अम्फान ने मंजुला का सब कुछ छीन लिया। अम्फान ने न सिर्फ मंजुला के तालाब की सारी मछलियों को मार डाला बल्कि उससे आजीविका का एकमात्र सहारा भी छीन लिया। तूफान के बाद उसका तालाब खारे पानी से भर चुका है जो उसकी आजीविका का एकमात्र सहारा था। मंजुला पर 7 साल पहले 2013 में भी मुसीबतों का पहाड़ टूटा था जब गोसाबा इलाके में बाघ ने उसके पति को मार डाला था। इसके बाद से तालाब की मछलियां ही उसकी कमाई का एकमात्र साधन था। आसपास के खेत भी अम्फान की वजह से बर्बाद हो चुके हैं। मंजुला और उस जैसे अनेक महिलाओं की यही कहानी है। मंजुला ने बताया कि पहले भी तूफान ने उसकी जिंदगी को बदल दिया था। आइला की वजह से खेत बर्बाद हो गए तो मजबूरन पति को मछली पकडऩे का काम शुरू करना पड़ा। इसी दौरान बाघ ने हमला कर उनकी जान ले ली। काफी संघर्ष के बाद एक एनजीओ की मदद से मछली पालन के लिए एक तालाब के इस्तेमाल की अनुमति मिली थी और अब अम्फान भी ले गया।
100 से ज्यादा बाघ विधवाएं
मंजुला जैसी कई कहानी गोसाबा इलाके के सतजेलिया प्रखंड की 100 से ज्यादा बाघ विधवाओं ने पिछले 15 साल के दरम्यान अपने पतियों को बाघ की वजह से खो दिया। इन सबकी कहानी एक समान है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सुंदरबन में 2010 से 2017 के बीच बाघ के हमलों में 52 लोगों की जान गई। मंजुला की तरह ही सतजेलिया की एक और बाघ विधवा शीबा सरदार (40) है। उसे साइक्लोन, इंसान-बाघ के संघर्ष से ज्यादा भूख का खौफ है। मुर्गी पालन का काम करने वाली सतजेलिया ने बताया कि सुंदरवन में जब भी कोई आपदा आती है हमें फिर से नई शुरुआत करनी पड़ती है। तूफान में उसकी 100 मुर्गियां और 80 चूजे बह गए। सुलाता ने कहा कि उसकी आंखों के सामने ही पति को बाघ ने मार डाला था। खेतिहर मजदूर सुलाता के मुताबिक आइला के बाद पटरी पर जिंदगी लौटनी शुरू हुई ही थी कि अम्फान ने सब खत्म कर दिया। कोई खेती योग्य जमीन नहीं बची और उसके पास परिवार को पालने के लिये कोई जरिया नहीं है। सुलाता के पति को 2011 में उसकी आंखों के सामने ही बाघ ने मार दिया था। उसने कहा कि बाघ, घडय़िाल और सांप के हमले में अपने पति खोने वाली बहुत सी महिलाओं ने शहर का रूख कर लिया और वहां काम तलाश लिया। इस संबंध में पश्चिम बंगाल सुंदरवन मामलों के मंत्री मंटुराम पखीरा ने कहा कि प्रदेश सरकार सुंदरवन की विधवाओं के मामले को जल्द ही देखेगी। एक दशक से अधिक समय से बाघ विधवाओं के साथ काम करने वाले बैकुंठपुर तरुण संघ नामक एनजीओ की सुशांत गिरी ने कहा कि इन्हें सरकारी मदद की तत्काल दरकार है। स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक साइंसेज, जादवपुर विश्वविद्यालय की निदेशक सुगाता हाजरा का कहना है कि सुंदरवन जैसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लिए सरकार को विशिष्ट नीति बनानी चाहिए। इस क्षेत्र में आपदाएं कोई नई बात नहीं। बाघों की विधवाएं ही नहीं विधवाएं भी प्रभावित लोगों में सबसे कमजोर हैं। सरकार के पास इस खंड की मदद करने, पुनर्वास और उन्हें नया जीवन शुरू करने में मदद करने के लिए एक विशिष्ट नीति बनानी चाहिए।