कोलकाता. कजली तीज के अवसर पर गुरुवार रात चंद्रमा को अर्ध्य दे कर प्रवासी राजस्थानी महिलाओ ने तीज माता की पूजा की। मान्यतानुसार तीज के दिन शिव और पार्वती की पूजा करने से पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि की प्राप्ति के साथ अन्य मनोकामनाएं पूरी होती है। इस अवसर पर महिलाओ ने 3तरह के मीठे सात्तू ( चना, चावल और गेहूं) का प्रसाद ग्रहण किया।इस दिन महिलाएं सुबह झूला झूलती है और चंद्रोदय होने तक कुछ भी नहीं खाती।इस वर्ष सभी त्यौहारों पर कोविड19 काल का असर पड़ा। तीज से पहले दिन मनाई जाने वाली धमौली (सिंधारा) लॉक डाउन के कारण सामूहिक रूप से नहीं मनाया जा सका। बाज़ार में फलों के दाम आसमान छूते नजर आए।, इस त्योहार में महिलाएं नए परिधान खरीदा करती है पर इस बार नहीं के बराबर खरीदारी हुई। हावड़ा के उपनगरों के अधिकतर बाज़ार दोपहर 2 बजे बंद होने के कारण परिवारों ने सुबह पहले ही फल व अन्य पूजन समान की खरीददारी की।बड़ा बाज़ार निवासी सोनू डागा ने बताया कि खुशी है कि त्यौहार मना रहे। कहीं लॉक डाउन होता तो इतना मानना भी मुशिकल हो जाता।साल्टलेक की निशा पुरोहित ने कहा कि तीज माता मनोकामना पूर्ण करती है। और हम यह मनोकामना करते है कि माता इस कॉरोना को अब खत्म करें ताकि सबकी जिंदगी खुशहाल हो। इधर बुधवार रात से ही कोलकाता और उपनगरों में रुक रुक कर कभी हलकी तो कभी तेज बारिश में चन्द्र दर्शन मुश्किल हो रहा था।शाम आसमान से बादल छंट गए और चन्द्र अपने नियत समय पर निकल आया। कवि संजय बिनानी ने इस त्योहार पे ऐसा लिखा…. ….ओ मेघों के देवता, दिन भर कर बरसात, सांझ ढले घर जाइयो रखयो मेरी बात!! लिकाछिपी के खेल में, चंदा करता घात! तीज व्रती के धैर्य से फिर भी खाता मात!! —महानगर में सोशल डिस्टेंनसिंग से अपने अपने घरों में ही मनाई गई तीज।राजस्थान की संस्कृति और परम्परा निभाते हुए मिनी राजस्थान बड़ाबाजार में सातुड़ी तीज मनाई। आस पड़ोस तथा परिवारजनों के साथ सामुहिक रूप से मिलजुल कर मनाया जाने वाला आस्था और संस्कृति से ओत प्रोत सातुड़ी तीज या कजली तीज इस बार सामाजिक दूरी का पालन करते हुए मनाया गया।बड़ाबाजार में तीज का त्यौहार मना रही लीला व्यास, संतोष व्यास, मंजू जोशी, हेमलता पुरोहित आदि ने अपनी प्रतिकिया व्यक्त की। बताया कि वैसे तो इस पर्व पर सत्तू बना कर बहन बेटियों के ससुराल पहुंचाने का रिवाज है। लेकिन कोरोना काल में ज्यादातर लोगों ने बाहर निकलने से परहेज करते हुए प्रथा को इस वर्ष संक्षिप्त रूप से निभाया। यह पहला अवसर है जब रिश्तेदारों के यहाँ सत्तू नही भेज पाए।
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