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.WEST BENGAL AZADI KA AMRIT MAHOTSAV2022-…..एक वो भी था जमाना, एक ये भी है जमाना

locationकोलकाताPublished: Aug 08, 2022 12:25:51 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

लोगों के रहन-सहन पहनावे, खानपान में आया बदलाव, देश की गुलामी से लेकर स्वाधीनता का दौर देख चुकी चांदबाई जैन को नाज है कि आज हिन्दुस्तान हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर

.WEST BENGAL AZADI KA  AMRIT MAHOTSAV2022-.....एक वो भी था जमाना, एक ये भी है जमाना

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BENGAL AZADI KA AMRIT MAHOTSAV 2022-कोलकाता (शिशिर शरण राही)। देश की गुलामी से लेकर स्वाधीनता का दौर देख चुकी दो बेटों और 2 बेटियों की मां चांदबाई जैन को नाज है कि आज हिन्दुस्तान हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर है। राजस्थान के अजमेर की प्रवासी राजस्थानी चांदबाई की आंखों में जीवन के 88 साल के पड़ाव पर भी आजादी के अमृत महोत्सव को लेकर गजब की खुशी छाई है। स्वतंत्रता दिवस से पहले पत्रिका से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि …एक वो भी था (फिरंगी राज) जमाना, एक ये भी है जमाना (स्वाधीन भारत)। अजमेर में चिरंजी लाल गंगवाल ल केसर बाई के घर जन्मी तीन भाई व दो बहनों में सबसे बड़ी चांदबाई कहती हैं कि ये अदभुत संयोग था कि जिस साल देश आजाद हुआ उसी वर्ष वे 1947 को जयपुर के राजकुमार जैन के साथ परिणय सूत्र में बंधी।
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पहले खराब माहौल नहीं था
आजादी के आंदोलन के हर एक पल की गवाह साल्टलेक में निवासरत चांदबाई का कहना है कि आजादी के पहले ऐसे खराब माहौल नहीं था। वे कहती हैं कि एक जमाना ऐसा भी था जब हमें हर चीज को मोहताज रहना पड़ता था पर आज वो बात नहीं। उस समय में और आज के समय में लोगों के रहन-सहन पहनावे, खानपान में काफी परिवर्तन आया। उनके शब्दों में जहां पहले घर की महिलाएं घूंघट में रहती थी। आज वे हर क्षेत्र में आगे हैं। उनके शब्दों में आज ऑनलाइन सुविधा से हर काम आसान हो गया है। आज वे मोबाइल से घर बैठे राजस्थान से लेकर देश के किसी भी कोने में अपने परिजनों से आराम से बात कर सकती हैं। जबकि पहले मोबाइल किसी सपने से कम नहीं था। उसी तरह पैसे भेजने के लिए पहले जहां मनीआर्डर का सहारा लेना पड़ता था जो आज महज चंद सेकंड में आसानी से चला जाता है।
एक इंसान का दूसरे इंसान को ढोना बेहद अफसोसजनक
उनका कहना है मैने कोलकाता में 1956 में कदम रखा। उस समय हाथ रिक्शा और तांगा कलकत्ता के परिवहन के माध्यम थे। तांगा तो खत्म हो गया पर आज भी कोलकाता में हाथ रिक्शा आवागमन का माध्यम बना हुआ है। जो उन्हें अच्छा नहीं लगता। एक इंसान दूसरे इंसान को ढो रहा आज भी यह बेहद अफसोसजनक है। उनके शब्दों में सरकार समेत अन्य जिम्मेदार अफसरों को इसपर खास ध्यान देना चाहिए। वे कहती हैं कि आजादी के समय से कलकत्ता की सडक़ों की धुलाई प्रतिदिन सुबह और शाम को हुआ करती थी जिससे प्रदूषण नहीं फैलता था। अब यह सब कुछ बंद हो गया है। बरसात में कोलकाता में जलजमाव आम समस्या है।
कागजों पर कायदे-कानून
उन्होंने कहा कि आजादी के पहले से लेकर आज तक कोलकाता में सडक़ों पर बारिश का जलजमाव तब भी था आज भी है। इसे दूर करने के सारे कायदे-कानून महज कागजों पर ही सीमित हो कर रह गए। कोलकाता में आजादी के बाद तारों का मकडज़ाल इतना नहीं था जितना आज नजर आ रहा। पहले 2 मंजिली बसें कोलकाता में चलती थी जिसकी सवारी का लुत्फ उन्होंने उठााया। वे आज नदारद हैं। पहले पदयात्री फुटपाथ पर चलते थे आज फुटपाथ पर हाकरों का कब्जा है। और पदयात्री रोड पर चलने को मजबूर हैं और दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। तब भूगर्भ या मेट्रो रेल नहीं थी अब मेट्रो रेल है। ट्राम रास्ते पर दौड़ती थी अब कुछ ही स्थानों पर दौड़ती हुई नजर आ रही है।

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