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WEST BENGAL-देवी दुर्गा के 9 रूप, सभी के गुण

locationकोलकाताPublished: Sep 26, 2022 12:10:57 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

पापों की विनाशिनी है नवदुर्गा

WEST BENGAL-देवी दुर्गा के 9 रूप, सभी के गुण

WEST BENGAL-देवी दुर्गा के 9 रूप, सभी के गुण

BENGAL DURGA PUJA-कोलकाता। सनातन धर्म में नवदुर्गा या पार्वती के 9 रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है। हर देवी के अलग वाहन, अस्त्र- शस्त्र हैं पर सब एक हैं। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है। शक्ति बिना मनुष्य जीवन संभव ही नहीं। महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती ये तीनों रूप हमें मानसिक, शारीरिक और भौतिक शक्ति प्रदान करती है। श्रीराधे पंचांग के संपादक प्रवासी राजस्थानी पंडित मनीष पुरोहित ने रविवार को पत्रिका को यह जानकारी दी।
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ये हैं दुर्गा के 9 रूप

पुरोहित ने बताया कि नवरात्र में दुर्गा के 9 रूपों को पूजा जाता है। प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, ७वें को कालरात्रि, ८वें को महागौरी और ९वें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।
1—शैलपुत्री-
दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। पूजा में योगी मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
—आज के संदर्भ में महत्व—-जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए।
—2—ब्रह्मचारिणी
दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी है। ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी मतलब है तप की चारिणी तप का आचरण करने वाली।
—-आज के संदर्भ में महत्व—हमेशा संयम और नियम से रहें। जीवन में सफलता के लिए सिद्धांत नियमों पर चलने की आवश्यकता है। इसके बिना कोई मंजिल नहीं पाई जा सकती। अनुशासन ज्यादा जरूरी है।
—-3—चंद्रघण्टा
दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इनके विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है जिससे चंद्रघण्टा नाम पड़ा।
—आज के संदर्भ में महत्व—-जीवन में सफलता के साथ शांति का अनुभव तब तक नहीं हो सकता जब तक मन में संतुष्टि का भाव न हो।
—4—कूष्माण्डा
दुर्गा का चौथे स्वरूप कूष्माण्डा है। मंद, हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण यह नाम पड़ा। इस रूप की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त कर सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है।
—-आज के संदर्भ में महत्व—भय सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल है। जिसे जीवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर सुख से जीवन बिताना हो उसे कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए।
5—स्कन्दमाता
दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। स्कन्द या कार्तिकेय की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
आज के संदर्भ में महत्व-सफलता के लिए शक्ति का संचय और सृजन की क्षमता दोनों जरूरी है।
6—-कात्यायनी
दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
आज के संदर्भ में महत्व—रोग और कमजोर शरीर के साथ कभी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। मंजिल पाने के लिए शरीर का निरोगी रहना जरूरी है।
7—कालरात्रि
दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। यह स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली है।
आज के संदर्भ में महत्व—सफलता के लिए दिन-रात के भेद को भूला देना आवश्यक है। जो बिना रुके थके, लगातार आगे बढऩा चाहता है वो ही सफलता पर पहुंचता है।
8—महागौरी
दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
आज के संदर्भ में महत्व—-सफलता अगर कलंकित चरित्र के साथ मिलती है तो वो किसी काम की नहीं।
9—सिद्धिदात्री
दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।
आज के संदर्भ में महत्व—सिद्धि का अर्थ है कुशलता, कार्य में कुशलता और सलीका हो तो सफलता आसान होती है।
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