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कोलकाता

WEST BENGAL—पुण्यतिथि पर याद आए मुखर्जी

भाजपा का रक्तदान शिविर, श्रद्धांजलि कार्यक्रम

कोलकाताJun 23, 2021 / 10:52 pm

Shishir Sharan Rahi

WEST BENGAL---पुण्यतिथि पर याद आए मुखर्जी

WEST BENGAL—पुण्यतिथि पर याद आए मुखर्जी

BENGAL NEWS-कोलकाता। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर भाजपा पाकसु मोर्चा प. बंगाल की ओर से बुधवार को रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। संयोजक विश्वप्रिय राय चौधरी, बंगाल पाकसु अध्यक्ष अलक सरकार, महामंत्री सुभाष गुहा, कोलकाता जिलाध्यक्ष काली खटिक के नेतृत्व में शिविर आयोजित हुआ। भोला प्रसाद सोनकर सहित 40 लोगों ने रक्तदान किया। उधर एनएस रोड पर मुखर्जी के बलिदान दिवस पर वार्ड 45 मंडल कार्यालय में हरिकेश सिंह गुड्डन की अध्यक्षता में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। युवा नेता धर्मराज कश्याब, विनय सिंह, राधे शर्मा, संतोष कुमार सिंह, भाजपा चौरंगी मंडल वेस्ट आईटी सेल इंचार्ज शम्मी तिवारी व वार्ड 45 भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित थे।
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रहस्यमयी हालातों में हुई थी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत, आज भी उठते हैं सवाल
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन को लगभग 7 दशक बीतने के बाद भी उनकी मौत पहेली बनी हुई है. कुछ समय पहले कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने मांग की है कि डॉ मुखर्जी की मौत की जांच के लिए कमीशन बने. इससे तय हो सकेगा कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या साजिश. वैसे पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तक ने जनसंघ के संस्थापक मुखर्जी के किसी साजिश का शिकार होने का संदेह जताया था.जुलाई 1901 को कोलकाता के एक संभ्रांत बंगाली परिवार में जन्मे मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी राज्य में शिक्षाविद् बतौर जाने जाते थे. लिखने-पढ़ने के माहौल में बढ़ते मुखर्जी केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गए. वहां से वो कोलकाता विधानसभा पहुंचे. यहां से उनका राजनैतिक करियर शुरू हुआ लेकिन मतभेदों के कारण वे लगातार अलग होते रहे.
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कश्मीर में अलग कायदे-कानून के विरोधी थे
मुखर्जी अनुच्छेद 370 का विरोध करते रहे. वे चाहते थे कि कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह ही देश के अखंड हिस्से की तरह देखा जाए और वहां भी समान कानून रहे. यही कारण है कि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री पद दिया तो कुछ ही समय में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. कश्मीर मामले को लेकर मुखर्जी ने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.
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