही है। 2011 में माकपा नीत वाममोर्चा की राज्य की सत्ता छीनने के बाद से पार्टी का जनाधार लगातार सिकुड़ता जा रहा है, यह राज्य के नेताओं के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गया है। ज्योति बसु के जमाने की माकपा का डंका पूरे देश में बजता था जब संसद में उसके सांसदों की संख्या भारी भरकम हुआ करती थी। बसु के नहीं रहने पर पार्टी का आलम यह है कि 17 वीं लोकसभा में पश्चिम बंगाल से एक भी CPM MP नहीं हैं। 1964 में माकपा की Foundation के बाद इसे पहली घटना माना जा रहा है। पार्टी नेताओं के साथ आमलोग भी इस बात को मानते हैं कि अगर ज्योति बसु जीवित होते तो कम से कम बंगाल में पार्टी की यह दुर्दशा नहीं होती। 2011 के विधानसभा चुनाव में माकपा को 41.0 फीसदी मत मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 29.6 फीसदी पर लुढक़ गया। 2016 के विधानसभा चुनाव में वामदलों को मात्र 26.1 फीसदी मत मिले। जनाधार में गिरावट का सिलसिला 2019 में भी जारी रहा। पार्टी को मात्र 6.5 फीसदी वोट मिले।
लंबे समय तक सीएम का पद संभाला-
21 जून 1977 को ज्योति बसु पहली बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। लगातार 23 वर्षो तक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बसु स्वास्थ्य कारणों से 6 नवम्बर 2000 को इस पद से हट गए। उनके स्थान पर तत्कालीन सूचना व संस्कृति मंत्री (Information and Cultural Affairs Minister) बुद्धदेव भट्टाचार्य (Budhadev Bhattacharya) को राज्य का सीएम बनाया गया। भारतीय राजनीति में इतने लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान बसु ने स्थापित किया। राज्य प्रशासन में बुद्धदेव की सक्रियता बढऩे के साथ ही ज्योति बसु की राजनीतिक सक्रियता धीरे-धीरे कम होती चली गई। वर्ष 2006 में बसु ने राजनीति से संन्यास लेने की इच्छा जाहिर की थी। हालांकि पार्टी महासचिव ने उनसे 2008 तक उन्हें संन्यास नहीं लेने का आग्रह किया था।
ऐतिहासिक भूल पर कचोटती माकपा-
वर्ष 1996 में एक ऐसा अवसर आया जब पार्टी के तत्कालीन महासचिव हरिकिशन सिंह सुरजीत ने बसु को देश का प्रधानमंत्री बनने से रोका था। जिसे खुद बसु ने अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी और ऐतिहासिक भूल करार दिया था। संयुक्त मोर्चा सरकार (United Front) में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उनके नाम पर सर्वसम्मति बन चुकी थी। इस भूल का खमियाजा माकपा को अभी तक भुगतना पड़ रहा है। पार्टी के एक पूर्व सांसद का कहना है कि यदि उस वक्त माकपा के इस कद्दावर नेता को देश का प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनाया गया होता तो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काफी हद तक विस्तार होता।
पत्रिका का स्थापना दिवस और बंगाल के 2 दिग्गजों का जन्म आज-
8 जुलाई का दिन भारत के इतिहास में विशेष दिन इसलिए है, क्योंकि इसी दिन बंगाल की दो महान हस्तियों का जन्म हुआ, इनमें से पहली शख्सियत महान राजनीतिज्ञ ज्योति बसु और दूसरे भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) के सबसे सफल कप्तानों में शुमार सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) हैं। संयोग से इसी दिन पश्चिम बंगाल की धरती पर राजस्थान पत्रिका (Rajasthan Patrika) ने कदम रखा था। बसु का कार्यकाल भूमि सुधारों (Land Reforms) के लिए प्रसिद्ध रहा। जबकि पश्चिम बंगाल की धरती पर इसी दिन सौरव गांगुली का भी जन्म हुआ था। जिन्होंने अपने जुझारू एवं आक्रामक (Aggresive) तेवर से भारतीय क्रिकेट की सूरत ही बदल दी। बाएं हाथ के इस मध्यक्रम के बल्लेबाज ने भारतीय क्रिकेट को आत्मविश्वास से लबरेज किया और आखिरी गेंद तक भी हार नहीं मानने वाली टीम में रूपांतरित कर दिया।
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